प्रधानमंत्री जी की तारीफ़ तो बनती है।

12:17:00 Manjar 0 Comments

प्रधानमंत्री का पद जिस ऊँचाई और गरिमा के लिये जाना जाता है,उनका शानदार बेजोड़ दिल को छु लेना वाला आज का (27 Nov 2015) भाषण रहा। संविधान पर जोर देकर उपोह की स्थिति साफ कर दिया । अंतर्निहित मूल्यों पर जिस तरह बल दिया, वह एक प्रधानमंत्री की गरिमा के अनुरूप था।
उन्होंने आइडिया ऑफ इंडिया को जिन सूत्रों के सहारे समझने और समझाने की कोशिश की, सभी को स्वीकार करने ही पड़ेगा। परधानमंत्री के इस भाषण को सभी लोग तारीफ करेंगे ही मैं तो जीं भर कर तारीफ़ कर रहा हूँ।
उन्होंने भारत की सामाजिक परंपरा में आत्मपरिष्कार की क्षमता का जिक्र करते हुए महात्मा गांधी से लेकर विद्यासागर तक याद कर कहा- यह वह परंपरा है जिसने भारतीय सामाजिकता का आधुनिकीकरण किया है, उसे ऐसा उदार बहुलतावादी चरित्र प्रदान किया है जिसका जवाब नहीं।

"आइडिया ऑफ इंडिया सत्यमेव जयते, आइडिया ऑफ़ इंडिया अहिंसा परमो धर्म,आइडिया ऑफ़ इंडिया सर्व धर्म समभाव, आइडिया ऑफ़ इंडिया सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, आईडिया ऑफ़ इंडिया जन सेवा ही प्रभु सेवा, आइडिया ऑफ़ इंडिया वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणे रे, पर दुःखे उपकार करे तो ये मन अभिमान न आने रे।"
ये वो आइडिया है- जिससे भारत में स्वस्थ परम्परा का ईतिहास रहा है।

लोकसभा में चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के मुख्य अंश-
•संविधान की चर्चा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवाब देते हुए कहा कि संविधान पर संसद में उत्‍तम विचार रखे गए।
•सदन ने जो रूचि दिखाई वो सराहनीय है।
देश के सब जनप्रतिनिधि हैं। इस चर्चा का मूल उद्देश्‍य भी वही था।
•चर्चा की भावना 'मैं' नहीं, 'हम' है, पूरा सदन है।
भारत विविधताओं से भरा देश है।
•26 जनवरी की ताकत 26 नवंबर में निहित है।
संविधान में हम सभी को बांधने और बढ़ाने की ताकत है।
•कोई चीज आखिरी नहीं, उसमें विकास होता रहता है।
•26 नवंबर के संविधान दिवस की व्‍यवस्‍था प्रतिवर्ष बढ़ाएं।
•ये देश कईयों की तपस्‍या से आगे बढ़ा है। सब सरकारों के योगदान से आगे बढ़ा है।
•लोकतंत्र में शिकायत का हक सबका होता है।
राजा-महाराजाओं ने देश नहीं बनाया, कोटि-कोटि जनों ने बनाया है।
•संविधान के अंदर भी सबकी भूमिका रही है।
इतने उत्‍तम संविधान की जितनी सराहना करें, उतना कम है।
•बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर की भूमिका को हम कभी भी नकार नहीं सकते।
•जन सामान्‍य की गरिमा और देश की एकता संविधान का मूल है।
•बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर की विशेषता रही है कि उनके विचार हर कालखंड, हर पीढ़ी, हर तबके के हैं।
•अगर संविधान बनाने में बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर शामिल न होते, तो यह शायद सामाजिक दस्‍तावेज बनने से चूक जाता।
बचाव हो या प्रहार हो, बाबा साहब रास्‍ता दिखाते हैं।
•बाबा साहब ने कितनी यातनाएं झेली, अपमानित हुए, उपेक्षित हुए, लेकिन उनके हाथ में जब देश के भविष्‍य का दस्‍तावेज बनाने का अवसर आया, तो संविधान में कहीं पर बदले का भाव नहीं दिखा।
•डॉ. अंबेडकर ने सारा जहर पीया और हमारे लिए अमृत छोड़कर गए।
•हमें अपने सामाजिक-आर्थिक लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए संवैधानिक तरीकों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए।
•हम सब लोकतंत्र की परिपाटी में पले-बढ़े लोग हैं।
•हमारे लिए आज संविधान और अधिक महत्‍वपूर्ण होता जा रहा है।
•जब सारे प्रयास विफल हो जाएं तब आखिरी रास्‍ता अल्‍पमत और बहुमत का हो जाता है। सहमति का रास्‍ता होना चाहिए।
•हर किसी का साथ और सहयोग होना चाहिए।
संविधान की पवित्रता हम सबका दायित्‍व है, हमारी जिम्‍मेदारी है।
•बहुमत का मतलब ये नहीं होता कि आप अपनी बात थोप दें।
•लोकतंत्र में सहमति के रास्‍ते से ज्‍यादा ताकत होती है।
•हमारे पास संविधान का सहारा है, हम बहुत कुछ कर सकते हैं।
•समाज राजनेताओं को कोसता रहता है, लेकिन इन्‍हीं राजनेताओं ने इसी सदन में बैठकर अपने पर बंधन लगाने का निर्णय भी दिया।
•राजनीति में साख घटी है, ये स्थिति हमारे लिए चुनौती है।
•लोहिया-नेहरू की बहस में संसद ने ऊंचाई दिखाई।
•संसद की महान परंपराओं का आदर बनाए रखना होगा।
•समय की मांग है कि हम अधिकारों पर जितना बल दें, उतना ही हम अपने कर्तव्‍यों पर भी बल दें।
•'मेरा क्‍या...' की स्थिति देश के लिए अच्‍छी नहीं। हमें कर्तव्‍य भाव जगाना होगा।
•कभी कोई संविधान बदलने के बारे में सोच भी नहीं सकता है।
•दलित को अवसर नहीं मिला, इसलिए उसकी दुर्दशा हुई। उसे अवसर देना जरूरी है।
•राष्‍ट्र का सशक्तिकरण, समाज के सभी तबकों को सशक्त करने में है।
न्‍याय सबको मिले, सहज-सुलभ हो और त्‍वरित हो।
•बाबा साहब अंबेडकर ने ताकत दिखाते हुए श्रमिकों के लिए आठ घंटे की समयसीमा निर्धारित की।
•हमने मिनिमम पेंशन एक हजार रुपये कर दी और आधार कार्ड से डायरेक्‍ट बेनिफिट स्‍कीम से भी जोड़ दिया।
•इस सदन में भी अहम बोनस एक्‍ट आना है।
सरकार का एक ही धर्म होता है, 'इंडिया फर्स्‍ट' और एक ही धर्मग्रंथ होता है 'भारत का संविधान'।
•देश संविधान से ही चलेगा, संविधान से ही चल सकता है।
•भारत का विचार यानि सत्‍यमेव जयते।
•भारत का विचार अहिंसा परमो धर्म।

फिर भी, लेकिन वह कौन सी चीज़ है जो प्रधानमंत्री की तारीफ करने से रोक देती है।
प्रधानमंत्री का जो भाषण था, वह कई दिनों से चल रहें  उनके करीबी सहयोगियों से लेकर  समर्थकों तक के सामाजिक आचार-व्यवहार और विचार का विपरीत है। या तो यह भाषण सच है या फिर वह व्यवहार सच है। एक ही पार्टी और सरकार के भीतर दोनों तरह के व्यवहार और विचार नहीं चल सकते, क्योंकि वे बिल्कुल एक-दूसरे के उलट हैं। या तो सरकार को उसी ओर काम करने पड़ेंगे जिस भविष्य की विचार को  प्रधानमंत्री जी अपना संभावना तलाश कर रहें थे।

0 comments: