फ़िल्म:माय नेम इज़ खान के कुछ संवाद

22:31:00 Manjar 0 Comments


माइ नेम इज़ ख़ान वर्ष 2010 में बनी एक हिन्दी फ़िल्म है। फिल्म के मुख्य कलाकार शाहरुख खान और काजोल देवगन हैं। इसे करन जोहर ने निर्देशित किया है।

माँ की मौत के बाद ज़ाकिर रिजवान को अपने साथ रहने के लिए सेन फ्रांसिस्को बुला लेता है | जब ज़ाकिर की पत्नी हसीना (सोनिया जेहन) रिजवान का जाँच करती है तो उसे रिजवान की बीमारी (Asperger syndrome) के बारे में पता चलता है | रिजवान ज़ाकिर के लिए काम करना शुरू कर देता है उसी समय उसकी मुलाकात एक हिंदू महिला मंदिरा (काजोल) और उसके बेटे समीर (युवान मक्कड़) से होती है | मंदिरा बाल काटने का काम करती है | रिजवान और मंदिरा शादी कर लेते हैं और बेन्विले नगर में रहने लगते हैं |मंदिरा और समीर दोनों ही अपने नाम के पीछे खान लगा लेते हैं | वे गेरिक परिवार के पड़ोस में ही रहते हैं उनका छोटा बेटा रीस समीर का अच्छा दोस्त है |
रिजवान का अच्छा समय तब बुरा हो जाता है जब 11 सितम्बर को न्यू योर्क में हमला होता है | हमले के बाद न्यू योर्क के लोग मुस्लमान विरोधी हो जाते हैं | इसके बाद एक दोपहर समीर की कुछ अमेरिकन लड़कों से स्कूल के मैदान में लड़ाई हो जाती है रीस लड़ाई को रोकने की कोशिश करता है पर समीर तब तक दम तोड़ देता है है | मंदिरा इस सब से टूट जाती है और रिजवान के मुस्लमान होने के कारण उसे दोष देती है ।

पेश हैं फिल्म के कुछ संवाद-
" ईंसपेकटर गेरसीया ने हमें बताया कि हमारे सैम की मौत शायद एक मजहबी हमला था..
उसके जिस्म पे लगी चोटे ईस बात की गवाही थी की..
वह मुसलमान था इसलिए मारा गया..
लेकिन ये बात मेरी समझ में नही आई..क्योंकि मुसलमान होना तो बुरा नही है मंदिरा "
" मेरी अम्मी कहा करती थी कि दुनिया में सिर्फ दो किस्म के ईंसान रहते है
एक अच्छा ईंसान दुसरा बुरा ईंसान
मैं अच्छा ईंसान हुं..मैं अच्छे काम करता हूं "
"बस कुछ बाते है जो मुझे समझ में नही आती..
जैसे किसी के घर जाउं तो लोग कहते है
आऔ रिज़वान,ईसे अपना ही घर समझो..
कैसे समझु..जब मेरा घर नही है तो "

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