गोपालगंज के डीएम राहुल सर के द्वारा चलाये गये जन अभियान और उनके रचना से फैला मनमोहक सुंगंध पर एक चर्चा

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Written by Manjar Alam
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डीएम जिले का कप्तान होता है। वह अपने लगन, ईमानदारी, धैर्य, संयम, कर्तव्यनिष्ठ और कठिन परिश्रम से उच्च प्रशासकीय पद पर बैठा व्यक्ति अपने प्रभाव और कार्यो से समाज को सोंच एवं दिशा दे सकता है। राहुल सर ने अपने कार्यो एवं उदहारण से समाज को आगे बढ़ाने में जो गति दी है वह निश्चिन्त ही हमारा समाज एक सफल और महत्वकांक्षी यात्रा पूरा करेगा। इसके इतर राहुल सर को जो अलग ऊंचाइयों पर ले जाता है वह उनका सौम्य एंव सरलता हैं। आपने नेशनल टीवी में राहुल सर को पहली बार कब देखा था ? याद है ? अगर गोपालगंज से बाहर रहते हो तो आपको शायद बिहार में हो रहे अच्छे प्रशासनिक कार्यो को याद करेंगे तो निश्चिन्त ही गोपालगंज के डीएम राहुल कुमार याद आ रहे होंगे। यदि आप गोपालगंज के वासी है तो आप इनका परिचय जान ही रहे है। अचानक से नेशनल टीवी में एक चेहरा दिखाया जाता है जिसकी कार्यशैली की तारीफ पूरा देश करने लगा। टीवी में दिसंबर 2015 की वह तस्वीर दिखाई जा रही थी जिसमें डीएम राहुल सर सुनीता के हाथ का बना खाना खा रहे थे। यह कहानी कल्याणपुर गांव के एक स्कुल की है जहां मिड डे मील का खाना कुछ लोगों ने यहां खाना बनाने वाली सुनीता को काम से यह कहकर हटा दिया था कि वह ‘अपशगुन’  है क्योंकि वह विधवा है। लेकिन डीएम राहुल सर ने खुद उसके हाथ का बना खाना खाकर लोगों का यह अंधविश्वास तो़ड़ दिया और सुनीता को दोबारा नौकरी पर बहाल कर दिया।

खुले में शौच मुक्त बनाने का उन्होंने जो जन आंदोलन छेड़ा जो अब सफलता की नई इबारत लिख रहा हैं। 2016 में दिये एक इंटरव्यू में राहुल सर बताते है, 'जिले को पूरी तरह शौचमुक्त बनाने से पहले हम लोगों की सोच बदल रहे हैं। शुरुआत में मैंने गाँव-गाँव चौपाल व पंचायत में लोगों से बातचीत की। वे मान भी गए। गंदगी और फिर गाँव में बीमारी फैलने की बात भी स्वीकार की। पर आदत तो आदत। फिर हमने गाँव में रात में ठहरना शुरू किया। भोर में मैं और मेरे दल के सदस्य निकलते और गाँव के बड़े-बुजुर्गों से बात करते। क्योंकि इसके बाद उनसे संपर्क नहीं हो पाता था। वे खेतों में काम करने चले जाते थे। धीरे-धीरे ग्रामीणों से संपर्क बढ़ा और लोग खुले में शौच न करने के लिए जागरूक हुए।'

राहुल सर द्वारा चलाये जा रहे अभियान को आप प्रगति होते हुए देख सकते हैं। मार्च 2017 का महीना हो या जुलाई-अगस्त का पिछले साल की भांति इस साल भी इस काम में तेजी लाने के लिए विशेष सप्ताह का आयोजन करते रहे। 1 से 8 जुलाई तक गोपालगंज जिले में स्वच्छता सप्ताह का आयोजन हुआ और फिर एक बार और खुले में शौच से आज़ादी' सप्ताह 9 से 15 अगस्त को मनाया गया। समय समय पर इस अभियान में कमी न हो इसी 8 सितंबर को राहुल सर साइकिल से ही शहर से करीब 6 किलोमीटर दूर सदर प्रखंड के बसडीला गांव पहुंचे। यहां डीएम खुद हाथों में कुदाल लेकर मिट्टी की खुदाई करने लगे। खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित करने के लिए गोपालगंज के डीएम राहुल सर की यह पहल कामयाब होता दिख रहा है। अब पंचायत के लोग खुद ही आगे बढ़कर पंचायत को खुले में शौच मुक्त कर देने की बात कर रहे हैं।

इस चलाये जा रहे अभियान में समय समय पर सभी 14 प्रखंडों में जिला प्रशासन के द्वारा प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जता है। मेरे पिता जी इसी जिले के बरौली प्रखंड में कार्यरत है। और इन अभियानों से हो रहे जागरूक प्रभाव को पिता जी के माध्यम से करीब से समझने-जानने का मौका मिला। पिछले साल जब दिल्ली में था और उसी दौरान डेस्क पर जब गोपालगंज के डीएम राहुल सर द्वारा चलाये जा रहे अभियान को पढ़ा तो उत्सुकता जगी। और घर आकर इस विषय पर बात हुई। डीएम राहुल सर की इस अभियान में जो अहम कड़ी है वह ज्यादा से ज्यादा लोगों से सीधा संवाद स्थापित करना, उन्हें शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित करना, खुले में शौच से मुक्ति, स्वच्छ भारत मिशन, लोहिया बिहार स्वच्छता अभियान तथा स्वच्छता के अन्य आयामों के बारे में जागरूक करना।
सभी दिक्कतों के बावजूद गोपालगंज खुले में शौच मुक्त बन रहा है।

ये सारे वो काम रहे जिन्हें मिडिया में खूब जगह मिला। हालांकि मैं जानता था कि राहुल सर लिट्रेचर में लाइफ टाइम कोर्स किये है। इतना हम सब जानते है कि उनका साहित्य के प्रति अद्भुत प्रेम और लगाव है। सिविल सर्विस की परीक्षा में हिंदी जैसे बेहद कठिन विषय लेना और फिर पुरे भारत वर्ष में 36वां स्थान प्राप्त करना बहुत परिश्रम, लगन और समर्पण दीखता है। राहुल सर के फेसबुक पोस्ट अक्सर आते रहते हैं ज्यादातर वे जिले में चल रही प्रशासनिक गतिविधियं को ही साझा करते हैं। मगर इसी दौरान जब वह कुछ लिखते है, उनकी रचना में जो मिठास है आप पढ़ते वक़्त उस रचना के सागर में खुद को तलाश रहे होंगे।
हालफिलहाल में दो ऐसे रचना जो सोशल मीडिया में खासा चर्चित रहा।
पहला गौरी लंकेश के लिए लिखा गया कविता-
जवाब जब मुश्किल हो 
सवाल को ख़ामोश कर देना
ज़माने की नई रीत है,
तमाशबीनों के शहर में
ज़ुबाँवालों की ख़ामोशी
उनकी जीत है! 
दूसरा-
अमित मसूरकर द्वारा निर्देशित और राजकुमार राव एवं पंकज त्रिपाठी जैसे सितारों से सजी फिल्म 'न्यूटन' जो भारत के तरफ से ऑस्कर के लिये चयनित है। इस मूवी को राहुल सर ने कम शब्दों में ही 'न्यूटन' फिल्म की खूबसूरती को बयां कर दिया है कि क्यों यह फिल्म ऑस्कर के लिये चयन किया गया है।
राहुल सर का रिव्यू-
‪Newton एक आख्यान है- अंतिम व्यक्ति के लिए लोकतंत्र के अर्थ का, बिना Loud हुए सिनेमाई ताक़त का, विचारधारा को impose करने के युग में विचारधारा से मुक्ति का, एक ही Time/Space में बोध के स्तर पर सदियों के फ़ासले का, ईमानदारी की सहजता का धीरे धीरे दुर्लभ और फिर अजूबा हो जाने का। सिनेमा के विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम का हिस्सा होनी चाहिए ये फ़िल्म।पंकज त्रिपाठी अभिनय की बारीकियों को काफ़ी सहजता से निभाते है एवं इस फ़िल्म में उनकी देहभाषा से यक़ीन होता है कि एक स्टार अभिनेता का अभ्युदय हो चुका है। राजकुमार राव नई सिनेमा की खोज हैं और फ़िल्म दर फ़िल्म वह इसे साबित करते रहे हैं। रघुवीर यादव तो ख़ैर पुरानी शराब हैं ही, अंजलि पाटिल ने भी प्रभावित किया है।अमित मासुरकर ने निर्देशकों की नयी पौध में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है।
उम्मीद है कि आप ऐसे ही रचना लिखते रहेंगे।

ऐसा नहीं है कि अभी पिताजी गोपलगंज में पदस्थापित है तो इसलिये इनके बारे में जान पाया। अगर मैं अपने घर बेतिया भी रहता तब भी हम तक राहुल सर की उपलब्धियां पहुँच जाती। क्योंकि सकारात्मक एक ऐसा ऊर्जा है जो लोगो को आपस में जोड़ती चली जाती है।

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