फिल्म रिव्यू : मोहनजोदड़ो

13:50:00 Manjar 0 Comments


कलाकार:  रितिक रोशन, पूजा हेगड़े, कबीर बेदी, अरुणोदय सिंह
निर्देशक-लेखक-पटकथा: आशुतोष गोवारिकर
निर्माता: सुनीता गोवारिकर, सिद्धार्थ राय कपूर
संगीत: ए. आर. रहमान
संवाद : प्रीति ममगैन
गीत: जावेद अख्तर
रेटिंग : ***

12 अगस्त को एक साथ दो बड़ी फिल्म रिलीज हुई। यंगस्टर में जहां 'रुस्तम' को लेकर क्रेज था वही 'मोहनजोदड़ो' को ह्रितिक के फैंस फर्स्ट शो मिस करना नही चाह रहें थे।गोवारिकर ऐतिहासिक फिल्मों में भव्यता के पुट के साथ प्रेम प्रसंगों को खूबसूरती से परदों पर उतारते हैं। प्री-हिस्टोरिक इंडस वैली सिविलाइजेशन के समय को परदे पर उतार तो दिया गया है लेकिन कही भी उस काल में घटित घटनाओं को इतिहासकारों ने जो राय अपने किताबों में दर्ज की है उसकी मेल नही खाती। अगर आप इस फिल्म के माध्यम से इतिहास समझने का प्रयास करते है तो आपका प्रयास असफल हो जायेगा।

 मुअनजोदड़ो वाणी प्रकाशन से प्रकाशित के लेखक थानवी लिखते है " सिंधु सभ्यता के बारे में कमोबेश सभी विशेषज्ञ अध्येता मानते आए हैं कि वह शांतिपरक सभ्यता थी। खुदाई में अकेले मुअन/मोहनजोदड़ो से जो पचास हज़ार चीज़ें प्राप्त हुईं, उनमें एक भी हथियार नहीं है। सिंधु सभ्यता को जो बात बाक़ी दो महान सभ्यताओं (मिस्र और मेसोपोटामिया/इराक़) से अलग करती है, वह है यहाँ (सभ्यता के मुअनजोदड़ो या हड़प्पा आदि बड़े केंद्रों में) बड़ी इमारतों, महलों, क़िलों, उपासना स्थलों, भव्य प्रतिमाओं आदि के प्रमाण या संकेत न मिलना। सबसे विचित्र चीज़: शोधकर्ताओं ने माना है कि सिंधु सभ्यता में घोड़ा नहीं था, उसे आगे जाकर वैदिक सभ्यता में ही पालतू बनाया जा सका। इसका प्रमाण खुदाई में मिली हज़ारों चीज़ों में शेर, हाथी, गैंडा आदि अनेक पशुओं की आकृतियों के बीच कहीं भी घोड़े की छवि न होना समझा जाता है। पर फ़िल्म एक नहीं, अनेक घोड़े हैं। 
घोड़े, पुजारी, कर्म-भेद, वेश-भूषा, अनुष्ठान आदि सिंधु/हड़प्पा सभ्यता को किसी और सभ्यता (वैदिक संस्कृति?) में रोपने की कोशिश का संदेह खड़ा करती हैं।"

चीजों की खरीद-बिक्री के लिए चीजों का आदान-प्रदान किया जाता था। और तब के समय जब गांव से आया युवक दुमंजिला भवन देखता है तो उसकी कल्पना की सारी सीमाएं टूट जाता हैं। यह सब देखना आपको रोचक लग सकता है। मोहनजोदड़ो की ख़ास पहचान ईंटों वाले कुएँ  और ड्रेनेज सिस्टम रहा है जो शहर को सिस्टमेटिक बनाता है इसकी झलक फिल्म में लाई जा सकती थी। यह फिल्म यह कहकर बच निकलती है कि ऐतिहासिक नहीं है और न किसी प्रामणिकता का दावा करती है। तो सीधे फिल्म पर आते है।

कहानी: एक ऐसा शहर जो रातों रात सिंधु नदी के पानी में समा गया। कहानी आमरी गांव के एक किसान के बेटे सरमन (ऋतिक रोशन) की है, जो चर्चित नगर मोहनजोदाड़ो जाने का सपना देखता है और एक दिन वहां पहुंच जाता है। मोहनजोदड़ो पहुंच कर सरमन की नजर चानी (पूजा हेगड़े) पर पड़ती है, जो वहां के सबसे बड़े पुजारी की बेटी है। सरमन को चानी से प्यार हो जाता है, जिसकी शादी वहां के महम से तय हो चुकी है। यहां पर राज चलता है प्रधान माहम की जो किसी की नही सुनता है। राजा और उसका बेटा के द्वारा की गई क्रूरता उसे असहज लगता है। और वह इसका विरोध करने का निश्चय लेता है।
इधर सरमन से बात करने पर पुजारी को पता चलता है कि सरमन दरअसल सुरजन का बेटा है, जिसने बरसों पहले माहम के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी।

फिल्म: फिल्म में स्पेशल इफेक्ट्स और वीएफएक्स का इस्तेमाल खूबसूरती से रचा गया है जो फिल्म को आकर्षित करती हैं और बांधे भी रखती है। नरभक्षी से लड़ाई,मगरमक्ष का शिकार और डराने वाली नदियां ये सिंस को आप सीट से बिना हिले-डुले बस देखते रह जाते  है। फिल्म अपने शिल्प की वजह से ध्यान खींचती है।
अभिनय: ऋतिक रोशन सरमन के रोल में जमे हैं। पूजा हेगड़े ने भी अच्छा काम किया है। बाकि कलाकारों के लिए ज्यादा स्कोप नजर नही आता है।
म्यूजिक: गाने तो पहले से ही हिट है। बैकग्राउंड म्यूजिक कमाल का है।
निर्देशन: इंडस वैली को दिखाने के लिए आशुतोष की मेहनत और रिसर्च वर्क अच्छी कही जा सकती है क्योंकि सभी इतिहासकारों का एक राय नही है। कल्पनाओं के सहारे कथा बुना जा ही सकता है। गोवारिकर फिल्म में अपनी पकड़ बनाये रखे है। फिल्म को बड़ा पर्दा पर देखना रोमांचक लगता है।
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वैसे हमने किसी एक फिल्म का मन नही बनाया था जो नजदीक के सिनेमा घर में निर्धारित समय में जो भी चल रही हो वह ही देखा जायेगा। तय समय पर पहुंचने पर मोहनजोदड़ो चलने वाली थी इसलिए पहली रिव्यू मोहनजोदड़ो की।

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