बूंद-बूंद पानी को तरसे लोग
भारतीयों का मूल स्वभाव हैं,हम सब विषय पर बात कर लेंगे। गाय-भैंस हिन्दू मुस्लिम मंदिर मस्जिद हिन्दुस्तान पाकिस्तान धर्म रक्षा देशद्रोही भारत माता की जय ये सभी अहम मुद्दों पर सोशल साइट पर कई दिन तक चर्चा होती रहेगी। फ़र्जी राष्ट्रवादी एंकर वीडियो एडिट करने में कोई कसर नही छोड़ेगा।
और यहाँ देश की हालात बिगड़ती जा रही हैं। 5 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सूखे की हालात बेहद गंभीर हैं। आंकलन से पता चलता हैं स्थिति नियंत्रण से बाहर हैं। सिंचाई की बात करना अभी हास्यपद होगा। मसला अभी पीने के पानी पर ही अटका हैं। मात्र 5 लीटर पानी के सहारे एक-एक महीना बिताना पड़ रहा हैं। यह नज़ारा हैं बीड़ के हेलम गांव का जहाँ 1 घड़ा पानी भरने में 5-6 घण्टा टाइम लग जा रहा हैं। लोग पहले तो गांव से निकलकर 2 किलोमीटर दूर एक लगभग सूखा हुआ कुआं तक जाते हैं। फिर वहां अपनी बारी का इंतजार करते हैं। और अंत में 60 फिट गहरे कुआं में उतरते हैं और 2 से 3 घण्टा पानी भरने में बहुत संयम और धीरज की आवश्यकता पड़ती हैं। पानी चट्टानों से रिसते हुए धीरे-धीरे बाहर आता हैं। ये वो पानी होते हैं जो जान बचाने के लिए उपयोग होता हैं,जो शुद्धता के पैमाना को पहले ही ध्वस्त कर चुका होता हैं। कही-कही तो 250 फिट तक जमीन के अंदर पानी नही मिल रहा हैं। मोहल्ले मे टैंकरों को देखते ही लोग दौड़ पड़ते हैं। पानी को लेकर झगड़े होने लगे हैं। सोंचिये जरा आपको ऑफिस जाना हो तो कितने दिन बिना नहाये परफ्यूम के भरोसे चले जाएंगे? अंदाजन 20-30 दिन। हालात बिल्कुल ऐसा ही हैं।
केंद्रीय जल आयोग बता रहा था कि 91 प्रमुख जलाशयों में केवल 29 फीसदी पानी बचा है। यह भयावह की स्थिति हैं । यह इस दशक में पानी का सबसे निचला स्तर है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में हजारों गांव पानी के लिए पूरी तरह सरकारी टैंकरों पर निर्भर हैं। लातूर में हर सप्ताह केवल तीन दिन पानी बांटा जाता है। रविवार को जब पानी एक्सप्रेस राजस्थान के कोटा वर्कशॉप से पुणे के मिरज पहुंची तो स्थानीय नेताओं ने फूल माला चढ़ाकर स्वागत किया। फिर मिराज से पानी लेकर रवाना हुई । इस ट्रेन में पांच लाख 40 हज़ार लीटर पानी है। मंगलवार सुबह साढ़े पांच बजे जब यह रेलवे स्टेशन पहुंची तो उसका स्वागत करने के लिए वहां क़रीब डेढ़ सौ लोग मौजूद थे।
ट्रेन के पहुंचने के बाद लोग अपने अपने मोबाइल फ़ोन से तस्वीरें खींचने लगे। लोगों ने गाड़ी के ड्राइवर, गार्ड और रेलवे पुलिस के कर्मियों का स्वागत किया ।
आखिर इसे संकट बनाने में हमारा तो योगदान खूब रहा ही हैं। जरूर 2-3 कमजोर मॉनसून इसकी प्रमुख वजह रही। इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? इन क्षेत्रों में जायजा लेने से साफ पता चलता हैं कि बारिश बुलाने वाले पेड़ अब रहें ही नही। तेज शहरीकरण ने पेड़ो की अंधाधुन कटाई को बर्दाश्त कर लिया। सरकार की नीति तब भी और अब भी अभूतपूर्व हैं। सूखे से निपटने के लिए कोई ठोस कदम बनाने की जरूरत नही हैं। किस-किस संख्या के बारे में बात करूँ वह जो तलाब-नहरों के लिए आवंटित करोड़ो रुपये के बारे में या फिर उस पाइपलाइन के बारे जिसका राह देखते-देखते कंठ सूख गए। हम पहले से ही हिन्दू-मुस्लिम देशभक्त-देशद्रोही में खुश हैं। क्या आपने कभी नेताओं से रोटी-पानी-रोजगार के मुद्दे पर घेरने की कोशिश की हैं?क्या आपने मूल-भुत सुविधाएं पर नेताओं से सवाल पूछते जनता को देखा हैं ? अनाज तो पैदा होने से रहा। इंसान के साथ-साथ जानवर भी बीमार पड़ रहे हैं। हम-आप ही इन नेताओं को इतनी छूट दे रखे हैं की इन सब सवालों का सामना उन्हें नही करना पड़ता हैं। इस सरकार की कमी ही रही हैं कि कोई काम की बात नही करता। कोई कहता हैं सिर काट देंगे। कोई कहता हैं जबान खींच लेंगे। तो कोई देश से बाहर भेजने की बात करता हैं। हर समस्या को साथ-मिलकर समाधान निकाल लिया जाता। लेकिन राष्ट्र को ही इन मुद्दों से भटका दिया जाता हैं। क्या इस तरह हम श्रेष्ट राष्ट्र के तौर पर उभर पाएंगे? जब एकता ही न हो।
कहिये भारत माता की जय।
सब समस्या का समाधान हो जायेगा।
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