अमेरिकी नजदीकी से भारत को कितना फ़ायदा ?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस बार का अमेरिका दौरा कई मायनो में पिछले दौरों से थोड़ा अलग है। इस बार मेडिसन स्कॉयर वाला रॉकस्टार परफोर्मेंस नही था। कुटनीति में मोदी हमेशा से पर्सनल टच ले आते है चाहे विश्व के किसी भी देश का दौरा हो। मोदी ने भरसक प्रयास किया की भारत और अमेरिका एक-दूसरे के और करीब आयें और लगभग करीब आते दिख रहे हैं। दो साल में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौथी बार अमेरिका में हैं। ओबामा और मोदी की यह सातवीं मुलाकात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के पहले दिन भारत को बड़ी सफलता मिली है। अमेरिका न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप NSG की सदस्यता के लिए भारत को समर्थन देने को तैयार हो गया है। इसके अलावा भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम यानी MTCR के सदस्य देशों में भी शामिल होने की प्रक्रिया पूरी हो गई है। भारत अब MTCR यानी मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम में शामिल हो गया।
34 देशों के इस समूह में किसी भी देश ने भारत के सदस्य बनने पर आपत्ति नहीं जताई। इसके साथ ही भारत अमेरिका से मानवरहित ड्रोन खरीद सकेगा और बह्मोस जैसी अपनी मिसाइल को बेच सकेगा।
MTCR का सदस्य बनने पर भारत को कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा जैसे अधिकतम 300 किलोमीटर से कम रेंज वाली मिसाइल बनाना ।
अमेरिका ने मिसाइल क्लब में तो भारत की एंट्री करा दी है। NSG के लिये हमें चीन की जरूरत है। कोई दुसरा देश हस्तझेप करें तो बात बन सकती है। लेकिन सवाल उठता है चीन के कड़े प्रतिरोध के बाद कोई देश उससे सामना करना चाहेगा ? अमेरिका चीन पर दबाव बना पाने में कामयाब होगा? खबर तो यह भी मिल रही है कि South Africa जैसा अहम साझेदार देश NSG में भारत की सदस्यता का विरोध कर रहा है।

 कल मोदी ने अमेरिकी संसद को भी संबोधित किया। भाषण में कई कमियां थी,जिस कारण अब जग हंसाई भी हो रहा है। मोदी जी अंग्रेजी बोलने के लिये टेलीप्रॉम्पटर का प्रयोग करते है। जिस पर लिखा देखकर वो बोलते हैं। एक वाक्य दायें मुड़ कर बोलते हैं तो अगले वाक्य के लिए बायें मुड़ते हैं। हालांकि अंग्रेजी न जानना बुरी बात नही है। मोदी जो भाषण पढ़ते है,उसको एक बार रीचेक किया ही जा सकता है। निश्चित ही अंग्रेजी जानने वालो की अच्छी टीम मोदी के साथ होगी मगर वे लोग हमेशा इतिहास में शुन्य बटा नील हो जाते है। अमेरिका में जग हंसाई का कारण यूं हुआ कि एक कल्चरल प्रोग्राम में पुरानी मूर्तियों के बारे में बोलते हुए कहा कि 'कोणार्क के सूर्य मंदिर में कलाकारों ने मॉडर्न गर्ल की मूर्तियां बनाई हैं, जिनमें उन्हें स्कर्ट पहने और पर्स हाथ में लिए देखा जा सकता है। ये मूर्तियां दो हजार साल पुरानी हैं। इसका मतलब है कि शायद ये चलन उस वक्त रहा होगा।' जबकि सच्चाई यह है कि कोणार्क मंदिर को गंग वंश के राजाओं ने 13वीं शताब्दी में बनवाया था। फिर होना क्या था सोशल मीडिया पर उनका भद्द पीट गया। बिहार,युपी,गुजरात और भी कई संदर्भों में इतिहास में की गई गलतियां दिखती रहती हैं।

मैं आठवीं क्लास में था, तब संसद में गतिरोध तेज हो गया था। पहली बार संसद को समझने में खुब मजा़ आ रहा था। बीजेपी भारत-अमेरिका परमाणु करार का विरोध कर रही थी, लेकिन अब देखिये अब जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने इसकी तारीफ की और कहा कि यह दोनों देशों की नई रणनीतिक साझेदारी में मुख्य बिंदु है। इसमें कतई दो राय नही हो सकती कि पिछली सरकार के दौरान की गई मेहनत का फल अब बीजेपी चख रही है। एनएसजी और एमसीटीआर की मेंबरशिप जैसे उदहारण सामने दिख रहें हैं। चीन का धमक देखते हुये अमेरिका ने तय कर लिया था कि वह इस मामले में भारत की मदद करेगा। प्रतिबंध से आजादी दिलाने का यह सहयोग न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफेरेशन ट्रीटी (एनपीटी) पर दस्तखत न करने वाले भारत को न्यूक्लियर क्लब की मेंबरशिप दिलाने के लिए भरपुर प्रयास करेगा।
NSG 48 देशों का समूह है, जो परमाणु संबंधी चीजों के व्यापार को संचालित करते है।
इस समूह का मकसद है न्यूक्लियर मैटेरियल का इस्तेमाल बिजली बनाने जैसे शांतिपूर्ण कामों के लिए हो।
NSG यह भी सुनिश्चित करता है कि न्यूक्लियर सप्लाई मिलिट्री इस्तेमाल के लिए डाइवर्ट न की जाए।
NSG के 48 देशों में से एक देश भी अगर भारत को शामिल करने का विरोध करता है तो NSG में भारत को शामिल नहीं किया जाएगा।
उम्मीद करते है कि भारत को यह रूतबा भी हासिल हो जायें। इस डील में युपीये और एनडीए क्रमश: दोनो सरकार की भागीदारी,उर्जा और प्रयास लगा है। मोदी इस डील को सकारात्मक लेते हुए आगे बड़ाने को गंभीर है जो बेहतर और स्वागत योग्य कदम है।
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अपने पहले कार्यकाल में ओबामा अफगानिस्तान मुद्दे पर केंद्रित थे और दक्षिण एशिया के लिए अपनी नीति में वे अफगानिस्तान, तथा उसके विस्तारित रूप में पाकिस्तान से आगे गौर नहीं कर सके थे और इसमें भारत के लिए ज्यादा जगह नहीं बचती थी.’ पर, कुगलमन के अनुसार, ओबामा के दूसरे कार्यकाल में, और खासकर अंतिम दो वर्षों के दौरान अफगानिस्तान के संघर्षों से मुक्त होकर ओबामा प्रशासन भारत को वह शक्ति मानने लगा है, जो चीन तथा दक्षिण चीन सागर में उसके सामुद्रिक आक्रमण को प्रतिसंतुलित कर सकता है.

जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान की दिशा में अमेरिका तथा भारत के साझा प्रयासों का स्वागत करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने कहा कि दोनों देशों ने पेरिस समझौते के कार्यान्वयन की दिशा में बढ़ती प्रगति प्रदर्शित की है.
-  वॉयस ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट का मुख्य अंश

दोनों देशों ने साझा बयान भी जारी किया, इसमें भारत को अमेरिका का बड़ा रक्षा साझेदार कहा गया है. वॉशिंगटन ने तकनीक मुहैया कराने और मेक इन इंडिया अभियान के तहत भारत में निर्माण करने का एलान किया है.

दोनों देशों ने तीन मुद्दों पर साथ काम करने के लिए एक रोडमैप भी तैयार किया है. एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा, "इस बात को स्वीकार किया गया है कि विकास के साथ भारत अपने हितों की भी रक्षा करेगा, सिर्फ इलाके में ही नहीं बल्कि व्यापक पैमाने पर एशिया प्रशांत में, खास तौर पर हिंद महासागर में, जब तक भारत सुरक्षा तंत्र मुहैया कराने में सक्षम नहीं हो जाता तब तक उसकी मदद करना अमेरिका के हित में है."

अमेरिकी अधिकारी ने यह भी कहा कि, "भारत हमारे साथ ऑपरेट करे या न करे, हम भारत को उसके हितों की रक्षा करने लायक बनाने के प्रति वचनबद्ध हैं, ताकि हिंद महासागर इलाके में समुद्री परिवहन को किसी भी तरह के खतरे से मुक्त रखा जाए, जिस तरह से यह दक्षिण चीन सागर में किया जा रहा है."

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