क्या हम बंदर है..!
आज तीन बेहद महत्वपूर्ण विषय पर लिख रहा था। लेकिन नूरानी शाम में स्याह काली रंग छोड़ती माथे पर उभरी लकीरें मेरे मित्र 'अनुज' से बात कर बहुत कुछ निशान छोड़ गई।
एक कहानी सुनना चाहता हूँ..
एक बार कुछ वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ही रोचक प्रयोग किया..
उन्होंने 5 बंदरों को एक बड़े से पिंजरे में बंद कर दिया और बीचों -बीच एक सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे..
जैसा की अनुमान था, जैसे ही एक बन्दर की नज़र केलों पर पड़ी वो उन्हें खाने के लिए दौड़ा..
पर जैसे ही उसने कुछ सीढ़ियां चढ़ीं उस पर ठण्डे पानी की तेज धार डाल दी गयी और उसे उतर कर भागना पड़ा..
पर वैज्ञानिक यहीं नहीं रुके,
उन्होंने एक बन्दर के किये गए की सजा बाकी बंदरों को भी दे डाली और सभी को ठन्डे पानी से भिगो दिया..
बेचारे बन्दर हक्के-बक्के एक कोने में दुबक कर बैठ गए..
पर वे कब तक बैठे रहते,
कुछ समय बाद एक दूसरे बन्दर को केले खाने का मन किया..
और वो उछलता कूदता सीढ़ी की तरफ दौड़ा..
अभी उसने चढ़ना शुरू ही किया था कि पानी की तेज धार से उसे नीचे गिरा दिया गया..
और इस बार भी इस बन्दर के गुस्ताखी की सज़ा बाकी बंदरों को भी दी गयी..
एक बार फिर बेचारे बन्दर सहमे हुए एक जगह बैठ गए...
थोड़ी देर बाद जब तीसरा बन्दर केलों के लिए लपका तो एक अजीब वाक्य हुआ..
बाकी के बन्दर उस पर टूट पड़े और उसे केले खाने से रोक दिया,
ताकि एक बार फिर उन्हें ठन्डे पानी की सज़ा ना भुगतनी पड़े..
अब वैज्ञानिकों ने एक और मजेदार चीज़ की..
अंदर बंद बंदरों में से एक को बाहर निकाल दिया और एक नया बन्दर अंदर डाल दिया..
नया बन्दर वहां के नियम क्या जाने..
वो तुरंत ही केलों की तरफ लपका..
पर बाकी बंदरों ने झट से उसकी पिटाई कर दी..
उसे समझ नहीं आया कि आख़िर क्यों ये बन्दर खुद भी केले नहीं खा रहे और उसे भी नहीं खाने दे रहे..
कुछ समय बाद उसे भी समझ आ गया कि केले सिर्फ देखने के लिए हैं खाने के लिए नहीं..
इसके बाद वैज्ञानिकों ने एक और पुराने बन्दर को निकाला और नया अंदर कर दिया..
इस बार भी वही हुआ नया बन्दर केलों की तरफ लपका पर बाकी के बंदरों ने उसकी धुनाई कर दी और मज़ेदार बात ये है कि पिछली बार आया नया बन्दर भी धुनाई करने में शामिल था..
जबकि उसके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था!
प्रयोग के अंत में सभी पुराने बन्दर बाहर जा चुके थे और नए बन्दर अंदर थे जिनके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था..
पर उनका व्यवहार भी पुराने बंदरों की तरह ही था..
वे भी किसी नए बन्दर को केलों को नहीं छूने देते..
दोस्तों, हमारे समाज में भी ये व्यव्हार देखा जा सकता है..
विचार एक अनुभव है
विचार एक वजुद हैं
विचार एक संभावना हैं
विचार एक जिज्ञासा हैं
हम किसी को रोक तो नही सकते लेकिन प्रभावित जरूर कर सकते। ठीक है; सब अपने अनुसार अपना मार्ग को दुरुस्त बताते हैं। लेकिन वे लोग तो इतना जरूर तो कर सकते हैं कि जो भी कहे समझे उसका परीक्षण-प्रयोग कर ले।
सीधा बात- आमतौर पर एक बालक का विचार उसके घर में पनपे विचारों से मिलता जुलता हैं। धीरे- धीरे उसकी अवधारणा जो पनपती है वो पिता जी, चाचा जी दोस्त भाई बहन से मिल रही होती है। क्योंकि बचपन से अब तक उन्हीं सब विचारों के मिलन से जो सोंच और समझ विकसित होती हैं वह इन लोगो के विचारों के समीप होता हैं। ये जो संबंधी है वे बचपन से ऐसी विचारों का विकास कर देते है कि अगर कोई उनके समक्ष किसी अन्य विचारधारा की बात करेगा तो उसे विरोध का सामना करना पड़ेगा। मैं इनसे बस इतना कहना चाहूँगा कि आप बंदर की तरह मत बनिये । अगर कोई आपको आपके खांचे से बाहर निकाल कर किसी और राजनीतिक पहलु में फिट करना चाह रहा है तो आप उस पर विचार किजिये। खूब तर्क-बहस कीजिये। बिना तर्क बहस से आप सही स्थिती का आंकलन नही कर पायेंगे। सोंच संकीर्ण मत कीजिये। हर पहलू पर जाँचिए परखिये और विचार कीजिये भले ही आप घर में पहले सदस्य "BJP" के क्यों न हो,भले आपके पिता कांग्रेसी हो तो उन्हें बताईए कि उन्हें भी अपनी पसंद बदल लेनी चाहिये। यह संभव तर्क-बहस से ही है। नया शुरुआत कीजिये, किसी के डराने से मत डरिये जैसे कोई किसी पार्टी का नाम लेकर किसी को डरता है। हमारे घर में तो ऐसा ही होता हैं, मेरे पिता से पूछ सकते हैं ?
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