ये इश्क़ नही आसां

23:50:00 Manjar 3 Comments



सुई की टिक-टिक वह घड़ी फिर ले आती जिसको गुजरे 'वर्ष' हो गए हो।अल्लाह की मेहरबानी ही हैं कि दोस्तों से मेरा रिश्ता कभी खराब नही हुआ।
अगर कोई मुझसे एक छोटी सी बात के लिए भी नराज हो जाये तो मैं उसके कंधे में हाथ रखकर बड़े प्यार से खुद को हार मान लेता हूँ।
शायद मैं बहस में जीत जाउ परन्तु रिश्ता तो खो दूंगा ना।
अगर किसी से आप झगड़ रहे हैं तो वास्तविकता में आपमें ही नकरात्मक ऊर्जा परवाह कर रही हैं।
जब भी कभी आप किसी से मिलते हैं उसके साथ रिश्ता जोड़ने से पहले आपके दिमाग से 'डर' को खत्म करना पड़ता हैं।
खुशकिस्मत हूँ मैं अब तक जितनों से भी रिश्ता बनाया हैं सब की ऊष्मा,गहराई और परख को जिया हूँ।  रिश्ते ही हमें संबल देते हैं तो कभी सोचने को विवश करते है। तो कभी मन को झकझोर देने वाला प्रश्न खड़ा कर देते हैं तो फिर ये रिश्ते ऐसे पल दे देते की उसको समेटकर प्राण त्यागा भी जा सकता हैं,जो कभी मिटने वाला नही होता। आपलोग से बात क्या करनी थी और मैं क्या बता रहा हूँ।

मेरा दोस्त जिसको मेरी आवश्यकता हैं, आज इस नाजुक घड़ी में आके खड़ा हो गया हैं। इश्क (इश्क,जिसे कई लोग कहते हैं की मुझे ठीक ढंग से बोलना भी नही आता)
शेक्सपियर कहते हैं "मैंने जब तुम्हें देखा, तभी मैं तुमसे प्यार में पड़ गया। तुम मुस्कुराई, क्योंकि तुम ये जान गई थी।"
वास्तव में प्यार एक एहसास हैं। जो नजदीकियां से पनपती हैं,आँखो में डूब जाती हैं।
तो मेरा दोस्त इस वक़्त की नजाकत को समझ रहा था पर उसमें इतनी हिम्मत न थी कि वह दिल के लफ्ज़ को आवाज में बयां कर सके। किसी तरह कई बार मनाने के बाद वह बता सका की उसे प्यार हो गया हैं। बता रहा था 'अचानक फिल्मों में तुम दिख जाती हो' क्या कहूँ' संगीतो में तुमसे ही वास्ता पड़ता है' बहुत बार मनाने के बाद ये दिल तुझपे ही अटक गई। तुझपे ही कुर्बान हो गया हूँ। तुझपे ही फना हो गया हूँ। पर कैसे बताऊ की मुझे तुमसे मुहब्बत हैं।
दोस्त मेरे पर विश्वास करते हैं। अपनी व्यथा मुझे सुनाई। सबसे पहल मैं उस लड़की का नम्बर लिया ताकि उसे बता सकूँ कि कुछ चीजे कुछ क्षण तक ही रहती हैं। मैं उससे पूछ सकूँ की सीने में आग किसी एक का ही दहक रहा हैं क्या?
इस छोटी सी जिंदगी में कई दिलो को मिलाया। कभी साइड टेबल पर बैठकर तो कभी हौंसला देकर रात के अंतिम पहर तक। तो कभी घंटो की दूरी मिन्टो में नाप कर। कभी यह समझाने में ही माथे का नस दुख गया था कि ये ही क्यों?

हां,आज तक  मैंने एक पल भी ऐसे कामों में जाया नही किया। जो मेरे लिए फायदेमंद न हो। पढ़ाई के वक़्त,घण्टो पढ़ाई किया। अनुशासन के वक़्त बेहद कड़ा अनुशासन का पालन किया। मेरा समपर्ण, लक्ष्य भाव देख के ही लड़कियो को मेरे आस-पास फटकने की हिम्मत न होती। कोचिंग या स्कूल की तरफ किसी को रिप्रेजेंट करना हो तो मुझे ही अक्सर चुना जाता। स्कूल के दिनों में यह चीज सामान्य हो गया था कि मंजर कभी हँसता भी नही हैं। मेरे भाई/दीदी से कुछ लड़कियां पूछती थी की मंजर घर में हँसता हैं भी या नही?

परंतु शुरुआत के दिनों में ऐसा न था। और न आज हैं। आज आपलोगों को मेरी अपनी कहानी सुनाऊंगा। जो इन दो पहरो के बीच में हैं। जो कल और आज के बीच में जिसको मैंने जिया हैं। उस वक़्त को सहेज रहा हूँ। आप सब सुनिए मेरी कहानी।

ये कहानी हैं उस जमाने की जब आलिंगन दृश्यों को देखते ही असहज हो जाता था। जब बहन से लड़ाई हो जाती थी और दो चांटा खाकर कुछ देर रो कर चुप हो जाता था। तभी कुछ - कुछ समझ में आ रहा था प्यार किसे कहते हैं। वार्षिक परीक्षा कुछ ही दिन पहले बीती थी। 5 विषयों में से 3 में फेल होने के कागार पर था। किसी तरह पास कराया गया था। बेतरतीब बाल,नाक से सर्दी का हर वक़्त एहसास। हेडमास्टर साहब आते तो एवरेज सा बना देता । मध्यांतर का बेसब्री से इन्तेजार रहता या यु कहे तीसरा और चौथा पिर्यड से ही फील्ड  में जाने की बेचैनी रहती। इन घंटो के बीच में क्या पढ़ाया जाता मुझे जरा भी समझ में नही आता। कौतहुल लगा रहता न स्कूल में पढ़ पाता न घर में कुछ समझ आती। जिसका नतीजा होम ट्यूशन के अलावा स्कूल के दोस्तों के बीच हसने का कारण  बन गया था। टीचर हमेशा मुझे ही खड़ा कर देते और मैं बताने में असमर्थ रहता। ऐसा लगता सारा टीचर मेरे दुश्मन हैं। पापा के ओहदे के कारण स्कूल वाले विशेस ध्यान देते। यह भी कारण था कि स्कूल से छुट्टी होने के बाद कोई भी सहपाठी या दोस्त मेरा मजाक नही उड़ाते। टीचर से जो कम्प्लेन मिलता जिसका नतीजा मेरे पिताजी मुझसे नराज हो जाते थे। मेरे दीदी 'मेरा अपमान' चुपचाप सहन कर लेती। दीदी के आँखो में देखने से ऐसा लगता अब उठगी और पूरी दुनिया से मेरे लिए लड़ जायेगी और कह देगी मेरा भाई एक दिन सबसे आगे निकल जायेगा। लेकिन जो भी गतिविधिया होती,नतीजा हमेशा उलट ही रहता।
रिजल्ट के अगले दिन वह लड़की मेरे बगल में आके बैठ गई। मेरे हाथ पहली बार उसके गाल से होते हुए होंठ तक पहुंच गया। वह बैचेनी पहली बार महसूस हुई। दो-तीन दिन ऐसा ही चलता रहा। एक रात जागकर उसके लिए I LOVE YOU का कार्ड बनाया। अहले सुबह समय से पहले पहुंच गया था। दिल की धड़कन बड़ रही थी। बार-बार दिमाग में डर पैदा हो रहा था। यदि कोई यह कार्ड देख लिया तो क्या होगा? एक तो वैसे ही फेल्योर स्टूडेंट था। ऊपर से प्रिंसिपल और पापा का सामना करना पड़ेगा। जब वो आई तो क्लास में मैं और वह थी। कार्ड जब उसकी तरफ बड़ा रहा था तब मेरे हाथ से पसीना निकल रहे थे और पैर थरथरा रहे थे। उसके हाथ में कार्ड जब रखा तो वह पढ़ के अचानक गुस्से में आ गई। मुझसे पूछ रही थी तुमतो बड़ी मुश्किल से पास होते हो और ऊपर से इतने गंदे दिखते हो। तुमने ऐसा सोंच भी क्यों लिया? बड़ी विनती की ये बात किसी और को मत बताना। टूट के बिखर जाना बहुत आसान लग रहा था लेकिन किसी एक शख्स के लिए इतना मेहनत इत्तेफाक नही था। इश्क क्या होता हैं इसका तो अंदाजा नही था लेकिन दिल टूटने का जख्म और नज़र ना मिलाने की हिम्मत कितने दिन तक रहती हैं। इस सवाल का जवाब मिल गया था। दरअसल, सच यही है कि जो लोग भावुक होते हैं, जो दिल से संचालित होते हैं, उनका दिल जब टूटता है तो सबकुछ टूट जाता है।
मेरे बकलोल बनने में वजह क्या थी? वास्तव में मुझे अपने किताबो में मन ही नही लगता था। सिर्फ साइंस की किताबो को ही पढ़ता था। ये दुनिया मुझे बड़ी सतरंगी लगती थी। किताब में लिखे शब्दों का जब परीक्षण करता था । परिणाम जब आती थी खुशी के मारे पूरे घर को माथे में ले लेता था। दीदी मुझसे 4 क्लास बड़ी थी।  आठवीं क्लास की एनसीईआरटी की किताब की सारी क्रियाकलापों के लिए आवश्यक सामग्री बड़ी मेहनत से जतन करता था। रोड पर चलते हुए नीचे गिरे हुए चीजों को उठा लेना। एक-एक पैसा जोड़ते हुए प्रेक्टिकल के लिए अन्य चीजों को खरीदता था। जब चीजे मिल जाती थी तो अपने को मोटरसाइकिल मानकर दौड़ते हुए सीधा घर तक पहुँच आता था। फिर
पलंग के नीचे घुसकर वहीं सारा सामान इकट्ठा करता। फिर किताब में पढ़ता और प्रेक्टिकल करता। कभी मां गुस्से में आकर सब फेक देती थी। कहती थी इतना मेहनत करते हैं साफ करने में तुम क्यों कबाड़ बना देते हो? पर जब परिणाम निकलती तो इस दुनिया में ऐसा खो जाता की पता ही नही चलता की और भी कुछ पढ़ना हैं।

छ क्लास में अब जाने में ही वाला था। कुछ दिनों के लिए स्कूल की छूटी हुई । पापा के साथ जो काम करते(सहकर्मी) उन छुट्टी के दौरान उनके घर जाना हुआ। जनवरी में मेला लगता हैं,अंकल हमें मेला दिखाने अपने घर ले आये थे। पहली बार गया तो बड़ी घबराहट हो रही थी। उनकी एक बेटी थी जो मेरे ही क्लास में पढ़ती थी। वह पहली लड़की थी जो मेरा ख्याल रख रही थी। बातों में कब घंटो बीत जाता वक़्त का ख्याल ही नही रहता। साथ घूमना, साथ खेलना,ढेर सारा मस्ती करना। उसके साथ वक़्त बिताना काफी अच्छा लग रहा था। प्यार का पहला स्वाद यही चख रहा था। उसका खिलखिलाता बचपन,बेपरवाह मुस्कान और हंसते -मुस्कुराते चेहरे अपनी और खींच रहे थे। समय बिता छुट्टियां भी बीत गई। घर को ढ़ेर सारी यादें सहेज कर ले जा रहा था। ऐसे ही छुट्टियां हुई और हम फिर घूमने जाने का प्रोग्राम बना। जिस सुबह को जाना था,उसके दो दिन पहले से ही जाने की तैयारी करने लगे थे। पापा बता रहें थे कि उनका अब यहां से ट्रांसफर होने वाला हैं। मेरे पास अब अंतिम मौका था कि उसे कह दे की देखो तुमसे कितनी मोहब्बत हैं। दिल में छुपी सारी आरजू को दो-तीन पन्नों में लिख दिया और बड़े जतन से टेबल के नीचे रख दिया। जिसमें हर वह कहानी लिखी थी कि तुमसे मिलने का सुख और बिछुड़ने का विरह का वियोग कैसे क्षेलता हूँ मैं।
अगले दिन उठा तो देखा की सभी पन्ने गायब हैं। दिल बेचैन होने लगा। पता चला ये सारे पन्ने पिता जी के हाथ लग गए हैं। डर से मेरा चेहरा सुर्ख हो गया था। पिताजी सुबह में टहलकर वापस आएं तो इस कागज के बारे में तफ्तीश मम्मी से कर रहे थे। उसके टुकड़े-टुकड़े करने के बाद अंत में जब मेरी तरफ मुड़े और मुझसे पूछा कि क्या तुमने लिखा हैं? तुम बिगड़ रहे हो। मैंने बहुत हिम्मत से और जोश में बुलंद आवाज से कहा कि मेरी लिखावट मिलाई जाये। पापा, शायद मुझसे सहमत थे कि मेरा बच्चा ऐसा नही कर सकता।

मैं तो फिर उससे मिल नही सका। हां फोन पर अक्सर बात हो जाती हैं। तब से लेके बारहवीं तक एक बार भी किसी से इश्क़ नही हुआ। मैं खुद पे बहुत ज्यादा केंद्रित होने लगा । ये खुद में प्रतिध्वनि पैदा होने लगी कि समर्पण,अनुशासन तथा महत्वकांक्षी जैसे चीजों के लिए ही मंजर बना हैं।

आपलोगों के लिए -
जिससे आप प्यार करते हैं उससे ही शादी कीजिए। इस दंश के साथ नहीं मरीये कि जिससे आप प्यार नहीं करते थे, उसके साथ किसी तरह शादी निभाते हुए मर गये । क्या आप मरते हुए अपने मन को संतुष्ट देखना नही चाहते हैं? उस खुशी को जीना नही चाहते जो प्यार से पैदा हुआ हैं। खुदा न करे की आप इस अफसोस में मर जाय कि पूरी ज़िंदगी अनचाहे रिश्ते की गुलामी में गुजारी दी।
जाइए यह वेलेंटाइन का बेहतरीन मौका हैं। अपनी दिल की बात बिना लाग-लपेटे से कहिये। या तो गलतफहमी दूर हो जायेगी। या फिर आपका प्यार मिल जायेगा। कम से कम कशमकश की जिंदगी से छुटकारा तो मिलेगा। इश्क़ में सात मुकाम होते हैं..दिलकशी,उंस,मोहब्बत,अक़ीदत,इबादत,जुनून और मौत(There are 7 stages of love ... attraction, attachment, love, trust, worship, passion and death) ये सातो मुकाम आप हासिल कर लीजिये ।आप सभी को प्यार का सप्ताह का मुबारकवाद।


3 comments:

  1. Bohot khoob likha hai 👏👏

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  2. Main waqt ki najakat aur isq ki taqat ko samjhta Hu. Uss pyar bhare dil ko samajhta hu uske dard ko v samjhta hu. Samjha ke thak gaya ye fakir iss duniya ko isq ki takat. Kiyoki mai Laila Ko v samjhta hu aur Majnu ko v samajhta hu.

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