राष्ट्रवाद का ओवरडोज

17:14:00 Manjar 0 Comments

कल खबर आई कि अमेरिका ने भारत में 'बढ़ती असहिष्णुता और हिंसा' पर चिंता जाहिर की। अमेरिका ने भारत सरकार से कहा है कि नागरिकों की सुरक्षा और अपराधियों को सजा दिलाने के लिए वह 'हर संभव प्रयास करे।' असहिष्णुता का चर्चा भारत में नई सरकार के आने से ही प्रमुखता से छाई रही है। 
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, ‘‘सभी तरह की असहिष्णुता से मुकाबला करने और धार्मिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने की कोशिश में हम भारत सरकार और नागरिकों के साथ हैं।’’
भारत में नागरिक सुरक्षा का मामला दिन प्रतिदिन बढ़ता चला जा है। अखलाक मामला के बाद मीडिया ने जब इस तरह के मामलों को कवर करना शुरू किया तो अख़बार के पन्ने ज़ुल्मो से भर गए। अल्पसंख्यक के बाद इसके शिकार दलित भी हो रहें है।
इस हफ्ते की शुरुआत में मध्य प्रदेश के मंदसौर में रेलवे स्टेशन पर गाय के स्वयंभू संरक्षकों ने गोमांस होने की शक में दो महिलाओं की पुलिस की मौजूदगी में पिटाई की थी। लोगों को शक था कि उनके पास गोमांस है। हालांकि उनके पास जो मांस था, वह भैंस का था। पुलिस ने दोनों महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया था।

असहिष्णुता के चर्चा से तो पूरा इंटरनेट का कोना भरा पड़ा। तथाकथित राष्ट्रवादी मीडिया का काम आग में पेट्रोल डालने का ही रहता है। वह लगातार जनमानस में नफरत के घोल इसतरह घोलती है कि लगातार उनकी गाड़ी चलती रहें। आप रोज देखिए ये तथाकथित मीडिया कैसे हरेक छोटे मामलों को राष्ट्रवाद से जोड़ देती है। सांप्रदायिकता अब मीडिया राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीतिक महत्वाकांक्षी के लिए दर्शकों को परोस रही है। यह बहुत बड़ी बात है,इतना कि जब मीडिया के इस चाल को समझ लीजियेगा तबतक आप दलदल में फस चुके होंगे। 30/07/2016 को IIMC के कार्यक्रम में ज़ी न्यूज़ वाले मनोहर पर्रिकर के साथ कश्मीर समस्या में बतौर वक्ता क्या कर रहें थे ? सेना सरकार की है, सरकार ने पैलेट गन के इस्तेमाल को गलत माना। अगले दिन सेना ने भी खेद प्रकट किया। सोशल मीडिया में वो लोग पाला क्यों बदल दिए जो शुरू से पैलेट गन का वकालत कर रहें थे।  सेना सरकार की है और सेना देश की है इसमें बुनियादी फर्क है इसको समझिये। 
Image:Indian Express

अर्नब गोस्वामी सरकार से कहते है कि कश्मीर पर बहुआयामी और बारीकी से की गई पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की ‘ख़बर’ ली जाए।
तटस्थ रहना और सच कहने में फर्क है। सरकार के साथ खड़े रहने मे,चाटुकारिता करने में और सचमुच का पत्रकारिता करने में बहुत फर्क है। पत्रकारिता रिपोर्टिंग के आधार पर होनी चाहिए न की पूर्वाग्रह भरे दिमाग से। 
मीडिया राष्ट्रवाद को लेकर उग्र हो रहा है। वह हर दिन सेना और सीमा के नाम पर राष्ट्रवाद उभारता है। और जब ये ठंडा पड़ता है तब गो रक्षा आ जाता है।
अर्नब गोस्वामी और सुधीर चौधरी का साफ इशारा था कि उन पत्रकारों को बोलने से रोका जाय जो सरकार से सवाल कर रहें हैं। जो सभी पक्ष को सामने ला रहें हैं। पत्रकारों की इस लड़ाई में सरकार के लिए स्वर्णिम पल है कि अब सरकार से बुनियादी सवाल नही पूछा जा रहा है। नौकरी,बेरोजगारी,भुखमरी,सड़क,नाली,बिजली सारा का सारा आधारभूत संरचना ध्वस्त हो गया है। कल फेसबुक पर SCRAE का ग्रुप मिला वे लोग बता रहें थे कि तीन साल इस परीक्षा की तैयारी करते रहें और अचानक से सरकार इस परीक्षा को हटा दी जबकि इसको हटाने के लिए सरकार को ठोस वजह देनी चाहिए थी। SSC में नई नौकरियों का अकाल पड़ गया है। पिछली सरकार के मुकाबले इस सरकार ने करीब 2 लाख कम नौकरियां पैदा की। क्या यह आंकड़े भयावह मंजर पैदा नही करते। क्यों सब इन बातों पर चुप रहना पसंद कर रहें हैं ? यह नही लगता कि जो राजनीतिक पोषित राष्ट्रवाद पैदा किया गया है उसपर हमारी चुप्पी मूर्खता है और कुछ नही। यह राष्ट्रवाद हमारी समस्या तो सुलझा नही सकता लेकिन समस्या जरूर खड़ा कर दिया है। एकतरह से संप्रभुता पर हमला।
सरकारी नौकरियां अब कारपोरेट की जागीर बनने जा रही हैं। आपको नही लगता कि हमें अपनी सरकार से पूछनी चाहिए कि वह नागरिक सुविधा के लिया क्या कर रही हैं ? हमारा मिलेनियम सिटी का जब यह हाल है तब सोंचिये कागज पर उतारे गए स्मार्ट सिटी के लोग अपने शहर को कैसे देख रहें हैं?
मीडिया सवाल पूछने के लिए बने थे। निष्पक्ष रिपोर्टिंग दिखाने के लिए। अफसोस की वह सरकार की प्रचार टीम का हिस्सा बन कर रह गए।
और हर दिन कभी गाय तो कभी सेना के नाम पर हर शाम को स्टूडियों में बैठ कर अदालत लगाते रहतें है।
उनसे कहिये कि वे हमारी सवाल उठाये..नौकरी..नागरिक सुविधा..सब के सब
तटस्थ न बने सच दिखाए। 

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पहली पुण्यतिथि: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की जिंदगी से जुड़े कुछ प्रसंग

23:45:00 Manjar 0 Comments


 देश के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन अब्दुल कलाम आज ही के दिन एक साल पहले हमें छोड़कर चले गए. अब्दुल कलाम हमेशा देश को दिशा दिखाते रहेंगे.

पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम न सिर्फ एक महान वैज्ञानिक, प्रेरणादायक नेता थे बल्कि अद्भुत इंसान भी थे. उन्होंने जिन लोगों के साथ भी काम किया उनके दिलों को छू लिया. आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ प्रेरणादायक प्रसंग

1. एक बार डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) में उनकी टीम बिल्डिंग की सुरक्षा को लेकर चर्चा कर रही थी. टीम ने सुझाव दिया कि बिल्डिंग की दीवार पर कांच के टुकड़े लगा देने चाहिए. लेकिन डॉकलाम ने टीम के इस सुझाव को ठुकरा दिया और कहा कि अगर हम ऐसा करेंगे तो इस दीवार पर पक्षी नहीं बैठेंगे.

2. डीआरडीओ के पूर्व चीफ की मानें तो 'अग्नि' मिसाइल के टेस्ट के समय कलाम काफी नर्वस थे. उन दिनों वो अपना इस्तीफा अपने साथ लिए घूमते थे. उनका कहना था कि अगर कुछ भी गलत हुआ तो वो इसकी जिम्मेदारी लेंगे और अपना पद छोड़ देंगे.

3. एक बार कुछ नौजवानों ने डॉ कलाम से मिलने की इच्छा जताई. इसके लिए उन्होंने उनके ऑफिस में एक पत्र लिखा. कलाम ने राष्ट्रपति भवन के पर्सनल चैंबर में उन युवाओं से न सिर्फ मुलाकात की बल्कि काफी समय उनके साथ गुजार कर उनके आइडियाज भी सुनें. आपको बता दें कि डॉ कलाम ने पूरे भारत में घूमकर करीब 1 करोड़ 70 लाख युवाओं से मुलाकात की थी.

4. डीआरडीओ में काम का काफी दवाब रहता था. एक बार साथ में काम करने वाला एक वैज्ञानिक उनके पास आया और बोला कि उसे समय से पहले घर जाना है. दरअसल वैज्ञानिक को अपने बच्चों को प्रदर्शनी दिखानी थी. डॉ कलाम ने उसे अनुमति दे दी. लेकिन काम के चक्कर में वह भूल गया कि उसे जल्दी घर जाना है. बाद में उसे बड़ा बुरा लगा कि वो अपने बच्चों को प्रदर्शनी दिखाने नहीं ले जा सका. जब वह घर गया तो पता चला कि कलाम के कहने पर मैनेजर उसके बच्चों को प्रदर्शनी दिखाने ले जा चुका था.

5. साहस पर डॉ कलाम ने अपनी एक किताब में एक घटना का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि जब वो SU-30 MKI एयर क्राफ्ट उड़ा रहे थे तो एयर क्राफ्ट के नीचे उतरने पर कई नौजवान और मीडिया के लोग उनसे बातें करने लगे. एक ने कहा कि आपको 74 साल की उम्र में सुपरसोनिक फाइटर एयरक्राफ्ट चलाने में डर नहीं लगा? इस पर डॉ कलाम का जवाब था, '40 मिनट की फ्लाइट के दौरान मैं यंत्रों को कंट्रोल करने में व्यस्त रहा और इस दौरान मैंने डर को अपने अंदर आने का समय ही नहीं दिया.'
(स्रोत:आज तक)

महान वैज्ञानिक होने और देश के राष्ट्रपति बनने के बावजूद एपीजे अब्दुल कलाम में कभी गरूर नहीं आया. उन्होंने हमेशा एक आम आदमी की जिंदगी जीने की कोशिश की. उनकी जिंदगी के ऐसे कई किस्से हैं जो उनकी दरियादिली की छाप छोड़ते हैं.

1. जब मोची और ढाबा मालिक को बनाया मेहमान

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम साल 2002 में राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार केरल गए थे. उस वक्त केरल राजभवन में राष्ट्रपति के मेहमान के तौर पर दो लोगों को न्योता भेजा गया. जानते हैं कौन थे ये दोनों मेहमान?

पहला…मोची और दूसरा…एक छोटे ढाबे का मालिक. दरअसल कलाम ने काफी दिनों तक केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में रहे थे. तभी से उनकी सड़क पर बैठने वाले मोची से जान पहचान हो गई थी. उस दौरान अक्सर वो एक ढाबे में खाना खाने जाया करते थे. राष्ट्रपति बनने के बाद भी डॉ कलाम इन्हें नहीं भूले…और जब मेहमानों बुलाने की बारी आई तो कलाम ने उन दोनों को खासतौर से चुना.

 2. ट्रस्ट को दान कर देते थे अपनी पूरी तन्ख्वाह

 डॉ कलाम ने कभी अपने या परिवार के लिए कुछ बचाकर नहीं रखा. राष्ट्रपति पद पर रहते ही उन्होंने अपनी सारी जमापूंजी और मिलने वाली तनख्वाह एक ट्रस्ट के नाम कर दी. प्रोवाइडिंग अर्बन एमिनिटीज टू रुरल एरियाज ..यानी PURA नाम का ये ट्रस्ट देश के ग्रामीण इलाकों में बेहतरी के लिए काम में जुटा हुआ है. अमूल के संस्थापक और देश में श्वेत क्रांति लाने वाले डॉ वर्गीज कुरियन ने इस बारे में डॉ कलाम से पूछा …तो उनका जवाब था ‘चूंकि मैं देश का राष्ट्रपति बन गया हूं, इसलिए जबतक जिंदा रहूंगा सरकार मेरा ध्यान आगे भी रखेगी ही. तो फिर मुझे तन्ख्वाह और जमापूंजी बचाने की क्या जरूरत. अच्छा है कि ये भलाई के काम आ जाएं.’

 3. जूनियर वैज्ञानिक व्यस्त था तो उसके बच्चे को खुद प्रदर्शनी ले गए

 डॉ कलाम जब DRDO के डायरेक्टर थे…बात तब की है. अग्नि मिसाइल पर काम चल रहा था. काम का दवाब काफी थी. उसी दौरान एक दिन एक जूनियर वैज्ञानिक ने डॉ कलाम से आकर कहा कि ‘मैंने अपने बच्चों से वादा किया है कि उन्हें प्रदर्शनी घुमाने ले जाऊंगा. इसलिए आज थोड़ा पहले मुझे छुट्टी दे दीजिए.’ कलाम ने खुशी-खुशी हामी भर दी. उस दिन वो जूनियर वैज्ञानिक काम में ऐसा मशगूल हुआ कि उसे प्रदर्शनी जाने की बात याद ही नहीं रही. जब वो रात को घर पहुंचा तो ये जानकर हैरान रह गया कि डॉ कलाम वक्त पर उसके घर पहुंच गए और बच्चों को प्रदर्शनी घुमाने ले गए…ताकि काम में फंसकर उसका वादा न टूटे.

 4. मंच पर बड़ी कुर्सी पर बैठने से मना किया

 देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद भी डॉ कलाम को गुरूर कभी छू नहीं पाया था. साल 2013 का किस्सा सुन लीजिए. IIT वाराणसी में दीक्षांत समारोह के मौके पर उन्हें बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था. कार्यक्रम में मंच पर 5 कुर्सियां लगाई गई थीं, जिसमें बीच वाली कुर्सी पर डॉ कलाम को बैठना था. लेकिन वहां मौजूद हर शख्स उस वक्त हैरान रह गया जब कलाम ने बीच वाली कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया . वजह थी बीच वाली कुर्सी बाकी चार कुर्सियों से बड़ी थी. कलाम बैठने के लिए तभी राजी हुए जब आयोजकों ने बड़ी कुर्सी हटाकर बाकी कुर्सियों के बराबर की कुर्सी मंगवाई.

 5. IIM अहमदाबाद की कहानी

डॉ कलाम में एक बड़ी खूबी ये थी कि वो अपने किसी प्रशंसक को नाराज नहीं करते थे. बात पिछले साल की है. डॉ कलाम IIM अहमदाबाद के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनकर गए. कार्यक्रम से पहले छात्रों ने डॉ कलाम के साथ लंच किया और छात्रों की गुजारिश पर उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने लगे. कार्यक्रम में देरी होता देख आयोजकों ने छात्रों को तस्वीरें लेने से मना किया. इस पर कलाम ने छात्रों से कहा कि ‘कार्यक्रम के बाद मैं तबतक यहां से नहीं जाऊंगा जबतक आप सबों के साथ मेरी तस्वीर न हो जाए.’ ऐसे थे डॉक्टर कलाम.

 6. मां की जली रोटी पर पिता के व्यवहार ने दी सीख

 मिलने आने वाले बच्चों को डा. कलाम अक्सर अपने बचपन का एक किस्सा बताया करते थे. किस्सा तब का है …जब डॉ कलाम करीब आठ-नौ साल के थे. एक शाम उनके पिता काम से घर लौटने के बाद खाना खा रहे थे. थाली में एक रोटी जली हुई थी. रात में बालक कलाम ने अपनी मां को पिता से जली रोटी के लिए माफी मांगते सुना. तब पिता ने बड़े प्यार से जवाब दिया- मुझे जली रोटियां भी पसंद हैं. कलाम ने इस बारे में पिता से पूछा तो उन्होंने कहा- जली रोटियां किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, कड़वे शब्द जरूर नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए रिश्तों में एक दूसरे की गलतियों को प्यार से लो…और जो तुम्हें नापसंद करते हैं, उनके लिए संवेदना रखो.

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