' बड़े शौक से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गए दास्तां कहते-कहते’

19:33:00 Manjar 0 Comments



शख़्सियत : इंतजार हुसैन


जन्म- 7 दिसंबर 1923, डिबाई (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु- 2 फरवरी 2016, लाहौर, पाकिस्तान
प्रमुख कृतियां
उपन्यास: बस्ती, आगे समंदर है, नया घर
कहानी संग्रह: वो जो खो गया, हिंदुस्तान से आखिरी खत, शहर-ए-अफसोस, अलामतों का जवाल, जनम कहानियां, जातक कहानियां, तजकिरा
पाकिस्तान के सर्वोच्च पुरस्कार ‘सितारा-ए-इम्तियाज’ और फ्रांस के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित। ‘मैन बुकर’ के लिए नामित।भारत में साहित्य अकादमी ने उन्हें अन्तराष्ट्रीय प्रेमचंद फ़ेलोशिप प्रदान की थी।

गत मंगलवार की शाम पाकिस्तानी कहानीकार इंतजार हुसैन के इंतेकाल के साथ ही भारत-पाकिस्तान के बीच की एक जरूरी साहित्यिक-सांस्कृतिक कड़ी टूट गई। वे जितने पाकिस्तान के रहे उतने वह हिन्दूस्तान के भी थे।

7 दिसंबर 1923 को हिन्दुस्तान के बुलंदशहर जिले के डिबाई तहसील में जन्मे यह शख्स भारतीय उपमहाद्वीप का आवाज बन गये। कथाकार,  उपन्यासकार, नाटककार और कवि के रूप के हर अंश में उनका दर्शनशास्त्र झलकता ।
मस्जिद की अज़ान और मंदिर की घंटियों की आवाज़ें सुनते हुए बड़े हुए ।
वे 1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान जरूर चले गए लेकिन भारत की याद हमेशा से दिल में बसा रखी। जब भी भारत आते अपने हिस्से की वह खुशी ढूंढने दूर मीलो की सफर तय करते। हिन्द-पाक की सांस्कृतिक-साहित्यिक की कड़ी फिलहाल ख़ाक ए सुपर्द हो गई।

इतना महान साहित्यिक संपदा खोना पाकिस्तान के लिए अपूरणीय क्षति हैं। पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ का ऑनलाइन संस्करण में पेज एक पर उनके बड़े ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो के साथ लेखिका ने ‘वक्त में न बांधी जाने वाली इंतजार की कहानी’ लिखी थी। लिखा था कि कठिन बातों को भी वे कितनी आसानी से संप्रेषित कर देते थे। ‘सातवां दर’ में उन्होंने अपूर्ण इच्छाओं की पूर्णता को समझाया।
लेखिका ने लिखा था कि इंतेजार ने इस संग्रह में अपने खोये संसार की कामना की है और बताया है कि कैसे एक पराये माहौल में सृजनात्मक जीवन जीया जा सकता है।

इंतज़ार साहब के अनुसार उर्दू कथा के निर्माण में आमतौर पर  तीन तत्व पाये जाते हैं एक प्राचीन भारतीय कथाएं दूसरा अरब और फ़ारस की कहानी कहने और तीसरा आधुनिक पश्चिमी दुनिया की बुद्धिवाद की परंपरा शामिल है।

अपने लिखने की तकनीकी की बुनयादी बातों पर बात करते हुए हुसैन साहब कहते हैं- "कभी कोई स्थिति या एक तस्वीर-सी मन में आ जाती है और वह पकती रहती है। ऐसे जैसे धीमी आंच पर आप एक हंडिया रख दें तो वह पकती रहती है धीमे धीमे। अब तो ऐसा नहीं होता। मैं तो पुराने ज़माने का आदमी हूँ। मेरे मन में तो यही उदाहरण आता है कि आपके दिल और दिमाग़ में आकर कोई बात अटक गई है या बस गई है और एक चरख़ी है जो घूमती जाती है। हम दूसरे काम भी करते रहते हैं लेकिन वह चरख़ी अपना काम करती रहती है और इस का एक रूप दिल और दिमाग़ में बनता रहता है, जब उसका आकार पूरी तरह से बन जाता है तो मैं लिखना शुरू करता हूँ।"
"बंदर की कहानी के बारे में बताते हुए कहे कि एक बंदर पहली बार इंसानों की बस्ती का विकास देख कर हैरान हो जाता है और इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि हमारे विकास के रास्ते में बड़ी बाधा हमारी दुम है। मनुष्य ने अपनी दुम से छुटकारा हासिल करके कैसी प्रगति कर ली है। इस बंदर की बात सुनकर पूरा झुंड अपनी पूंछ काटने का फ़ैसला करता है। मगर एक बूढ़ा बंदर कहता है कि जिस उस्तरे से तुम अपनी पूंछें काटोगे कल इसी से एक दूसरे का गला भी।"

लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए किया और पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ गए।
उनके मिथकों का पहला संग्रह 'गली कूचे' 1953 में प्रकाशित हुआ था। इस प्रकार उनका साहित्यिक सफ़र आधी शताब्दी पर आधारित है।
इंतज़ार हुसैन के अफ़्सानों के आठ संकलन, चार उपन्यास, दो वॉल्यूम में संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने बहुत से अनुवाद भी किए हैं और सफ़रनामे भी लिखे। जैसे -  पाकिस्तान जाकर वहां के अखबार ‘डान’ में अलीगढ़ के अनुभव लिखे। पाकिस्तान के लोगो से मुख़ातिब होते हुए लिखते हैं। भारत ने हमेशा गर्मजोशी से बुलाया,सम्मान दिया और खूब सारा प्यार भी।उनके उर्दू कॉलम पर आधारित पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है।वह अंग्रेजी में भी कॉलम लिखते रहे।

उर्दू अदब के महान लेखक की रुखस्तगी से एक शून्य का पैदा होना ही था। कई दशको का रिश्तों का अपने कलम और आत्मीय से सींचे थे जिससे हिन्दुस्तान के साथ-साथ पाकिस्तान के कई अख़बार के सुर्खियों का हिस्सा बन गए। भला इतना भावभीनी श्रधांजलि क्यों न मिलती जब हिन्दू-मुस्लिम की एकता के इतने बड़े मिसाल थे।
अपने आखिरी दिनों तक साहित्य में सक्रिय रहने वाले और उर्दू साहित्य के सफर पर अपनी बेबाक राय जाहिर करने वाले इंतजार हुसैन उर्दू जुबानों के बीच हमेशा जिंदा रहेंगे।

‘बड़े शौक से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गए दास्तां कहते-कहते’

सूचना: हर रविवार को पढ़िए "शख़्सियत" में ऐसी शख्सियत के बारे में जिसने समाज का रुख मोड़ दिया हो।


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