फिल्म रिव्यू: रुस्तम
निर्देशक: टीनू सुरेश देसाई
निर्माता: नीरज पांडे, अरुणा भाटिया, आकाश चावला, नितिन केनी
संगीत: अंकित तिवारी, जीत गांगुली, राघव सच्चर
लेखक : विपुल के. रावल
गीत: मनोज मुंतशिर
रेटिंग : **** (4स्टार)
12 अगस्त को रिलीज हुई साल की चर्चित फिल्मों में एक अक्षय कुमार स्टारर रुस्तम अपनी कहानी और अदाकारी से दर्शकों के नजरियों में खरी उतरती हैं। फिल्म जैसी आपेक्षा की जा रही थी वैसे ही बनी है बल्कि उससे कही ज्यादा तालियां बटोर ले जाती है। स्क्रिप्ट बेहद कसा हुआ है और स्क्रीन प्ले जो फिल्म के अंत तक आपको कुर्सी से उठने का मौका नही देती। एक धोखा खाए हुए पति का शारीरिक हावभाव कैसा रहता है ? यह आपको अक्षय कुमार के एक्सप्रेसन में दिख जाता है। अक्षय कुमार इस किरदार में बिल्कुल फिट बैठे है या यूँ कहिये कि उनमें हर किरदार को निभाने की जबर्दस्त क्षमता है।
यह फिल्म 1959 में हुए केएम नानावती केस से प्रेरित है।
हालांकि फिल्म की रिलीज से तीन दिन पहले 12 निर्माताओं में से एक नीरज पांडे एक इंटरव्यू में यह साफ किया कि यह फिल्म 1959 के प्रसिद्ध नानावटी केस से आंशिक रूप से ही प्रभावित है।
कहानी: 'रुस्तम' पावरी एक नेवी ऑफिसर है। जो महीनों जहाज पर रहता है। जहाज पर एक लंबा वक्त बिताने के बाद जब रूस्तम घर आता है तो देखता है उसकी पत्नी सिंथिया (इलीना डीक्रूज) घर पर नहीं है। अलमारी से कुछ प्रेम पत्र मिलते हैं, जो रुस्तम के दोस्त विक्रम मखीजा (अर्जन बाजवा) ने सिंथिया को लिखे थे। उसे समझने में देर नही लगती उसकी पत्नी के साथ विक्रम का एक्स्ट्रा अफेयर चल रहा है। इसी बीच वह खुद को नियंत्रण नही कर पाता है और अपने दोस्त विक्रम का कत्ल कर देता है। और थाने जाकर खुद को सरेंडर कर देता है। फिर वह अदालत में अपने को निर्दोष साबित करने की दलील देता है।
फिल्म: फिल्म सभी मानकों पर खरी उतरती हैं। कोर्ट सिंस को देखते हुए अगर आप पर उदासी छा जाय तो बड़ी सरलता से मनोरंजन का छौंक आ जाता हैं। पवन मल्होत्रा और कुमुद मिश्रा और अन्य बाकि कलाकार ने बहतरीन अभिनय किया है, जिससे सभी पात्र जीवंत लगते हैं। यह फिल्म सभी का एफर्ट मिलने से बहुत अच्छी फिल्म बन कर उभरी है। फिल्म की एडिटिंग ठीक ढंग से की गई है जो आपको बोरियत से बचाती है। सिनेमेटोग्राफ़ी प्रभावशाली होने से फिल्म आकर्षक लगता है और खुबसूरती से फिल्माया गया है।
निर्देशन: टीनू देसाई अपने सभी एक्टर से काम लिया है। एक अच्छी स्क्रिप्ट होने से स्क्रिप्ट को हु ब हु पर्दे पर उतारना आसान नही रहता है। निर्देशक बधाई के पात्र हैं वह अपने काम को संजीदगी से निभा दिये हैं।
संगीत: गाने तो पहले से हिट हैं। तेरे संग यार कानों को सुकून देता हैं।
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