पंचायत चुनाव: खबरो को तोड़ना कितना सही है ?

16:55:00 Manjar 0 Comments

पंचायती राज :गांव की सरकार
भारत गांवो का देश है गांवो के विकास के बिना भारत का विकास नामुमकीन है । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश हैं। 1993 में संविधान में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता मिली। पंचायतो के अधिकारो को काफी विसतृत किया गाया आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और लागु करवाना पंचायतो के विवेक पर छोड़ दिये गये। प्रत्येक पंचायतो के अधिकार वहां के आर्थिक-सामाजिक-भगौलिक आधार पर तय होता हैं। वैसे ही बिहार में बिहार पंचायत राज अधिनियम,2006 की विभिन्न धाराओं से संचालित होते है। ग्राम पंचायत के सदस्यो का चुनाव ग्राम पंचायत के मतदाताओं द्वारा तय होता है।
जिंदगी में पहली बार इस चुनाव में हिस्सा लिया। बतौर वोटर वोट डालने का मौका भला कैसे छोड़ देता। मैने जिस चुनाव में अपना मत का प्रयोग किया उसके नतीजें अभी घोषित नही हुये है। जीत-हार के समीकरण में और कुछ शामे बाकि रह गई हैं। करीब करीब दोनो योद्धा एक दुसरे की जीत का भविष्यवाणी कर रहे हैं। कोई स्पष्ट नही है। किसी ने भी जीत के लड्डु के ऑडर नही दिये है। हर दिन बेचैनी,कयास और जोड़ घटाव में दिन बीत जा रहा है अब इंतजार फैसले के दिन का है। यह हाल मेरे गांव का है। लेकिन अभी जहां हूं इस प्रखंड के सभी ग्राम पंचायतो के चुनाव के नतीजे घोषित किये जा रहें है। इस प्रखंड के एक पंचायत के चुनाव परिणाम को किसी एक अखबार ने जिस ढ़ग से प्रसतुत किया वो पत्रकारिता के पैमाने पर कहीं से भी खरा नही उतरता और वह भी कल यानी पत्रकारिता दिवस के दिन। जिस घटना की मीस रिपोर्टींग हुई है उस घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखा हूं। तराजु के हर झुकाव को बेहद नजदिक से देख रहा था। 11 घंटे से ज्यादा तनाव के उस दौर को मैने महसुस किया है। जब चीजे बिल्कुल उल्ट थी तो फिर इस कदर तोड़-मरोड़ कर खबर क्यो बनाया गया ? तर्कसंगत ओर सबुत के साथ यह साबित कर सकता हूं कि पत्रकार महोदय आपने खबर को गलत तरीके से पेश किया है।
भारत में प्रेस की आजादी का बात करना वैसे भी बेईमानी है। यु ही नही 133 रैंक मिल जाते। आपने कई बार अखबारों-चैनलो में यह बात प्रमुखता से पढ़ी या सुनी होगी कि अमिताभ बच्चन या क्रिस गेल या फलाना सेलिब्रेटी ने अपने बर्ताव के लिए पत्रकारो से मांगी माफी। क्या आपने गलत रिपोर्टींग के लिये किसी अखबार वालो को माफीनामा छापे देखा है ? बहुत बड़े खबरो के लिये इक्का-दुक्का बार सुना होगा। मुझे तो फिलहाल दो खबर याद आता है एकबार ABP NEWS के पत्रकार ने गलत तथ्य बोल दिया था जिसके अगले दिन वेब संसकरण में खेद प्रकट किया गया था। दुसरा बीबीसी के पत्रकार ने ट्वीटर पर महारानी के निधन की गलत सूचना दे दी थी जिसके बाद में बीबीसी ने माफी मांगी थी।

लेकिन छोटी खबरो को मोनीटर करने वाला कोई नही होता। कस्बा लेवल पर पत्रकार जो मन में आये लिख भेजते है। संपादक सिर्फ भाषा में सुधार कर हु ब हु छाप देते है। उपर जिक्र की गई खबर का असर दैनिक दिनचार्या में हुआ होगा या नही शायद नही ही हुआ होगा लेकिन मेरे जानकारी में एेसे गलत प्रस्तुति कई के जिंदगी में कई साल तक टीस बनाये रखा। कस्बो और मध्यम शहरो के पत्रकारो को ट्रेनिग तो दी जाती है। लेकिन यह अंतराल काफी बड़ा होता है। उन्हे इतनी भी तनख्वाह नही मिलती की वे अपने जरूरतो को पुरा कर सके। जिंदगी को सुगम बनाने के लिये वह जोड़-तोड़ करने लगता है। फायदे का रिलेशनसीप बनाता है फायदा का खबर लिखता है। कभी एडीटर खबर को रोचक बनाने के लिये मुल खबर को ही इतना छेड़ देता है कि खबर वास्तविकता से कोसो दुर चली जाती है। यह इत्तेफाकन नही होता बल्की पाठको को इंटरेस्ट बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है। जब खबरो के साथ ऐसा बर्ताव हो़ रहा हो तो क्या आपको नही महसुस होता इसका असर सामाजिक स्तर पर पड़ रहा है ?
कई पत्रकारो के गलत रिपोर्टींग से बहुत कुछ घटना उनके साथ घटित हो जाता है। जिनके साथ ऐसी कोई घटना घटित हुई हो उनकी रिपोर्टींग की जांच होनी चाहिए कि आखिर किस तरह के खबरे वे लिखते और किस तरह की सुचना उनके पास संग्रहित है।
या फिर कोइ एेसी व्यवस्था हो जिसमें पत्रकार डरे नही साथ ही साथ मानसिकता सिर्फ खबर का हो न की खबरो के व्यापार का। इसके लिये अखबार मालिको का अपना मुनाफा थोड़ा कम करना पड़ेगा। पत्रकारिता साहस का नाम कब का खत्म हो चुका है। लेकिन अब बिजनेस हो गया है। मगर सारा मुनाफा उपर के लोग ही खा जाते है तो भला निचले स्तर पर सुधार कैसे संभव हो पायेगा ? ये लोग तो जुगाड़ करेंगे ही और खबरो में गुणवता कहां से आ पायेगा ?
मैं जहां रह रहा हूं उस प्रखंड के पंचायत चुनाव परिणाम को जब कुछ पत्रकारो ने असमान दृष्टी से देखा तो मैं हैरान रह गया..! आखिर सोचियें जब अंदरखाने में सब आपकी मदद कर रहे है तब भी कोई क्यो हार जाए ?
खैर, जिसको जो मिला उसको तो कबुलना पड़ेगा। हार-जीत सिक्के के दो पहलु है और इसमें भी इसी सिक्के ने अपनी भुमिका निभाई । हार कई मायनो में अपना होता है जो आत्मलोचन, रणनीति और कमी को सुधारने का भरपुर मौका देता है। सही तैयारी ही जश्न की आधारशील होती है। लेकिन जब कर्म अंतिम समय पर भाग्य पर अपना फैसला छोड़ देता है और भाग्य आपका साथ छोड़ दे तो यह आपके बस की बात नही है। चुनाव के लिये सब जरूरी है और कुछ भी संभव हो जाता है।

वर्तमान पत्रकारिता परिदृश्य पर कुछ महीनो पहले लिखा मेरा लेख-https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=1821058916320108681#editor/target=post;postID=7991749712142450092;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=40;src=postname

0 comments: