सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

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मुक़्तदा हसन निदा फ़ाज़ली
जन्म: अक्टूबर 12, 1938 (आयु 77 वर्ष)
ग्वालियर
मृत्यु:8 फ़रवरी 2016
मुम्बई
भाषा:हिंदी, उर्दू

दोपर करीब 1 बज रहा था। अचानक टीवी स्क्रीन पर उभर रही ' ब्रेकिंग न्यूज़' स्तब्ध कर देने वाली थी। ख़बर चल रही थी "निदा फाजली" नही रहे।
प्रधानमंत्री कार्यालय से,राहुल गांधी के ऑफिस से,लता दी लगभग तमाम सक्रिय लोग निदा फाजली को याद कर रहे थे।
उर्दू के मशहूर शायर और फिल्म गीतकार निदा फाजली का निधन का खबर चल रहा था। सादा बोल, गहरे भाव, मीठे एहसास, प्रभावशाली रचनाएं,मोहब्बत की एहसास,दुःख का समावेश,सब पिरो देते अपना नज़्म में।
हाल के दिनों से ही खबर आ रही थी कि 78 साल के निदा फाजली को सांस लेने में दिक्कत आ रही हैं।

2 फ़रवरी को मेरे मित्र 'मोहित कुमार सिंह' ने एक वीडियो व्हाट्सऐप पर भेजा। ( आप भी वीडियो जरूर देखिए http://youtu.be/VOR2NXMtbWU)
वीडियो शरीर में ऐसा उत्तेजन पैदा कर दिया कि सहसा वह सारे मंजर याद आने लगे जो पाकिस्तान के पेशावर में आतंकियों ने आर्मी स्कूल में घुसकर 150 के करीब मासूम बच्चों  को मार दिया गया था
तब संवेदना को व्यक्त करने के लिए दुख बेबस असहाय को बयां करते शब्द शायर "निदा फाजली' के ही थे। जो लाखों लोगों ने शेयर किया था। निदा साहब की ही करिश्माई कविता होते हैं कि हर जज़्बाती हालात में उनके गढ़े हर शब्द आंखो के सामने तैरने लगती। यह जीवंत कविता उनकी अदायगी थी। एक-एक लफ्ज मुकम्मल, एक-एक भाव सच्चा, एक-एक पंक्ति करीने से सजी जैसे हर पंक्ति की रचना इस तरह होती की लगता की इससे बेहतर बनाया ही नही जा सकता।

निदा को प्‍यार ने शायर बनाया था। कॉलेज में उनके आगे की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी। उससे उन्‍हें लगाव महसूस होने लगा था। पर एक दिन नोटिस बोर्ड पर पढ़ने को मिला, “Miss Tondon met with an accident and has expired”। निदा का दिल रोने लगा। पर उन्‍हें महसूस हुआ कि उन्‍होंने अब तक कुछ भी ऐसा नहीं लिखा जो उनका यह गम बयां कर सके।
निदा एक दिन वह एक मंदिर के पास से गुजर रहे थे । तभी उन्हें सूरदास की एक कविता सुनाई दी, जिसमें राधा और कृष्ण की जुदाई का वर्णन था। निदा फाजली इस कविता को सुनकर इतने भावुक हो गए कि उन्होंने उसी क्षण फैसला कर लिया कि वह कवि के रूप में अपनी पहचान बनाएंगे।
फिर शब्द बुनते गए,भाव गढ़ते गए।

निदा फाजली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था। शायरी उनको विरासत में मिली थी।उनके घर में उर्दू और फारसी के दीवानए संग्रह भरे पड़े थे। दिल्ली में एक कश्मीरी परिवार में जन्मे फाजली की स्कूली पढ़ाई ग्वालियर में हुई। विभाजन के दौरान उनके माता-पिता पाकिस्तान चले गये, लेकिन फाजली ने भारत में ही रहने का फैसला किया।

70 के दशक में उन्होंने फिल्मों के लिए लिखना शुरु  किया। 1980 में प्रदर्शित फिल्म आप तो ऐसे न थे में पाश्र्व गायक मनहर उधास की आवाज में अपने गीत तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है की सफलता के बाद निदा फाजली कुछ हद तक गीतकार के रूप मे अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। आशा भोंसले और भूपिंदर सिंह की आवाज में उनका यह गीत श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।
जगजीत सिंह ने निदा फाजली के लिए कई गीत गाए, जिनमें 1999 मे प्रदर्शित फिल्म सरफरोश का यह गीत होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है भी शामिल है। फाजली को पदमश्री से भी सम्मानित किया गया।

फाजली को उर्दू और हिंदी में गजलों, नज्मों और दोहों के लिए आम बोलचाल की भाषा के अलग तरह से इस्तेमाल और खूबसूरती से उन्हें पेश करने के लिए जाना जाता है। उनकी कुछ प्रसिद्ध गजलों में 'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता', 'आ भी जा, आ भी जा' (सुर), 'तू इस तरह से मेरी जिंदगी में' (आप तो ऐसे ना थे) और 'होश वालों को खबर क्या' (सरफरोश) आदि शामिल हैं।

पेश हैं उनकी कुछ नज़्में।

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है
तुम को भूल न पाएंगे हम, ऐसा लगता है

ऐसा भी इक रंग है जो करता है बातें भी
जो भी इसको पहन ले वो अपना-सा लगता है

तुम क्या बिछड़े भूल गए रिश्तों की शराफत हम
जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है

अब भी यूं मिलते हैं हमसे फूल चमेली के
जैसे इनसे अपना कोई रिश्ता लगता है

और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूं ही
चलता-फिरता शहर अचानक तन्हा लगता है
_______
अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला

हर बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला

उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आंचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला

इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला
___________
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआं नहीं मिलता
तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो
जहां उमीद हो इसकी वहां नहीं मिलता

कहां चिराग जलाएं कहां गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकां नहीं मिलता

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बां मिली है मगर हमज़बां नहीं मिलता

चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है
खुद अपने घर में ही घर का निशां नहीं मिलता
__________
बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से अजनबी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो जेहन में नाराज़गी रहे

गुज़रो जो बाग से तो दुआ मांगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे

हर वक्त हर मकाम पे हंसना मुहाल है
रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे
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बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता

सब कुछ तो है क्या ढूंढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नहीं जाता

वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहां में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यों नहीं जाता

वो ख्वाब जो बरसों से न चेहरा, न बदन है
वो ख्वाब हवाओं में बिखर क्यों नहीं जाता
__________
ख़ून के नापाक ये धब्बे, ख़ुदा से कैसे छिपाओगे ?
मासूमों के क़ब्र पर चढ़कर, कौन से जन्नत जाओगे ?
दिलेरी का हरगिज़ हरगिज़ ये काम नहीं है
दहशत किसी मज़हब का पैगाम नहीं है ....!
तुम्हारी इबादत, तुम्हारा खुदा, तुम जानो..
हमें पक्का यकीन है ये कतई इस्लाम नहीं है....!!


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