गोपालगंज में हिंसा ! दोष किसपर मढ़े?
आज क्या लिखने जा रहा था? लेकिन आज कुछ और लिखूंगा। परिस्थितियां बदलती रहती हैं; इंसान जीना सीख लेता हैं। परिस्थितिया से जिसने तालमेल बैठाया न हो वह अपना वजूद खो देता। लेकिन जिसने खुद को ही बचाने की कोशिस नही किया हो क्या वह अपना पहचान,वजूद के साथ-साथ खो नही देता ?
दो रस्सी को जोड़ने के लिए गांठ की जरूरत पड़ती हैं। यदि गांठ कमजोर हो तो ,रस्सी का जुड़ना कहावत बन जाता हैं। आखिर होली-ईद साथ मनाने वालों का गांठ इतना कमजोर क्यों होता हैं कि एक ही बार के हवा के झटके में टूट जाएं ? धर्म और मानवता की लड़ाई में हमेशा हार मानवता की हुई।
आज बात कर रहें हैं उस महान भूमि के लोग के
बारे में जिसने अपने महानता - उदारता से अपने मेहमानो को पलकों पर बिठा लिया हैं। मैं यहाँ के लिए प्रवासी हूँ। करीब 10 साल होने को आएं यहां रहते। इन वर्षो में जो प्यार और सम्मान मिला इसकी गाथा कई वर्षो तक मेरे कान में गूँजती रहेगी। आज गोपालगंज और सीवान जिलों की बात कर रहा हैं। गोपालगंज जिले के एक छोर पर मैं(बरौली) रहता हूँ और दूसरे छोर पर वह शहर(मीरगंज) हैं जो आज सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा हैं।
हाय! आखिर किसकी नज़र मेरे जिलों को लग गई।
इस घटना के सूत्रधार कौन हैं? घटना का प्लॉट कहाँ बना? पुलिस इन सब मामलों में अनुसंधान कर रही हैं।
पहले उस घटना का जिक्र करते हैं जिसका प्रत्यक्ष रूप से मेरे परिवार के लोग शिकार बने।
दिन: शुक्रवार
तारीख: 15/04/2016
स्थान: दरबार मस्जिद,सीवान
मम्मी पापा बहन के घर सीवान गए हुए थे। बहन को पास के प्राइवेट डॉक्टर के प्रसव केंद्र पर ले जाया गया था। दोपहर साढ़े 12 बज रहे थे पिताजी जुम्मा पढ़ने के लिए पास के मस्ज़िद दरबार में चले गए। जब नेमाज पढ़ने के लिए सब लोग खड़े होने लगे। उसी समय के 10 मिनट पहले से ही अलग-अलग ट्रॉली पर तकरीबन 15-20 डीजे बिल्कुल मस्जिद के गेट पर आकर बजने लगे। इसकी सूचना फौरन पुलिस को मिली। पुलिस भारी बल संख्या में तुरंत पहुँची। पुलिसवालें एक हाथ से दुसरे हाथ से जोड़ते हुए शृंखलाबद्ध में खड़े हो गए। सभी नेमाज पढ़ने वालों को एक-एक कर के वहां से स्कोर्ट कर के जुलूस के विपरीत गली से भेजा गया।
मैं घर पर अभी नही हूँ,यह सारी बात बहन का हाल जानने के क्रम में पिताजी से पता चला। पिताजी ने बताया आज यहां दो गुटों में झगड़ा होते-होते बचा। बिना किसी अनहोनी आशंका के 2 घन्टे बाद सीवान शहर को छोड़ बरौली पहुँच गए थे। यहाँ आने पर पता चला वहां रोड़ेबाजी हो रही हैं और पुलिस स्थिति को नियंत्रण करने के लिए हवाई फायरिंग और लाठी चार्ज का सहारा ले रही हैं।
ठीक इसीतरह की घटना मीरगंज में होने लगी। पहले डीजे बजाने को लेकर थाना रोड में दोनो गुटों के लोगो में विवाद शुरू हुआ। धीरे-धीरे यहां स्थिति और बेकाबू हो गई। भीड़ को जब मीरगंज में नियंत्रण लेने की कोशिस की जा रही थी तब अचानक भीड़ हिंसक रूप ले ली। मस्जिद के पास पड़े 2 मोटरसाइकिल को आग के हवाले कर दिया गया। फिर मस्ज़िद को आग के हवाले कर दिया गया। ये जो बात आपकों बता रहा हूँ यह बात मुझे आफताब भाई ने बताई जो मेरे जानने वाले हैं।उनका मस्जिद के बगल में कपड़े की दुकान हैं और उन्ही की दुकान के बगल में धार्मिक किताबों की दुकान हैं और इसे भी आग के हवाले कर दिया गया जिससे हिंसा और भड़क गई।
आइये अब मीरगंज के जुलूस की बात करते हैं। अमन,जो की मेरा बहुत ही अच्छा दोस्त हैं वह भी इसी जुलूस में शामिल था। फोन पर बात करते हुए अमन बोल रहा था मुझे समझ नही आ रहा था कि मेरे सामने क्या चल रहा हैं? मेरी मम्मी आमतौर पर शाम को घर से बाहर निकलने नही देती हैं और जब उन्हें पता चला तो बहुत घबड़ा गई थी। भीड़ में भगदड़ मच गई थी और हम लुकते-छुपते घर पहुंचे।
रामनवमी के दूसरे दिन और तीसरे दिन भी झड़प हुआ और दोनो गुटों के तरफ से पथराव हुआ। 15-20 मोटरसाइकिल समेत एक जीप को आग के हवाले कर दिया गया। सौभाग्य हो ऐसे डीएम का जिन्होंने प्रशासन को तुरंत अलर्ट कर दिया जिससे स्थिति को ज्यादा बिगड़ने नही दिया और इसे नियंत्रण में ले लिया गया।
कल 17 अप्रैल को जब कुछ घन्टो के लिया छूट दिया गया तो अचानक मना करने के बाद भी मरछिया देवी चौक के पास सैकड़ो लोग जुलूस लेकर चल दिए। वही दूसरे पक्ष को मना करने के बावजूद कि जुलूस के तरफ ना जाये लेकिन वे चल दिए और फिर आपस में दोनो पक्ष लड़ने-मारने और पत्थरबाजी करने लगे। जिसके कारण मजबूरन दोनो पक्षो के 104 लोगों पर प्राथमिकी दर्ज हुई। जिसमें एक पक्ष के 48 लोग तथा दूसरे पक्ष के 56 लोगों पर मामला दर्ज हुआ।
बाद में शांति मार्च माले पार्टी के बैनर तले निकाला गया जिसमें दोनो समुदाय के लोग शामिल हुए। वही सीवान में भी 18 लोग को हिरासत में लिया गया।
यह घटना अचानक से तो नही घटी। पहले इसका रूपरेखा तो बनाया गया होगा। जुलूस में शामिल अमन को यह बात पता नही थी कि आगे क्या होने जा रहा हैं। बस तलवार लेके जुलूस में शामिल हो गया। लेकिन जिस विश्व....सेना के बैनर तले जा रहा था जो इस जुलूस को नेतृत्व कर रहें थे उन्हें तो पता ही था कि दो धर्मो के बीच आग किस तरह से लगाया जाता हैं। क्या यह सिर्फ इत्तेफाक हैं दोनो जगह घटना घटी उसमें शामिल लोग इसी बैनर के थे? क्या अमन दुबारा से कभी शामिल होना चाहेगा ?
फेसबुक पर सुधीर चौधरी का फैन क्लब का पेज बना हैं । इस पेज से उन हिन्दू धर्मो के जातियों के लोगों को गालियां दी जा रही थी जिन्होंने अपना वोट नीतीश को दिए हैं और कहा जा रहा था और चुनो 'नीतीश की सरकार-मुल्लों की सरकार' को जो हिंदुओं की मदद नही कर रही हैं। उन्हें इसकी गलती बताकर एहसास दिलाया जा रहा था।
इसी विश्व...सेना के लोग फेसबुक पर सवाल पूछ रहें हैं,क्या हिन्दू अपना त्योहार नही मनाये? जबकि उन्हीं के द्वारा यह घटना प्रायोजित की गई थी। दर्जनों पोस्ट 'शांति कौम' के ऊपर लिखी गई और शेयर की जा रही हैं। यह घटना कुछ लोगों ने जानबूझ कर की। न इधर से धीरज दिखाया गया और न ही उधर से। दोनो आपस में लड़ने लगे और बहुत आसानी से उपद्रवियों के जाल में फस गए। हम आपके यहाँ दिवाली की खुशियाँ में हिस्सा लेते आये हैं वही आप मेरे यहाँ ईद में आके चार चाँद लगा देते हैं। हमारी आपकी साझी संस्कृति विरासत में मिली हैं। हमारे दुःख में आप रोते हैं,आपके सुख में हम हँसते हैं। साथ-साथ बिजनेस भी करते हैं और साथ-साथ लंबी उड़ान के ख़्वाब भी देखते हैं। अब जब ऐसा लग रहा हैं कि यह टूट रहा हैं यही वक़्त हैं इसे बचाने का। बचपन से साथ पढ़ते-लिखते-खेलते हुए कई लम्हों का हिस्सा बने। क्या उसे बस याद भर ही रख देना चाहेंगे। हम-आप मिलके समझाते हैं अपने क़ौम को क्योंकि हमने मजबूत नीव बनाई हैं। इस इमारत को अंतिम सांस तक गिरने नही देंगे। पूरी दम-खम हिम्मत लगा देंगे। आपमें ही कोई मुझे समझाया था कि कोशिस करने वालों की कभी हार नही होती हैं। आपका साथी कोई फेसबुक या वाट्सऐप से नफरत भरी पोस्ट लिख रहा हो या शेयर कर रहा हो तो उसे रोकिये समझाइये कि वह क्या गलत कर रहा हैं।
अगर फिर भी नही माने तो स्क्रीन शॉट लेकर मुझे दीजिये ताकि मैं उसके विरुद्ध FIR कर सकूँ ताकि समाज खुशहाल और स्वस्थ रह सकें।
हम कभी इंसान थे लेकिन यह पहचान अब हम खो रहें हैं। ऐसा ही चलता रहा तो एकदिन इसका वजूद भी ख़त्म हो जायेगा।
आख़िर दोष किसपर मढ़े सब तो अपने ही हैं।
विशेष रूप से आपलोग बहकावे में न आए।
हमारी "शांति" ही इन लड़ाने वालों की हार हैं।
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