Raftaar

12:16:00 Akki Anuj 0 Comments




वक़्त की रफ़्तार से,जब भी कदम चाहा मिलाना ,
रास्ता रोका सभी ने ,हौंसला तोडा हमारा |

यूँ तो तेरे शहर में ,हर बार ही लुटता हूँ मैं ,
ढूढने जब-जब भी आया ,एक उम्दा आशियाना ।

एक मुद्दत से नहीं मैं ,जी सका हूँ ज़िन्दगी ,
हो गया है वक़्त का ,बर्ताव इतना कातिलाना ।

दोस्त-दुश्मन की परख ,करना भी मुश्किल हो गया ,
एक सी तालीम उनकी ,और उनका मुस्कुराना ।

शख्त बेरहमीं से रौंदी जा रही मासूमियत 
अब सच छुपाने का ,नहीं दिखता बहाना ।


समय ही है जो विचार में परिवर्तन ला देती है। यदि एक विचार को अंतिम मान ले तो उसका कभी विकास नही होगा। अर्थात कभी जो बाते आज से 100 साल पहले स्थाई थी वह आज बदल गई।जो नही बदलें दुनिया ने उसे पिछड़ा बताया।

यह सिर्फ समय का चक्र था जो कभी स्वर्मान्य था परन्तु आज नही।