GST: खूब पढ़िये ! खूब समझिये ! खूब बहस कीजिये !
GST बिल पास हो गया। रोज-रोज का हो हल्ला भी शायद अब समाप्त हो जाये। राज्यसभा में GST पर सबने अपने विचार रखे फायदा नुकसान खूब गिनाया। सबके वोट पक्ष में ही जाने वाला था कांग्रेस हो या बीजेपी दोनो की आर्थिक नीति किस तरह से अलग है ? यह जगज़ाहिर है।
ऐसा लगता है कि आम पाठक GST को लेकर दुनिया के अनुभव को जानना नही चाहता या फिर उसने सदन के बहस को पर्याप्त मान लिया है।
जो खुद कोंग्रेस GST को लाने का प्रयास करती रही है वह इसका विरोध क्यों करेगी ? इंटरनेट पर दर्जनों लेख और रिपोर्ट है इन सब को पढ़ना पड़ेगा जो आपकी समझ का आधार रखेगा।
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स आम उपभोक्ता से लेकर छोटी बड़ी कंपनियों और सुक्ष्म उत्पादों वाले कारखाने सभी को प्रभावित करेगा। विशेषकर केंद्र और राज्य में कर वसूली का जो मौजूदा ढांचा है उसे पूरी तरह बदल देगा।
हालांकि तकनीकी तौर पर इसे लागू करने में अभी समय है। राज्यसभा से पास होने के बाद राष्ट्रपति इसे सभी राज्यों की विधानसभा के पास भेजेंगे। जिनमें से 15 विधानसभाओं को मंज़ूरी देनी होगी। उसके बाद जीएसटी काउंसिल बनाने का काम शुरू होगा। केंद्र सरकार को दो जीएसटी कानून बनाने हैं। सेंट्रल जीएसटी और इंटर स्टेट जी एसटी।
भारत में कुल कर संग्रह (प्रत्यक्ष & अप्रत्यक्ष) रु 14.6 लाख करोड़ की है जिनमें अप्रत्यक्ष कर लगभग 34 फीसदी शामिल हैं इन अप्रत्यक्ष कर में Rs 2.8 लाख करोड़ उत्पाद शुल्क से और सेवा कर से रु 2.1 लाख करोड़ हैं।
पी चिदंबरम ने सरकार से अपील की है कि सरकार बिल में ही 18 फीसदी के स्टैंडर्ड टैक्स रेट को जोड़ दे। अगर जीएसटी आने के बाद भी 24 से 26 प्रतिशत का टैक्स लगता रहे तो कोई लाभ नहीं होगा। चिदंबरम ने कहा कि जीडीपी का 57 फीसदी सर्विस सेक्टर से आता है। अगर सर्विस टैक्स 14.5 से बढ़कर 24 प्रतिशत हुआ तो महंगाई बढ़ जाएगी।
येचुरी की बारी आई तो येचुरी ने कहना प्रारंभ किया कि एक समय सदन में ही जीएसटी का रेट 27 फीसदी बताया गया था। क्या हम नहीं जानते हैं फ्रांस में 1954 में ही जीएसटी लागू हुई थी। फ्रांस की जीडीपी 1.16 प्रतिशत है। 140 देशों में जीएसटी है। चीन की जीडीपी 6.81 प्रतिशत है, जापान की जीडीपी 0.59 प्रतिशत है, जर्मनी की जीडीपी 1.51 प्रतिशत है, ब्रिटेन की जीडीपी 2.52 प्रतिशत है।
अमेरिका में जीएसटी नहीं है। वहां की जीडीपी 2.57 प्रतिशत है।
gstindia.com नामक एक साइट है उस साइट पर "GST: Lessons from countries that have implemented the Goods and Services Tax" नाम से एक लेख पढ़ने को मिलेगा जिसे विवेक पचीसिया ने लिखा है, इ वाइ इंडिया के टैक्स पार्टनर है। विवेक लिखते हैं vat, gst का विकल्प है लेकिन पूरी दुनिया को GST से जो मुश्किलात हो रही है वह टैक्स दर है। कोई भी देश इसको स्थिर नही रख पाया है।
30 मुल्कों का एक संगठन है OECD( organization of economic co-operation and development) पिछले पांच सालो में 30 में से 20 सदस्य देशों ने अपने यहां जीएसटी की दरें बढ़ाईं हैं। यानी सबके यहाँ महंगाई बढ़ती चली गई है। अगर सरकार बोलती है मात्र तीन साल महंगाई बढ़ेगा लेकिन ऐसा प्रतीत नही होता कि तीन साल बाद रुक जाएगा। एक बार महंगाई बढ़ गई तो बढ़ती चली जायेगी।
इंडिया के तरह कैनेडा है जिसने डुअल कॉन्सेप्ट अपनाया है। inflation के दर को लेकर भी आशंका जाहिर की गई।
मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में बताया है कि 2005 से 2014 के बीच दुनिया की 25 विकसित अर्थव्यवस्था में दो तिहाई परिवारों की वास्तविक आय घट गई है या फिर सामान रही हैं।
आपका अपना अनुभव नही बताता कि गरीब और गरीब हो रहें है। गरीब अपना सारा जमा पूंजी धीरे-धीरे बाजार के हवाले कर देते हैं। पूंजी को आकर्षित करने और रोक कर रखने के लिए टैक्स और ब्याज़ दरों में कई प्रकार की छूट दी जाती है।
जीएसटी एक ऐसा कर प्रणाली है जो उत्पादों के उपभोग पर कर लगा देने से कर वसूली व्यापक हो जाती है। न्यूज़ीलैंड का जीएसटी सबसे आइडियल मॉडल इसलिये है क्योंकि वहां सभी उत्पादों को जीएसटी के अंदर रखा गया है। जबकि भारत में शराब, तंबाकू और पेट्रोल को जीएसटी से बाहर रखा गया है। वही शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सेवा शामिल है। जबकि ऑस्ट्रेलिया में इनसब को बाहर रखा गया है। यह तो तय है कि अब यहाँ स्वास्थ्य और शिक्षा अभी के अपेक्षा और महंगे हो जाएंगे। कर वसूली कमी के कारण आस्ट्रेलिया सरकार ने पिछले दस साल में शिक्षा और स्वास्थ्य में 80 अरब आस्ट्रेलियन डॉलर की कटौती की है। तो फिर ऑस्ट्रेलिया सरकार का GST से राजस्व गया कहाँ ? फिर यह सपना बेचना बंद कर देनी चाहिए। ज्यादातर देशों में (आइडियल के करीब) इंकम टैक्स में भी इसलिये कमी की गई है ताकि चीज़ों के दाम जब बढ़े तो लोग इक्वल कर सके।
कही की भी सरकार GST इसलिये लाती है ताकि कॉरपोरेट का विश्वास जीत सके उन्हें विश्वास हो कि सरकार आम जनता से इतनी उगाही कर लेगी कि उन्हें भयंकर आर्थिक संकट का सामना ना करना पड़े। ठहराव हो । रुक कर व्ययपार कर सकें। वैसे कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि 18000 से नीचे कमाने वाला बर्बाद हो जायेगा। उसके हाथ कुछ नही लगने वाला पर मेरा आकलन 25000 प्रति महीना कमाने वाला वस्तु और सेवा पर कर देकर उसके हाथ कुछ नही लगेगा।
गरीब और गरीब हो जायेगा जैसा पूरी दुनिया में हो रहा है। आम लोगों का पैसा कॉरपोरेट के हवाले किया जायेगा ताकि वे स्थिर रह सकें। निःसन्देह GDP में बढ़ोतरी दर्ज होगी ही।
राज्यों के हितो पर क्या असर पर पड़ रहा है इसपर किसी और दिन बात करते हैं।
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