स्टार्ट अप इंडिया- स्टैंड अप इंडिया

16:59:00 Manjar 2 Comments

दिनांक: 16 जनवरी 2016
स्थान :दिल्ली

इस दिन दिल्ली में स्टार्टअप इंडिया को लेकर सरगर्मी बड़ रही थी। जगज़ाहिर हैं कि इसमे प्रचुर संभावनाएं दिखती हैं। प्रधानमंत्री युवाओं में उद्यमिता को बढ़ाने के लिए महत्वाकांक्षी योजना बता रहें थे।  स्टार्टअप, यानी वो बिजनेस जो अभी शुरू हुआ या होने वाला है। ज्यादातर स्टार्टअप्स युवा उद्यमियों ने शुरू किए हैं और इसमें बहुत संभावनाएं दिखती हैं। नवोन्मेषों का पेटेंट हासिल करने के लिए फीस बहुत कम यानी 80 फीसद कटौती का ऐलान नए कार्यक्रम में शामिल है।
सरकार ने नए उद्यमियों के के लिए चार साल तक हर साल ढाई हजार करोड़ रुपए यानी दस हजार करोड़ का एक कोष बनाने का ऐलान किया है। इन उद्यमियों को कानूनी जटिलताओं से छुटकारा दिलाने का भी वायदा किया गया।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा कि सरकार ने बिजनेस करने के लिए बेहतर वातावरण बनाया है। अब लोगों को मंत्रालय के चक्कर नहीं काटने पड़ते। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली में जुटे देश दुनिया के स्टार्टअप को एक खुशखबरी दी। उन्होंने बताया कि सरकार ने स्टार्टअप के लिए नए टैक्स नियम बना लिए हैं जो बिजनेस को बढ़ावा देंगे। इनमें से कुछ नियम जल्द लागू किए जाएंगे।

देश और विदेश से 40 से ज्यादा सीईओ इस कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं। स्नैपडील के फाउंडर कुणाल बहल, फ्लिपकार्ट के फाउंडर सचिन बंसल, इनमोबी के फाउंडर नवीन तिवारी, ओयो रूम्स के रितेश अग्रवाल और टीम इंड्स के दिलीप छाबड़िया इसके साथ विदेशी दिग्गज उबर के फाउंडर ट्राविस कालानिक, वीवर्क के एडम नुमैन्न, सॉफ्टबैंक के सीईओ मासायोशी और वर्ल्ड बैंक के कंट्री हेड ओन्नो रुह्ल भी स्टार्ट अप इंडिया में शिरकत कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने युवा उद्यमियों को काम-धंधे के कुछ विशेष क्षेत्र भी सुझाए। मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, हस्तशिल्प और नवोन्मेष जैसे क्षेत्र । साइबर सिक्योरिटी के लिए कुछ नया कर दिखाने की बात कही।

पेटीएम के फाउंडर और सीईओ विजय शेखर शर्मा के मुताबिक देश में टेक्नोलॉजी का बूम चल रहा है और 2020 तक भारत दुनिया का सबसे ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल करने वाला देश होगा। जोमेटो के फाउंडर और सीईओ दीपेंद्र गोयल के मुताबिक स्टार्टअप की राह सरकार के लिए आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि 1-2 साल में बदलाव नहीं लाया जा सकता। आईस्पिरिट के फाउंडर शरद शर्मा को स्टार्टअप इंडिया योजना से बहुत उम्मीदें हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को देश की इंडस्ट्रियल पॉलिसी को नए सिरे से बनाने की जरूरत है ताकि स्टार्टअप को बढ़ावा मिले।

नीतियां सही दिशा में बड़ी तो निवेश बढ़ेगा और नई नौकरियों के मौके भी बढ़ेंगे। कई बार एक ही तरह दर्जनों कम्पनियां लाइन में खड़ी हो जाती हैं। जिससे नए स्टार्ट अप वाले देखादेखी खोल तो लेते हैं परंतु काफी घाटा उठाना पड़ता हैं। सही समय पर जमीन नही और जब तक जमीन मिले समय बीत चुका होता हैं।

स्टार्टअप्स के पोस्टर बॉय और ओयो रूम्स के रितेश अग्रवाल ने कहा कि भारत में स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिलने से खुशी है। ओयो रूम के नौजवान रितेश अग्रवाल वह पहले शख्स थे, जिन्होंने इस विचार वाले फाउंडेशन की फेलोशिप हासिल की थी। फिर वहां से  रकम की बदौलत उन्होंने हिन्दुस्तान के स्टार्ट अप्स की सूची की मेरिट लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा लिया।

भारत में अभी आधारभूत संरचना की भारी कमी हैं। कई नीतियां सिर्फ कुछ राज्यों के लिए ही हो जाती हैं। या इसे यूँ कहें INDIA विकसित देश हैं तो हिन्दुस्तान विकासशील। इन दोंनो का बराबरी पर लाना पड़ेगा तभी जाके समुचित लाभ सब तक सुनिश्चित होगा। भारत में सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर पर बहुत सारी निवेश की जरूरत हैं।

ओला कैब्स के भाविश अग्रवाल ने कहा कि सरकार को स्टार्टअप बनाने और बंद करने के नियम आसान करने चाहिए। वहीं कुणाल बहल(स्नैपडील) ने कहा कि नई नीति के बाद  को अच्छा समर्थन मिलेगा और टैक्स को लेकर सरकार सही फैसला करेगी।

सबसे जरूरी इन सबसे ऊपर बात हैं कि किसी उद्यम का नया या नवोन्वेषी होना और दूसरा जोखिम उठाने या घाटा उठाने का हौसला होना ।

सामाजिक उद्यमी पर भी खूब बातें हुई। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस विशेष शब्द का कई बार जिक्र किया। व्यापार की बजाए उन्होंने सामाजिक उद्यमिता यानी social  entrepreneur पर जोर दिया।
व्यापार या उद्योग के बजाए सामाजिक लाभ के उद्यम को कैसे हासिल किया जाएं।

इस स्कीम को इस तरह से पेश किया गया हैं की यह आपके दुकान पर कही लाल सील ना लगा दे। जैसे यह स्कीम को पाने के लिए 125 शब्दों वाली परिभाषा को सशर्त पूरा करना होगा। जिसमें आपको आंतरिक-मंत्रालय का सर्टिफिकेट परमिशन चाहिए । 1991 से चली आ रही बहुत सारी कागजी कारवाही और सिफारिशों की जरूरत पड़ेगी। सरकार जो 10,000 करोड़ रुपये जो निवेश करेगी वह venture capital funds से लाएगी। जो की रजीस्टर्ड हैं market watchdog, SEBI से। हमेशा से ही  Venture capital funds रिस्की बिजनेस मॉडल पर काम किया हैं। इसकी असफलता दर काफी ज्यादा ऊंची हैं। आमतौर पर हर 10 में से 9 स्कीम फ्लॉप रही हैं।

आलोचक कह रहें सिर्फ अनिल अम्बानी पर सवा लाख करोड़ रुपए का कर्ज है और अडाणी पर लगभग 75,000 करोड़ रुपए का कर्ज है। भारत सरकार अपने करोड़ों युवाओं के लिए महज दस हजार करोड़ रुपए का बजट स्टार्ट अप के लिए रखती है। यानी सीधे तौर पर एक बड़े रोजगार और विशाल देश के लिए इतना पैसा काफी नही हैं।
एक और इसी तरह की संस्था थी जिसका नाम  थिएल फाउंडेशन हैं। सन 2010 में स्थापित यह फाउंडेशन पहले 'ट्वेन्टी अंडर ट्वेन्टी' के नाम से जाना जाता था। लेकिन आज इसका नाम है थिएल फाउंडेशन। यह फाउंडेशन वैज्ञानिक शोध, स्टार्ट अप तथा सामाजिक कार्यों के लिए फेलोशिप देती है। लेकिन जरूरी शर्त हैं कि आपको स्कूल या कॉलेज ड्रॉप आउट होना चाहिए।

2010 से 2014 तक भारत में तकरीबन 4000 नई स्टार्ट अप कम्पनियां खुली जिनमें खरबों रुपए का निवेश हुआ। इसका श्रेय मनमोहन सिंह को दिया जाना चाहिए। जिसका नतीजा यह रहा भारत स्टार्ट अप पर दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच गया।
स्टार्ट अप के लिए तीन साल काफी नही है। यानी 2019 में समाप्त। 2019 में लोकसभा का चुनाव हैं इसलिए समाप्त। अगर ऐसा हैं तो दुर्भाग्यपूर्ण क्योंकि देश प्रथम होता चुनाव तो होते रहते हैं। नीतियां समय को देख कर नही देश की जरूरत के हिसाब से लागू किये जाने चाहिए।

खैर,आपकी सोंच और बाजार की पकड़ ही आपकी दिशा तय करेगी। इसके लिए  अन्तर्दृष्टि की जरूरत पड़ती हैं। एक विचारक और साथ में एक दूरदर्शी प्रशासक । जोखिम से लड़ना,हर नकारत्मक में सकारत्मक तलाश करना।

(यह पोस्ट मूल रूप से पाठकों के अपील पर लिखी गई हैं।)


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फ़िल्म रिव्यू: एयर लिफ्ट

21:06:00 Manjar 0 Comments





आपको शायद वह क्षण याद होगा जब इराक ने तेल के लिए कुवैत पर हमला किया था जिस का नतीजा गल्फ युद्ध था।
1990 में गल्फ वॉर में फंसे एक लाख 70 हजार भारतीयों को सुरक्षित निकलने के लिये इंडियन एयरलांइस  ने 59 दिन तक 500 फ्लाइट्स से दुनिया का सबसे बड़ा एयर रेस्क्यू किया था। भारत सरकार की तब की बड़ी कामयाबी थी।
  भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए तब के विदेश मंत्री आई. के. गुजराल इराक में सद्दाम हुसैन से मिलने पहुंचे थे। सद्दाम ने सरकार को भारतीयों के रेस्क्यू ऑपरेशन करने की इजाजत दे दी थी।

हालांकि एयरलिफ्ट का रंजीत कोटियाल  महज एक काल्पनिक पात्र हैं। आपको डॉक्यूमेंट्री और फीचर फिल्म में अंतर तो समझना पड़ेगा। लेकिन एक दो बार इंटरव्यू में अक्षय ओरिजिनल बताएं हैं।

अक्सर इस तरह की फिल्मों में गाथा ऐसे बहादुरों की होती हैं जिसको अब तक गाया गया न हो(अंधीमूल्यित)। राजा कृष्ण मेनन की लाजवाब निर्देशन ने फिल्म को कसी व बांधे रखती हैं। आप चाहकर भी कुर्सी से उठ नही सकते।
इंसान या तो सब के लिये स्थिति से लड़ता हैं या फिर अपना जान विकट परिस्थिति से लड़ते हुए किसी तरह मुसीबत से स्वयं को उससे अलग कर लेता हैं और एक वाक्य में औरों को मुसीबत में छोड़कर खुद भाग जाता हैं। दोनों बातें गलत नही हैं। लेकिन साहसिक बनकर,सबकी परवाह कर,मानवता के मूल्यों को बीच मंझधार में ना छोड़कर । हर सांस तक लड़ जाना,महानता की ये बेजोड़ मिसाल हैं।

रंजीत कोटियाल(अक्षय कुमार) एक सफल और शातिर बिज़नेस मैन हैं। जो खुद को कुवैती मान चुका हैं। 'एयरलिफ्ट' रंजीत कटियाल, उनकी पत्नी अमृता और बच्ची के साथ उन सभी एक लाख सत्तर हजार भारतीयों की कहानी है, जो ईराक-कुवैत युद्ध में  फंस गए हैं। उनके साथ उनका जिंदगी भर की कमाई भी दांव पर लग गया हैं। हर वक़्त स्वयं और अन्य लोगों को जिंदगी की जद्दोजहद से लड़ता देख रंजीत का दिल पिघल जाता हैं। हर वक़्त क्रूर,निर्मोही,अमानवीय और अत्याचार की घटनाओं को महसूस करते रंजीत फैसला करता हैं कि वह अन्य भारतीयों को भी इस मुसीबत से निकाल कर रहेगा।
इसके लिए वह इराक के एक मेजर से बात  करता है, लेकिन वो इतनी बड़ी रकम की मांग करता है, मुश्किल हालात में यह रकम जुटाना मुमकिन नही लगता।
भारत में उसका संपर्क एक अधिकारी से होता है, जो उसकी मदद करना तो चाहता है, लेकिन मंत्रियों का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार के कारण अधिकारी मदद करने में असमर्थ हो जाता हैं। थक- हारकर फैसला करता हैं कि वह  बगदाद जायेगा और जाता है ताकि वह वहां उच्चाधिकारियों से बात कर कुवैत से निकलने का कुछ इंतजाम कर सके। बातचीत के बाद उसे संभावना दिखती है। उसे भारत से रसद लेकर कुवैत आ रहा एक पानी के जहाज टीपू सुल्तान में भारतियों को ले जाने की अनुमति मिल जाती है। लेकिन एन वक़्त पर  कुवैत संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप होता है तो टीपू सुल्तान को वापस जाने के लिए कह दिया जाता है।
भारत लौटने के सारे रास्ते जब बंद हो जाते हैं तभी एक रात संजीव कोहली के प्रयास रंग लाते हैं। वो रंजीत को फोन पर कहता है कि वह सभी भारतियों को लेकर ओमान आ जाए, जहां से एयर इंडिया के विमान द्वारा उन्हें एयरलिफ्ट करा लिया जाएगा। रंजीत बखूबी जानता हैं कि यह काम नामुमकिन है, रंजीत बहुत सारे लोगों के साथ ओमान की तरफ निकल जातें हैं। और फिर होता हैं दुनिया का सबसे बड़ा और सफल ऑपरेशन।

एक्शन कुमार, खिलाड़ी कुमार जैसे नामों से मशहूर अभिनेता अक्षय कुमार की  फिल्मों में एक्शन या कॉमेडी न हो तो शायद उनके प्रशंसकों को निराशा हो सकती है। अपने रूटीन फिल्मों से अलग अक्षय कुमार साल में एक दफा जरूर क्लास वाली फिल्में ले आते हैं। स्पेशल 26,हॉलिडे,बेबी और अब एयर लिफ्ट काफी रोमांच पैदा करती हैं। मुझे याद हैं स्पेशल 26 सिर्फ 'मनोज बाजपेयी' के लिए गया था। लेकिन 'अक्षय' ने तब चौकाया था। ऐसा नही हैं कि वे अब उलजलूल और फूहड़ द्विअर्थी वाले फिल्में नही करते। 2 घंटे लम्बी फ़िल्म में कई जगह बोर करती हैं,लेकिन अगले ही पल फिल्म रफ़्तार पकड़ लेती हैं। फिल्म में पैनापन की भी कई जगह कमी दिखी।
निमरत कौर काफी अच्छी लगी हैं। मैं यह कहूँगा यह फिल्म 'देशभक्ति' से ज्यादा 'मानवता बल' पर जोर देती हैं। फिल्म के प्रोमो देखकर लग रहा था कि गानो का क्या काम,लेकिन फिल्म में जरूरत के अनुसार अच्छे लगते हैं। फिल्म में दो जगह विशेषकर बेहद उम्दा हैं जब अक्षय कुमार का ड्राइवर की मौत हो जाती हैं और उसकी पत्नी बिना कहे सब कुछ कह देती हैं। और दूसरे सिन में जब लाखों भारतीय एक छत के नीचे रहते हैं। लेकिन जरा सोंचिये विदेशों में अंधाधुन कमा रहें  भारतीय सिर्फ मुसीबत के समय ही एम्बेसी और सरकार की याद बड़ी सिद्दत से क्यों आती हैं?
हम भले देश को भूल जाये लेकिन देश हमें नही भूलता
सिनेमा घर से बाहर निकलते हुए आप ये गाना आपके जुबां पर चढ़ सकती हैं-
"दिल ले डूबा डूबा मुझको अरेबिक आँखों में
आज लूटा लूटा मुझको फरेबी बातों ने
खामखाँ सा सीने में,प्यार के महीने में
एक ही इशारे पे दिल तुझे दे दी"
"के तेरे लिए दुनिया छोड़ दी हैं
तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ
यह तु कभी  सोंच ना सके"

निर्माताः भूषण कुमार, अरुणा भाटिया, निखिल आडवाणी
निर्देशकः राजा कृष्ण मेनन
सितारेः अक्षय कुमार, निमरत कौर, फरयान वजीर, इनामुल हक, पूरब कोहली, कुमुद मिश्रा
रेटिंग : ***1/2


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रोहित ने आत्महत्या नही की बल्कि उसे मार दिया गया।

17:57:00 Manjar 0 Comments



रोहित वेगुला कौन था? रोहित को किसने मारा? रोहित जैसा आकांक्षी युवा को मरने पर कौन सा सिस्टम मजबूर कर रहा हैं? रोहित ने सुसाइड नोट में मौत का जिम्मेदार किसी को नही बताया। लेकिन उसके खून के छींटे हम पर क्यों पड़ गए। दसवीं सताब्दी के सामंतवादी व्यवस्था आज भी क्यों चल रहें हैं? एक नवजवान लड़का,महत्वाकांक्षी लड़का, भारत को सामंतवादी व्यवस्था से लड़कर आजाद कराने के लिए प्रतिबद्ध था। ऐसा नही हैं कोई पहली बार व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हुए इस खालीपन से भर जाते हैं। पूरा तंत्र ही सक्रिय हो गया,ABVP से आगाज कर केंद्रीय मंत्री बंडारु तब फिर स्मृति ईरानी सब के सब इन छात्रों को रास्ता से हटाने के लिये सभी हथकंडे अपनाने लगे।

मगर हार गया क्योंकि इस जातिवादी को सहने की उसकी आदत नही थी। सहन नही हो सका,उबर नही पाया। हार गया,उम्मीदें अब बची ही न थी तो फिर जीने की क्या वजह ढूंढता। मासूम एंकर कभी मौत की वजह ख़ोज नही पाएगी।
अक्सर विश्वविद्यालयों में राजनीतिक गतिविधि होती रहती है, कभी कोई फिल्म दिखाई जाती है तो उसके लिये मारपीट हो जाती हैं तो कभी किसी का सेमिनार के विरोध में मारपीट। फिर किस तर्क से कमेटी राजनीतिक ओत-प्रोत में आकर छात्रों को होस्टल से, लाइब्रेरी से, कैंपस से और फिर विश्वविद्यालय से कई महीनों के लिए निकाल देता हैं। ये दबाव समूह काफी तेजी से सक्रिय हो जाता हैं। उम्र के मामूली उफ़ान को समझने में भूल हो जाती नतीजा हिंसक कृत्य। प्रगतिशील ताकत पता नही कहाँ छुप जाते हैं।

प्रधानमंत्री जी का ट्वीट किसी गायिका के बेटा-बेटी के जन्मदिन में तुरंत आ जाता हैं किंतु इन मामलों में चुप्पी क्यों हो जाती हैं? अगर बड़े स्तर पर हितैषी का प्रदर्शन किया जाता तो खुद ब खुद निचले स्तर पर व्यवहार सकारत्मक होती।
हैदराबाद सेंट्रल विश्वविद्यालय में अंबेडकर छात्र संघ से जुड़े दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय का लिखा एक पत्र यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि छात्रों का मनोबल सब मिलजुल कर तोड़ रहें थे।
अगस्त, 2015 में दत्तात्रेय ने जो पत्र लिखा था, उसी के बाद से विश्वविद्यालय ने उन्हें छात्रावास से निष्कासित कर दिया। जिससे रात खुले आसमान के नीचे बिताना पड़ रहा था। छात्रों का कहना है कि इन राजनीतिक दबावों के कारण मारपीट और चोट के सबूत न होने के बाद भी छात्रों को दोषी ठहराया गया और उन्हें निलंबित किया गया। दस दिनों से यह छात्र हास्टल के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे और अपना निलंबन वापस लिए जाने की मांग कर रहे थे। फेलोशिप रोक दी गई साथ-साथ हॉस्टल से भी निकल जाने का आदेश जारी कर दिया गया।

बंडारु ने अगस्त, 2015 में मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी को पत्र लिखा था।
विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन कर रहे अंबेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन के सदस्यों ने भाजपा से जुड़ी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के अध्यक्ष सुशील कुमार के साथ झड़प हुई थी।
बंडारु दत्तात्रेय ने लिखा था, "विश्वविद्यालय कैंपस जातिवादी, अतिवादी और राष्ट्र विरोधी राजनीति का अड्डा बनता जा रहा है। जब याकूब मेमन को फांसी दी गई थी तो अंबेडकर छात्र संघ के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया था।"
दत्तात्रेय के पत्र के बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने विश्वविद्यालय को एक पैनल बनाने का आदेश दिया था जिसने निलंबन का फ़ैसला लिया था।

किसी को सामाजिक बहिस्कार कर देना। साथ बैठने से मना कर देना। जातिवादी को जारी रखना। हॉस्टल, लाइब्रेरी से निकाल बाहर करना। यह 21वीं सदी में भी जारी हैं। ये वही लोग जो असमानता और शोषण को ही जीवन मूल्य मानने लगे हैं। इन्हें बदलाव किसी भी कीमत पर मंजूर नही।
लोग कह रहें हैं वह कायर था लेकिन जिन्होंने तब के प्रणाली से तंग आकर यह कदम को चुना तो क्यों वे शहीद हो गये,चंद्रशेखर तो याद होगा ना?
जो छात्र उच्च शिक्षा के सपने देखते हैं, जो पढ़ना चाहते आगे बढ़ना चाहते है। लेकिन वह राजनीतिक चाल को समझ रहें हैं। सत्ता के विपक्ष में खड़ा होना सिख रहें हैं। इन परंपरावादी व्यवस्थाओं के खिलाफ लिख रहें हैं,बोल रहें हैं,पढ़ रहें हैं। ये लोग इनका भला होता कैसे देख सकते हैं। यह समाजवाद का चेहरा बेहद डरावना हैं। अगर आपकों लग रहा हैं की यह गलत हैं तो हमारें हौंसले पस्त नही होने दीजिये। सच बोलिये,साथ में सुर मिलाइये ताकि स्वस्थ भारत निर्माण हो।
रोहित वेमुला जरूर मर गए लेकिन अपनी बात बहरों को सुना कर मर गये।  देश की आत्मा को जगाकर मर गये।
लोग धर्म, जाति, भाषा, प्रांत, लिंग से ऊपर उठ कर सुर बुलंद कर रहे हैं। नाखुशी जाहिर कर रहें। शायद आपका मौत वक़्त को बदल रहा हैं। एकता दिख रहा हैं। रोहित ने आत्महत्या नही की हमारी व्यवस्थाओं ने मार डाला।

गुड मॉर्निंग
जब आप यह खत पढ़ रहे होंगे, तब मैं आपके पास नहीं होऊंगा। मुझसे नाराज मत होइएगा। मैं जानता हूं, आप में से कई लोग मुझे दिल से चाहते हैं, प्यार करते हैं और मेरा ख्याल रखते रहे हैं। मुझे किसी से शिकायत नहीं है। मुझे हमेशा खुद से समस्याएं रही हैं। मैं अपनी आत्मा और अपने शरीर के बीच के फासले को बढ़ता हुआ महसूस कर रहा हूं। मैं एक राक्षस बन गया हूं। मैं हमेशा से एक लेखक बनना चाहता था। कार्ल सेगन जैसा विज्ञान का लेखक। हालांकि अंत में, मैं सिर्फ यह खत ही लिख पा रहा हूं।
मैंने विज्ञान से, सितारों से और प्रकृति से प्यार किया, लेकिन यह जाने बगैर कि लोग कब का प्रकृति का साथ छोड़ चुके हैं। हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हैं। हमारा प्यार बनावटी है। हमारी मान्यताएं झूठी हैं। हमारी मौलिकताएं कृत्रिम हैं। वास्तव में अब यह असंभव हो गया कि बिना दुख पहुंचाए‌ किसी को प्यार किया जा सके।
एक इंसान की कीमत उसकी पहचान एक वोट… एक संख्या… एक वस्तु तक सिमट कर रह गई है। कोई भी क्षेत्र हो, अध्ययन में, राजनीति में, मरने में, जीने में, कभी भी एक व्यक्‍ति को उसकी बुद्धिमत्ता से नहीं आंका गया।
इस तरह का खत मैं पहली दफा लिख रहा हूं। आखिरी खत लिखने का यह मेरा पहला अनुभव है। अगर यह कदम सार्थक न हो पाए तो मुझे माफ कीजिएगा।
हो सकता है इस दुनिया, प्यार, दर्द, जिंदगी और मौत को समझ पाने में, मैं गलत था। कोई जल्दी नहीं थी, लेकिन मैं हमेशा जल्दबाजी में रहता था। एक जिंदगी शुरू करने की हड़बड़ी में था। इसी क्षण में, कुछ लोगों के लिए जिंदगी अभिशाप है। मेरा जन्म मेरे लिए एक घातक हादसा है। अपने बचपन के अकेलेपन से मैं कभी उबर नहीं सका। अतीत का एक क्षुद्र बच्चा।
इस वक्त मैं आहत नहीं हूं… दुखी नहीं हूं, मैं बस खाली हो गया हूं। अपने लिए भी बेपरवाह। यह दुखद है और इसी वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं। लोग मुझे कायर कह सकते हैं और जब मैं चला जाऊंगा तो स्वार्थी, या मूर्ख भी समझ सकते हैं। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे क्या कहा जा रहा है। मैं मौत के बाद की कहानियों… भूतों या आत्माओं पर विश्वास नहीं करता। अगर किसी बात पर मैं विश्वास करता हूं तो वह यह है कि मैं अब सितारों तक का सफर कर सकता हूं। और दूसरी दुनिया के बारे में जान सकता हूं।
जो भी इस खत का पढ़ रहे हैं, अगर आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं, तो मुझे सात महीने की फेलोशिप‌ मिलनी बाकी है जो एक लाख और 75 हजार रुपये है, कृपया ये कोशिश करें कि वह मेरे परिवार को मिल जाए। मुझे 40 हजार रुपये के करीब रामजी को देना है। उसने कभी इन पैसों को मुझसे नहीं मांगा, मगर कृपा करके ये पैसे उसे दे दिए जाएं।
मेरी अंतिम यात्रा को शांतिपूर्ण और सहज रहने दें। ऐसा व्यवहार करें कि लगे जैसे मैं आया और चला गया। मेरे लिए आंसू न बहाएं। यह समझ लें कि जिंदा रहने की बजाय मैं मरने से खुश हूं।
‘परछाइयों से सितारों तक’
उमा अन्ना, मुझे माफ कीजिएगा कि ऐसा करने के लिए मैंने आपके कमरे का इस्तेमाल कर रहा हूं।
एएसए (आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोशिएशन) परिवार के लिए, माफ करना मैं आप सबको निराश कर रहा हूं। आपने मुझे बेहद प्यार किया। मैं उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं दे रहा हूं।
आखिर बार के लिए
जयभीम
मैं औपचारिकताएं पूरी करना भूल गया। मेरी खुदकुशी के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है।
किसी ने ऐसा करने के लिए मुझे उकसाया नहीं किया, न तो अपने शब्दों से और न ही अपने काम से।
यह मेरा फैसला है और मैं अकेला व्यक्ति हूं, जो इस सबके लिए जिम्मेदार है।
कृपया मेरे जाने के बाद, इसके लिए मेरे मित्रों और शत्रुओं को परेशान न किया जाए ।

पत्र पढ़ने के बाद भी आपका गला नही रुंध रहा हो,आँखो में आंसू न आ रहा हो,सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा न फुट रहा हो तो आप या तो इस व्यवहार के आदी हो चुके हैं या फिर इस व्यवस्था को चलाने में आप मदद कर रहें हैं। क्या पता किसी दिन मेरा लिखना भी राष्ट्रविरोधी बन जाएं।


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