बाप-बेटे की इमोशनल इंस्पिरेशन कहानी है संजू- मंजर आलम

20:48:00 Manjar 4 Comments

कलाकार: रणबीर कपूर, परेश रावल, अनुष्का शर्मा, विकी कौशल, दीया मिर्जा, मनीषा कोईराला, जिम सर्ब
निर्देशक: राजकुमार हिरानी 
निर्माता: विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी
संगीत: ए. आर. रहमान व अन्य
रेटिंग: ★★★★ (4 स्टार)
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'संजू' बाप बेटे के भावनात्मक रिश्ते की कहानी है। अगर आप कहेंगे 3 घण्टे में ही किसी की जीवन की कहानी बनाकर परदे पर पेश कर दी जाय तो वह लगभग नामुमकिन है। बोयपिक बनाते समय कहानी ज्यादा लंबी न हो जाये इसलिये टाइम स्पेस के हिसाब से कहानी को कम्प्रेश करना पड़ता है। संजू के जीवन के विभिन्न कड़ियों को जोड़ने के लिए हिरानी ने कुछ नए किरदार जोड़ कर रचनात्मक आजादी ली है। मसलन अनुष्का शर्मा द्वारा निभाया गया किरदार हिरानी और अविजात हैं। विकी कौशल द्वारा निभाया गया किरदार संजय के दो तीन करीबी दोस्तों का मेल है और मुख्यतः परेश घिलानी पर आधारित है। फिल्म में तीन चीजे जो हिरानी को फिल्म बनाने में मजबूर करता है। पहला बाप-बेटे का रिश्ता दूसरा दोस्ती और तीसरा कवेस्चन मार्क!
बाप के लिगेसी के आगे दब जाना है संजू की कहानी। जुलाई 1994 में संजू को आर्म्स एक्ट के तहत संजू को जेल जाना पड़ा। देश के मशहूर हस्ती और सांसद होने के बावजूद वह अपने बेटे को बचा नही सकें।


संजू के पिता सुनील एक इंटरव्यू में कहते हैं, जिंदगी में जो मिलता है वो होता है, हमने उसको बर्दाश्त किया। ढिंढ़ोरा नहीं पीटा। संजू में मर के फिर जीने की हिम्मत उनके पिता से मिली।


सुनील कहते है कि यदि आजादी के बाद सड़क पर लेट कर हम अपने को ऊपर उठा सकते हैं। जेल में बिता रहे अपने बेटे को कहते है कि बेटा! तू फेस कर।

सुनील दत्त से जब पूछा गया कि इतना सब कुछ हो रहा तो आप किसको दोष देंगे। दत्त साहब इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि वह अपने किस्मत को दोष देंगे। अंडरवर्ल्ड के साथ दोस्ती पर दत्त साहब कहते है कि कलाकर है। सभी से मिल सकता है।
वैसे उन जमानो में फिल्म इंड्रस्टी में अंडरवर्ल्ड की तूती बोलती थी। संजय दत्त इस तरह के लोगों से दोस्ती के सवाल पर फिल्म में 'डर' का कारण बताते हैं। संजय की ड्रग्स एडिक्शन की कहानी भावनात्मक रूप से काफी झकझोर देती है। संजय पहली बार ड्रग्स कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए लेते हैं। और फिर संजू की जिंदगी में कई सिज़्यूएशन ऐसे आते है जिससे कि वह ड्रग्स एडिक्ट हो जाता है। माँ के कैंसर के बारे में जब उसे पता चलता है तो वह ड्रग छोड़ना चाहता है कुछ महीने ऐसे गुजारता भी है लेकिन बिना ड्रग उसकी हालात ख़राब होने लगती है। न चाह कर भी वह ड्रग लेता है और ड्रग के ओवरडोज़ में ऐसा हो जाता है कि अपनी माँ की मौत भी उसे हकीकत नहीं लगता।
संजू खुद कहते है कि वह अपने पिता से ज्यादा माँ के करीब रहें हैं। लेकिन फिर भी वह ड्रग्स की लत से इस कदर डूब चूका होता है कि उसे कुछ भी समझ ही नही आ रहा था। उसके आँखों से ठीक से आंसू भी नही बहता। नशे की लत में उसे कुछ समझ नहीं आता है। नरगिस के मौत के तीन साल बाद संजय एक टेप में माँ की आवाज सुनता है। और टेप सुनने के बाद वह लगातार चार दिन रोता रहता है।


एक पिता के तौर पर सुनील दत्त का संघर्ष काफी प्रेरणादायक रहा है। सुनील दत्त द्वारा दिए गए कई इंटरव्यू में अपने बेटे के संघर्षों पर काफी बात करते है। बेटे कैसा भी हो अपने पिता के लिए शान रहता है। संजू के बुरे आदतें और बुरे दौर में भी पिता ने संजू का हाथ हमेशा थामे रहा। रिहैब में भेजने से लेकर कोर्ट-पुलिस के चक्कर तक। सभी जगह से सिर्फ उम्मीद ही छोड़कर आते हैं। पिता के अंदर में अपने बेटे के लिये जो भावना रहती है वह कई बार जगज़ाहिर नही करते। लेकिन अपने बेटे के लिए हमेशा से प्रोटेक्टिव ही रहते है।

संजू की जीवन की निर्णायक घटनाएं पर बनी यह फिल्म संजू को कुछ हद तक परिभाषित करती है। बचपन, नशे की लत, लड़कियों की लत, अवैध हथियार, बम विस्फोट और फिर से फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित होना। आपको बहुत कुछ देखने को मिल जायेगा। सिनेमेटोग्राफी, लोकेशन, संगीत और स्क्रीनप्ले सब कमाल का है। और हो भी क्यों न हो हिरानी की यह पांचवी फिल्म है। और वह अपने प्रोडक्ट को फाइनल करने से पहले कई एंगल से जांचते हैं। संजू को हटा कर एक सामान्य आदमी को भी रखे तो भी आपको पूरी कहानी काफी प्रेरणा देगी। ड्रग्स की लत छोड़ने से लेकर बाप से रिहैब में जाने की फरियाद तक। और खुद को साबित करने की ललक। चाहें इंडस्ट्री में या कोर्ट में। आपको रुला देगी। झकझोर देगी।

 फिल्म देखने के बाद लोग कह रहे कि अभी बहुत कुछ देखा जाना बाकि था..खुद संजय ने प्रियमीयर के समय मूवी देखा तो कहा कि और भी पार्ट बनना चाहिए..लेकिन इसपर हिरानी ने कहा कि अक्सर बायोपिक वन टाइम ही बनते हैं। बाकि रनबीर ने शानदार काम किया है। रणबीर और विक्की कौशल के शानदार एक्टिंग के लिए भी एक बार देखी जा सकती है।
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करीब एक साल बाद ब्लॉग पर लौटा हूँ। वापस आकर अच्छा लगा। कोशिस रहेगी की लिखता रहूँ।
काफी दिन बाद दोस्तों संग पटना में मूवी देखी। कुछ महीनों के पटना प्रवास के दौरान हम और मोहित जी साथ मिलकर काफी फिल्में देखी थी। फिर वह मूमेंट क्रिएट करना काफी ऊर्जा भरा वाला रहा। मोहित जी, कुंदन जी, अभय जी और धीरज आप सभी का धन्यवाद। आप लोगों ने मुझे हद से ज्यादा समर्थन किया। अपनत्व का ऐसा एहसास हम सबों में जान फूंक देता है। हाँ, इस दौरान अंकित पांडेय जी को विशेषतौर पर मिस किया।




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