राष्ट्रवाद पर बहस - असदुद्दीन औवेसी

14:16:00 Manjar 0 Comments

राष्ट्रवाद के बहस पर अगले कुछ दिन ' राष्ट्रवाद' विभिन्न नजरिये से 
पढ़िए इस शृंखला की पहली किस्त
- असदुद्दीन ओवैसी

अगर देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) या कोई भी संगठन यह कहता कि हिंदुस्तान में किसी भी हिंदुस्तानी की वफ़ादारी और उसके हिंदुस्तान से मोहब्बत का पैमाना यह होगा कि उसे किसी ख़ास तरह के नारे लगाने पड़ेंगे तो मुझे इस पर सख़्त एतराज़ हैं। 

मेरा मानना यह है कि लोकतंत्र में हर किसी को अधिकार है नारे लगाने का, अपने मुल्क से मोहब्बत का इज़हार करने का, मगर किसी को यह अधिकार नहीं हैं कि वह यह कहे कि जो नारा मैं लगा रहा हूं, वही नारा सच्चा है और अगर आप वह नहीं लगाएंगे तो आप इस मुल्क से प्यार नहीं करते हैं.

दूसरी बात यह है कि हमारे कानून में इस बात का ज़िक्र नहीं हैं न हमारे संविधान के मौलिक अधिकारों में इसका शुमार होता है जैसा कि आरएसएस कह रहा है.
मुझे गर्व है 'जय हिन्द' कहने पर, मुझे खुशी होती है जब हिंदुस्तान ज़िंदाबाद कहता हूं. अगर किसी और को दूसरा नारा लगाने पर खुशी मिलती है तो मुझे उसपर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मैं वह नारा नहीं लगाउंगा.
अगर कोई मेरे सामने खड़े होकर यह कहता कि उसे यह नारा लगाने से खुशी मिलती है तो मैं उन्हें कहूंगा कि आप वह नारा लगाएं, पर मैं नहीं लगाउंगा. यही तो हमारे देश की खूबसूरती है. यही हमारी विविधता है, यही हमारी बहुलतावादी संस्कृति की ख़ास पहचान है.

इसमें कुछ भी इस्लामिक मसला नहीं हैं और न ही मैं किसी इस्लामिक कानून को जानता हूं. यह तो आलिमों का मसला है. हिंदुस्तान के कानून में धार्मिक स्वतंत्रता एक बुनियादी हक़ है और इस हक़ को कोई नहीं छीन सकता.
इसके साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी है. हमारे देश के कानून के अनुसार मुझसे यह हक़ कोई नहीं छीन सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह हमारे संविधान का मौलिक हिस्सा है.

वारिस पठान को निलंबित करके आप क्या संदेश दे रहे हैं. कल को कोई कहेगा कि वारिस तुम्हारा मज़हब ठीक नहीं है तो अपना मज़हब बदल लो, कहां जा रहे हैं हम.
अगर मैं किसी कानून को तोड़ता हूं तो मुझ पर केस दर्ज़ करें, सज़ा दिलाएं, जेल भेजें. मगर यह कहां से आ गया कि हमारे समूह या संगठन को यह चीज़ खराब दिख रही है और जो हम कहें वही कानून है. यह तो ठीक नहीं है. फिर तो कानून का शासन कहां रहेगा.
हम अपनी मां से यकीनन प्यार करते हैं. जिस मां ने हमें पैदा किया उसके कदमों के नीचे जन्नत है. लेकिन क्या हम अपनी मां की इबादत करते हैं? नहीं करते. हम अल्लाह की इबादत करते हैं.

हमें अपने देश से प्यार है और रहेगा. मैं इस देश का वफ़ादार हूं और रहूंगा. मगर यह किसी को अधिकार नहीं है कि वो मेरी वफ़ादारी पर शक करे. महज इस बुनियाद पर कि आपका जो नारा है वह हम नहीं लगाते.
मुझे फ़ख़्र है कि मैं जय हिन्द कहता हूं. हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाता हूं. महाराष्ट्र विधानसभा में जो हुआ वह अच्छा नहीं हुआ. भाजपा के अलावा अन्य राजनीतिक दलों ने जो रुख अपनाया वह उनकी पोल खोलने के लिए काफी है.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जेएनयू गए थे और उन्होंने जो वहां भाषण दिया था, उसके आधार पर बात करें तो महाराष्ट्र के कांग्रेसी और तमाम धर्मनिरपेक्ष विधायकों का दोहरा चरित्र सामने आ जाता है.
कांग्रेस उपाध्यक्ष जेएनयू में जाकर कहते हैं कि अपना पक्ष रखना एक बुनियादी हक़ है लेकिन महाराष्ट्र की विधानसभा जो हुआ वह क्या था.
कांग्रेस उदारवादी तब तक ही है जब तक उन्हें राजनीतिक फायदा मिलता है. इसी तरह भाजपा भी तभी तक धर्मनिरपेक्ष बने रहना चाहती है जब तक उसके राजनीतिक हित सधते हैं. यह अव्वल दर्ज़े का दोहरा चरित्र है.
कांग्रेस ने जेएनयू में जाकर जो किया वह एक नाटक के सिवाए कुछ नहीं था.

कुछ लोग मेरे बयान के समय पर सवाल उठा रहे हैं. उनका आरोप है कि इससे भाजपा को आने वाले पांच विधानसभा चुनावों में फायदा मिलेगा.
मेरा इनसे सवाल क्या लोकसभा चुनावों में मेरे भाषणों के कारण भाजपा केंद्र में सत्ता में आई. क्या दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत और कांग्रेस की हार मेरी वज़ह से हुई.
अपने गुनाहों का टोकरा मेरे सिर पर क्यों रखना चाहते हैं. इन पांच राज्यों में कहां चुनाव लड़ रहा हूं, कहीं नहीं फिर भी मुझ पर आरोप लगाए जा रहे हैं.
मैं एक हिंदुस्तानी हूं और मैं अपनी बात कहूंगा. यह मेरा बुनियादी हक़ है और हम कब तक अपनी ज़बान को बंद रखेंगे.
क्या यह लोग हमारे राजनीतिक आका है जो हम इनकी सुनें.


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