पहला संविधान दिवस:26 नवंबर 2015

23:38:00 Manjar 2 Comments

संविधान के चर्चा के दौरान कई बातों पर टिप्पणी हुई। जहां सोनिया गांधी ने उस एतिहासिक दिन को ना सिर्फ याद किया बल्कि कांग्रेस के योगदान को भी उल्लेखित किया।
कांग्रेस को हमेशा से देशहित की पार्टी बताते हुये कही-जिन लोगों की संविधान में किसी तरह की आस्था नहीं रही है, न इसके निर्माण में जिनकी कोई भूमिका रही है, वे आज इसका नाम जप रहे हैं। वे आज इसके अगुआ बनना चाहते हैं। वे आज संविधान के प्रति वचनबद्धता पर बहस कर रहे हैं।

श्रीमती गांधी ने कही- हमारे संविधान का निर्माण दशकों के संघर्ष का परिणाम है। हमारे देश के हर वर्ग ने संघर्ष करते हुए देश को आजाद कराया। इस संविधान को बनाने में तीन साल लगे।

श्रीमती गांधी ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कही-हमें डॉक्टर आंबेडकर की चेतावनी नहीं भूलनी चाहिए। उन्हीं के शब्दों में- कोई संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि उसे लागू करने वाले बुरे निकले तो वह निश्चित रूप से बुरा ही साबित होगा। कितना भी बुरा संविधान क्यों न हों, यदि उसे लागू करने वाले अच्छे हुए तो वह अच्छा ही साबित होगा।
जिसपर बीजेपी के सांसदों ने कड़ा विरोध करते हुए सदन में नारेबाजी करने लगे।

चूंकि आर-एस-एस और मुस्लिम लीग की स्थापना हो जाने के बावजुद किसी भी तरह से देश निर्माण में सहयोग नही दे सके।हां यह सच है कि लीग ने देश के लिए लड़ा लेकिन एक अवधारणा उन्हें काफी हद तक बांध कर रख दिया।
सोमवार,20 जनवरी 1947 को संविधान पर बहस करते हुये,हाऊस ऑफ लॉर्ड के लगाये गए आरोप पर चर्चा और खंडन करते हुए राष्ट्रपति ने कहा की (आरोप-"only one major community in India") शुरुआती शेशन 210 सदस्यों ने हिस्सा लिया जिसमें 160 में से 155 हिन्दू ,30 एस सी/33,सभी 5 सिख,5 भारतीय ईसाई/7,सभी 3 एंग्लो-इंडियन,सभी 3 पारसी और 80 मुसलमानों में से सिर्फ 4 जिनका उन्हें दुख था।

मुस्लिम लीग ने जरूर आंदोलन में हिस्सा लिया जेल गये।अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ाई में नीतिगत, गांधी जी का साथ दिया बल्कि आंदोलन तेज कर स्वराज की कल्पना की।परंतु अपनी मांग को लेकर संविधान निर्माण में शामिल नही हुये।

आजादी के यूं तो संविधान सभा के 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के सदस्य भी थे लेकिन वैचारिक रूप से यह सभी अलग अलग राय रखते थे जैसे इनमें से कुछ नास्तिक और धर्मनिरपेक्ष थे तो कुछ ऐसे थे जो तकनीकी रूप से कांग्रेसी थे लेकिन आध्यात्मिक तौर पर  हिंदू महासभा के सदस्य थे। कुछ अपनी सोच में समाजवादी थे तो कुछ ज़मींदारों के हक़ में बोलने वाले थे। मोटे तौर पर इस सभा में लोकमत के हर पहलू को जगह देने की कोशिश की गई थी। आज (राज्यसभा टीवी,समय:12 बजे से) एक एपिसोड के दौरान नेहरू ने जब भारत का झंडा सदन के समक्ष रखा तो एक सदस्य ने यह कहते हुये ध्वज का विरोध करने लगे कि हम इसे नही मानते क्योकि इसमें स्वस्तिक का चिन्ह नही है,उनका मांग अशोक चक्र के बदले स्वस्तिक था

संसद की दूसरी कड़ी जो की आज सबसे ज्यादा विवादित रही वह राजनाथ सिंह का यह बयान-आंबेडकर ने समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग संविधान में नहीं किया।
सेक्युलर शब्द का आज सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन यह आंबेडकर के संविधान में नहीं था। अगर उन्हें लगा होता कि यह शब्द लाया जाना चाहिए तो जरूर लाते।
42वें संविधान संसोधन से सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्दों को लाया गया। धर्म निरपेक्ष की जगह पंथनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए।
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भाषाशास्त्र यह भी बताता है की अनेक पद या शब्द अनवरत प्रयोग से अपने मूल अर्थ को छोड़ दूसरे अर्थों में रूढ़ हो जाते हैं। कुछ इसी तरह समझे जब हम किसी वाक्य को हिन्दी में दर्शाते है तो उसके भावार्थ में शब्द ढूंढकर वहां लगाते है।यानी की शुद्ध तौर पर उसका रूपांतरण में कई रूप से परिभासा दी जायेगी। परंतु उस शब्द को जिस सम्बन्ध में कही जा रही हो और बात समझ में भी आ जाये तो वही उसका मूल होता है।
According to Justice Dharmadhikari, “The real meaning of Secularism in the language of Gandhi is ‘Sarva-Dharma-Sambhav’ meaning equal treatment & respect for all religions, but we have misunderstood the meaning of secularism as ‘Sarva-Dharma-Sam-Abhav ‘ meaning negation of all religions.”
पंथ-निरपेक्ष के बदले हम यह सोचे की अगर सेकुलर का मतलब दूसरों की संस्कृति,रहन-सहन,धर्म और खान-पान में   दखलंदाजी ना दे।और इसका सम्मान करें तो यही वास्तविक सेकुलरिज्म हैं।
जस्टिस धर्माधिकारी के अनुसार सभी को सामान आदर देना ना की सभी धर्मों को नकार देना।

मूल लेख की और लौटे तो-
संविधान सभा की न जाने कितनी बैठक हई जिसमें देश और देशवासियों से जुड़े तमाम पहलुओं पर सदस्यों और जनता ने अपनी राय रखी। इन बैठक से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों का ज़िक्र इतिहासविद् रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में किया है। प्रस्तुत है उस किताब में शामिल संविधान सभा से जुड़े कुछ रोचक अंश -

9 जनवरी 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई थी जिसमें कांग्रेस के प्रमुख नेता जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल आगे की सीटों पर बैठे थे। लेकिन कहीं इस बैठक को सिर्फ कांग्रेस पार्टी का शो न मान लिया जाए इसलिए विपक्ष के नेताओं को भी आगे की सीट पर बैठाया गया। एक राष्ट्रीय अखबार ने उस सम्मेलन की रिपोर्ट छापते हुए लिखा था कि 'गांधी टोपी और नेहरू जैकेट से भरी इस सभा में 9 महिला सदस्यों ने रंग भर दिया था।'

ब्रिटेन के लोकप्रिय नेता विंस्टन चर्चिल ने भारतीय संविधान के निर्माण पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि 'संविधान सभा में भारत के एक बहुसंख्यक समुदाय का बोलबाला रहेगा।' चर्चिल के इस वक्तव्य को नकारते हुए संविधान को मूल रूप देने से पहले जनता से भी अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। हज़ारों की संख्या में लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं भेजी जैसे अखिल भारतीय वर्णश्रम स्वराज संघ ने कहा कि संविधान का आधार हिंदू धर्म होना चाहिए, साथ ही गो-हत्या और बूचड़खाने बंद करने की सिफारिश भी की गई थी। वहीं अल्पसंख्यक समूहों ने अपने अधिकारों की सुरक्षा की बात कही और दलितों ने ऊंची जाति के अत्याचारों के खात्मे की मांग की थी। इस तरह संविधान को तैयार करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की हिस्सेदारी मांगी गई थी।

संविधान को तैयार करने के दौरान महिला आरक्षण पर भी बात हुई लेकिन मौजूदा दौर से इतर उस वक्त की महिला नेताओं ने सीटों और कोटे को दरकिनार करते हुए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता की मांग की। लेकिन महिला आरक्षण के पक्ष में सबसे दिलचस्प तरीके से एक पुरुष सदस्य आर के चौधरी ने अपनी बात रखी - मुझे लगता है कि हमें औरतों को एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र दे देना चाहिए। वैसे भी जब औरतें कुछ मांगती हैं तो उनकी मांग पूरी करना आसान हो जाता है लेकिन जब वो कुछ नहीं मांगती तो यह जानना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि आखिर वह चाहती क्या हैं। अगर हम उन्हें एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र दे देंगे तो वह उसी के लिए आपस में भिड़ती रहेंगी और सामान्य चुनावी क्षेत्रों से दूर रहेंगी। ऐसा नहीं किया तो हमें उन्हें वह सीटें देनी पड़ेंगी जिसके वह लायक नहीं हैं।

संविधान सभा में सबसे विवादित विषय रहा भाषा जिसे लेकर अक्सर सदस्य ज्यादा ही भावुक हो जाते थे। ऐसे ही एक सदस्य आरवी धुलेकर ने हिंदी में अपनी बात कही जिस पर अध्यक्ष ने उन्हें टोकते हुए कहा कि सभा में मौजूद कई लोगों को हिंदी नहीं आती है और इसलिए वह उनकी बात समझ नहीं पा रहे हैं। इस पर धुलेकर ने तिलमिलाते हुए कहा कि 'जिन्हें हिंदी नहीं आती, उन्हें इस देश में रहने का हक नहीं है।' जब काफी समझाने के बाद भी धुलेकर नहीं माने तो नेहरू ने आगे बढ़कर उन्हें अपनी सीट पर लौटने को कहा और सदन की गरिमा की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहा कि 'ये कोई आपके झांसी की आमसभा नहीं है जहां आप 'भाइयो और बहनो' कहकर ऊंची आवाज़ में भाषण देना शुरू कर दें।'

2 comments:

  1. मंजर भाई संविधान के बारे में इतनी जानकारी देने के लिया धन्यवाद। लेकिन ऐसा ज्ञात पड़ता है की अभी ये पूर्ण नही है। कृपया इसे पूर्ण कीजिये ताकि पूरी तर्क समझ आ सके।

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  2. संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान जो बिंदु सामने आई,उसी का मात्र उल्लेख भर है।संविधान के अन्य विषयों पर फिर कभी।

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