नेपाल का हाल और भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध

12:50:00 Manjar 2 Comments



साल 2015 का आज आख़री दिन। बीते कुछ सप्ताह नेपाल की यात्रा पर रहा। इस विशृंखलता और अफरा-तफ़रीह माहौल में कमोबेश आधी नेपाली जनता, सरकार के विरुद्ध क्या नारे लगा रही हैं यह और करीब से समझने का अवसर मिला। पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र से सटे रक्सौल बोर्डर नेपाल के पर्सा जिला से मिलती हैं। जिसका मुख्य प्रवेश द्वार वीरगंज उप महानगरपालिका हैं। सुबह 7 बजे जब हमने अपनी गाड़ी से नेपाल में प्रवेश के लिए बॉर्डर पर रोका तो पता चला यहाँ अघोषित नाकेबंदी हैं। सैकड़ो की तादाद में लोग नेपाल सरकार के विरुद्ध नारे लगा रहें थे। अभी हम विचार कर रहे थे कि किस और से नेपाल में प्रवेश ली जाये तब तक एकाएक बॉर्डर पर स्थित नो मेंस लेंड पर झड़प हो गई। जिसमें कई लोगो को गंभीर चोटें आई। छपकिईया बाजार होते हुए किसी तरह जोख़िम लेते हम अपने गंतव्य तक पहुंचे।
इतना जोख़िम सिर्फ अपनी बहन के लिये उठा रहा था। क्योंकि उनकी जन्मदिन जो की 25 दिसंबर को थी मुझे हर हाल में उस दिन वहां होना चाहिये था। हमने 25 को भव्य बनाने के लिये सारी तैयारी का जिम्मा अपने कंधो पर ले लिया।
बॉर्डर पर नेपाल जितना अशांत दिख रहा था,शहर उतना ही सामान्य ढंग से व्यवहार कर रहा था। व्यपारियों से जब मैंने पूछा की आप भी मधेशी हो आंदोलन का साथ क्यों नही दे रहें? वे बताने लगे आखिर कब तक साथ देते रहें 4 महीनें से ज्यादा वक़्त हो रहा और जिनमे लगभग 2-3 महीना दुकाने बंद-खुलती रही। इन 4 महीना में आमदनी नगण्य रहा ऊपर से दुकान का किराया स्कूल का फी घर का राशन इन सब के लिये पैसे कहां से लाऊँ। नेताओं ने बोला था की पैसा माफ़ करा देंगे लेकिन कुछ हुआ नही।ऊपर से स्कूल,मकान मालिक और दुकान मालिक के यहां से नोटिस आ गए। जो पैसे बैंक में बचें थे वह भी इनलोगो को दे दिया। अब अपनी रोजमर्रा की जिंदगी चलाने के लिए काम करने के सिवा और दूसरा कोई रास्ता नही। नेपाल सरकार बहरी हैं,सुनना होता तो शुरू में ही सुन लेती। जो राग मधेश जनता अलाप रही हैं वैसा ही राग पहाड़ी जनता भी अलाप रही हैं।

हम अपने काम में लग गए क्योंकि शाम को जन्मदिन मनाना था सब लोग आ रहे थे। तैयारियां जोरो पर थी। तब तक अचानक न्यूज़ चैनलों पर अफरातफरी मचने लगी। पता चला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक पाकिस्तान पंहुच रहें हैं। साल का बीतता वक़्त भारत की खासकर पड़ोसी देशो के साथ विदेश नीति को यह यात्रा एक नया आयाम दे रहा था।(विदेश नीति मॉडलस्की ने इसको परिभाषित करते हुए कहा था कि विदेश नीति समुदायों द्वारा विकसित उन क्रियाओं की व्यवस्था है जिसके द्वारा एक राज्य दूसरे राज्यों के व्यवहार को बदलने तथा उनकी गतिविधियों को अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में ढ़ालने की कोशिश करता है।)
तब मुझे लगा की क्यों न इस साल भारत की  विदेश नीति 
दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत के रिश्तों के संदर्भ में समीक्षा की जाये।विश्व के राजनीतिक मंच पर भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाए, इसके लिए यह ज़रूरी है कि उसे पड़ोसी देशों को भरोसे में लेना ही पड़ेगा।
सबसे पहले हम बात करते हैं श्री लंका की।
दोनों देशों के बीच संबंधों का असर साल 1983 में श्रीलंका में सिंहला समुदाय और तमिल अल्पसंख्यकों के बीच हुए जातीय संघर्ष का रहा है। प्रधानमंत्री का श्री लंका दौरा जिनमें
भारत और श्रीलंका की सरकारों ने चार समझौतों पर दस्तखत किए हैं। इनमें अधिकारियों के दौरों पर वीज़ा नियमों में छूट, कस्टम मामलों में सहयोग, दोनों देशों के युवाओं के बीच बेहतर संवाद और विश्वविद्यालय में एक ऑडिटोरियम बनाने समेत शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के मुद्दे शामिल हैं। श्री लंका में रेलवे सुधार के लिए 31.8 करोड़ डॉलर मदद देने की घोसना की।
दोनों देशों का संबंध तमिल अल्पसंख्यकों के साथ मेल मिलाप, मछुआरों की रिहाई और हिंद महासागर में सुरक्षा सहयोग जैसी बातों पर हमेशा से  निर्भर रहा है।
साल 2009 में तमिल टाइगर्स की हार के बावजूद राजपक्षे की सरकार तमिल अल्पसंख्यकों से मेलजोल की प्रक्रिया शुरू करने में नाकाम रही।

भारत सरकार कहती रही है कि श्रीलंका के संविधान के 13वें संशोधन को लागू किया जाए। ये संशोधन राजीव-जयवर्धने समझौते पर आधारित हैं और इसमें प्रांतों को और अधिकार दिए जाने की बात है।
बांग्लादेश की तरफ देखे तो एक बेहद जटिल समस्या का अंत हो गया।उसके साथ जमीनों की अदला-बदली एक बड़ी उपलब्धि रही है। हालांकि इसका श्रेय यूपीए सरकार को भी दिया जा सकता हैं,इस मामले को सरल बनाने में उनका प्रयास सराहनीय रहा।
सड़क मार्ग,रेल मार्ग और समुद्री मार्ग पर बात बेहद सफल रही।
ढाका होते हुए कोलकाता-अगरतला के अलावा दूसरी बस सेवा शिलॉन्ग होते हुए ढाका-गुवाहाटी के लिए है।
अखुरा-अगरतला रेल लिंक पर भी बातचीत हुई और जो बांग्लादेश के ज़रिए कोलकाता को पूर्वोत्तर से जोड़ेगा।
इन सारे विकल्प के मिलने से दोनो देशो के बीच व्यपार, संबंध और भी मजबूत होंगे।
बस एक तीस्ता जल को ले कर बात नही बन पाई।
अफगानिस्तान की बात करें, तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उसे सिर्फ आर्थिक या विकास के क्षेत्रों में ही समर्थन दिया जाता था, जबकि   हथियार या सामरिक क्षेत्रों में अफगानिस्तान द्वारा विशेष मदद की मांग की जाती रही। काबुल की यात्रा प्रधानमंत्री मोदी की निश्चित रूप से सफल रही।
पाकिस्तान का विश्लेषण भारत के प्रति हमेशा से  सबसे दिलचस्प है। उसके साथ हमारे संबंध हाल के घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता की संबंध सुधर रहें हैं।
रूस की ऊफा बैठक से शुरू हुई लाहौर आते-आते रिश्तों में गर्माहट ले आई। पहले सुषमा स्वराज फिर प्रधानमंत्री मोदी इन संबंधो को सुधारने में इन लोगो का बड़ा असर रहा।
दोनों नेता जब चाहें एक दूसरे के यहां आने जाने लगें। तो फिर दोस्ती के अलावा और कुछ रह नही जाता। जो कल बीजेपी समर्थक पाकिस्तान के नाम से चुनाव में हल्ला कर रहें थे वे अभी भौचक हैं अब वे पाकिस्तान को अपना मित्र राष्ट्र बता रहें हैं। यूँ भी तारीख देखी जाएं तो भारत- पाकिस्तान  पहला युद्ध 1965 में हुआ था। तभी 1962 की लड़ाई में चीन से हारने के बाद भारत अभी अस्थिर था। चीन ने चाल चलते हुए पाकिस्तान को बताया की यही सही समय हैं भारत को हराने का जिससे की तुम्हें तुम्हारा कश्मीर मिल जाएं।
ख़ैर,
पाकिस्तान से भारत के रिश्तों की मुश्किल से पूरी दुनिया वाकिफ है। किसी भी तरह की बातचीत से पहले आतंकवाद और कश्मीर का मसला आते ही बात बीच में ही अटक जाता हैं।
उम्मीद करते हैं आने वाले साल पाकिस्तान के साथ और भी बेहतर होगा सियाचिन, सिंधु जल,कश्मीर और आतंकवाद जैसे मसलो का हल आने वाले साल में बातचीत के द्वारा निकाला जाय।
एक और बात जोड़ ले की कुछ लोग कह रहें की नेपाल से हमारा रिश्ता खराब हो गया। हमारे खिलाफ नेपाल संयुक्त राष्ट्र संघ में चला गया। तो मैं उन्हें बता दु की भारत नेपाल की जनता के हक के लिए 51% जनता का साथ दे रहा तो उसमें क्या बुराई। जब नेपाल से हमारा संबंध शुरू से ही रोटी-बेटी का रहा हैं तो हम अपनों के पक्ष में क्यों न बोले। मधेश की जनता की जायज मांग हैं संविधान में बराबरी और आबादी के अनुरूप नेतृत्व। नागरिकता का दोहरा मापदंड मधेशी जनता के साथ क्यों? भारत की भूमिका नेपाल में महत्वपूर्ण हैं। अगर के पी ओलि इस बात को नही समझ रहें तो वे भूल ही नही भारी गलती भी कर रहें हैं। भारत नेपाल से बस आशवस्त होना चाहता हैं कि नेपाल अपनी जनता के साथ बराबरी का व्यवहार करें और यह जरूरी भी हैं।
कुल मिला के यह साल भारत के लिए पड़ोसी विदेश नीति लगभग सफल ही रहा।

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सरकार,पत्रकार और सेल्फी

11:44:00 Manjar 2 Comments

व्हाट्सएप्प ग्रुप में जब एक लड़की लिखी की -संविधान के चौथे स्तम्भ के लिए काम कर रहे हैं तो बस थोड़ी जिम्मेदारी के साथ करें। अचानक मुझे एकाएक 'दिवाली मिलन समारोह' की तस्वीरें ज़ेहन में दौड़ने लगी। वैसे ना मैं जर्नलिस्ट हूँ और ना ही मैंने जर्नलिस्ट की पढ़ाई पढ़ी हैं। तोड़े- मरोड़े तथ्यों को सीधा करते करते पत्रकारिता को जाना हूँ,समझा हूँ और परखा भी हूँ। नये पत्रकार और जर्नलिस्ट की पढ़ाई पढ़ रहें मित्रों को मंजर,इतना तो जरूर कहता है कि पत्रकार बनने की सबसे पहली और वाजिब शर्त है-अपक्षपात रिपोर्टिंग । किसी घटना को बिना किसी विश्लेषण से सीधे हु ब हु ख़बर को लोगो तक पहुँचना। एक दर्शक की तरह ख़बर को देखना, अगर यह आ गया तो रिपोर्टिंग करना भी आ जायेगा।
पत्रकारों की तटस्थता, निष्पक्षता, और नैतिकता ही उन्हें पत्रकार बनाती है।
'दीवाल मिलन' के दिन जिस भेड़चाल का प्रस्तुती कुछ पत्रकारों ने दिया की अब समय आ गया है कि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू किया जाए ।

जब सुना कि पत्रकार लोग पी एम से मिलने जा रहे है तो आशा बंधी कि पत्रकार देश की समस्याओं पर सरकार को अवगत करायेंगे। लेकिन जो हुआ वह सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण वाली बात थी। ज्ञात रहें मेरा सवाल सरकार के सापेक्ष है न की यूपीए और एनडीए से है।
सबसे पहले ये बताइए कि जब सरकार भ्रष्टाचार के मामलों में फसेंगी तो आपका कलम उनके विरुद्ध लिखने में कापने तो नही ना लगेगा ? सरकार की नीतियों को किस प्रकार देखते हैं ? सही गलत का आप फ़ैसला कैसे करेंगे?मुझे संदेह है की आपकी चाटुकारिता आपकों घेर लेगा। चलिए छोड़िये यही बता दिजीये की पत्रकार का धर्म क्या होता हैं ?
ख़ैर,इन सेल्फी वीरों की सूची लोगों तक पहुँचानी पड़ेगी जिससे खबर के संवाददाता और एंकर को सुनते वक्त उचित सावधानियां बरती जायें। आशा है कि ये पत्रकार बन्धु ऐसे ही मिले मौको पर धक्कम मुक्की कर अपनी छवि सुधार करते रहेंगे । नेतागण भी जानते हैं कि बहुतायत पत्रकारों को कैसे हैंडल करना है I एक सेल्फ़ी और हो गया सारे सवाल का जवाब। ज़रा सोंचिये 45 मिनट चले कार्क्रम में एक सवाल पुछने का वक़्त नही मिला। आपने देश का वक़्त जाया किया। इसका हिसाब कौन देगा?
29 नवम्बर का 'टेलिग्राफ' का पहला पन्ना, जिसने पत्रकारों की शान ही ले ली।
सिर्फ दो तसवीर हजार शब्दों के बराबर बोल रही थी।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक कुछ पत्रकारों ने प्रधानमंत्री के साथ अपनी स्वछवि एकाधिक बार ली। एंगल जंचा नहीं तो घूम कर दुबारा आ गए। इस पर भीड़ घटाने की गरज से सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि जो एक बार सेल्फी ले चुके हों, कृपया दुबारा न लें। तब, अनुराग के अनुसार, मोदीजी ने उन्हें टोका - अरे, लेने दो। किसी को न रोको।

पिछले कुछ वर्षो में पत्रकारिता इन्ही जैसो की वजह से गिर रहा है। हर रोज ये पत्रकारिता पर धब्बा लगा रहे है।
आइए एक नज़र डालते है । -

IBN7 पर हाथापाई हुई। दो धार्मिक लोग,एक महिला और दुसरा पुरुष था ने एक-दूसरे पर हमला किया। लेकिन सवाल उठता है कि  हाथापाई को कौन बेचने लगा ? उसी चैनल ने। अपने प्रस्तावित कार्यक्रम 'सुरंग में गोल्डन ट्रेन' के बदले आधे घंटे हथापाई को बार-बार दिखाया? हाथापाई के लिए भला कोई न्यूज़ क्यों देखेगा । कम से कम मुझे जब रेसलिंग देखना होता है तो मैं टेन स्पोर्ट्स और सोनी सिक्स देखता हूँ। क्या आप भी कुश्ती के लिए न्यूज़ देखते है ?
आजकल ज़ी न्यूज़ पर डीएनए आता है। सुधीर चौधरी लेकर आते है। आइये आज उनका डीएनए टेस्ट करते है।
सुधीर चौधरी कौन है तो जेल के रिकॉर्ड से पता चलता है- अपराधी। ज़ी न्यूज़ का दाग़दार संपादक है। नवम्बर 2012 में पैसा उगाही कांड में जेल जा चुका है। नवीन जिंदल से सौदेबाजी के दौरान कोलगेट वाली स्टोरी बंद करने के एवज में 120 करोड़ रुपए की सुधीर ने मांग की थी। कैमरे में धड़े गए।
2013 में निर्भया कांड में विक्टिम का नाम ऑन एयर किया। FIR हुआ।
जब लाइव इंडिया में था तो उमा खुराना नामक शिक्षिका का फर्जी स्टिंग किया। सुधीर चौधरी ने उनपर सेक्स रैक्ट चलाने का इल्ज़ाम लगाया। आरोप तो ग़लत साबित हुए ही, लाइव इंडिया को भी कुछ महीनों के लिए ऑफ एयर होना पड़ा।
ये महाशय यही नही माने लगे हाथ उपदेश देते-देते शर्मन्दगी की इंतेहा पार कर दी। व्यक्तिगत आक्षेप लगाते हुए कुमार विश्वास से बदजुबानी पेश आने लगे।

Sudhir Chaudhary
@sudhirchaudhary Jun 6
कामुक कविराज अपने मालिक के चैनल पर चल रही झूठी ख़बर प्रचारित करके बता रहें हैकि उनका अमेरिका जाने का पैसा कहाँ से आया
Dr Kumar Vishvas @DrKumarVishwas
हे @sudhirchaudhary तिहाडी दलाल.तुम्हारे या देश के किसी धनपशु की औक़ात नहीं जो कवि को ख़रीदे.अब इसे चलाओ चैनल पर
http://m.timesofindia.com/india/Two-Zee-editors-arrested-for-Rs-100-crore-extortion-bid/articleshow/17391903.cms …
Dr Kumar Vishvas @DrKumarVishwas
दूसरों की झूठी खबर को चौबीसों घंटे रगड़ कर चलाने वाले अपने बारे में आई इस सच्ची ख़बर को छू भी नहीं रहे। #FarziJourno
https://www.youtube.com/watch?v=q4C0xYLr0u8 …
12:10 PM - 6 Jun 2015

इनके सवाल से आहत कुमार विश्वास फिर जवाब में लिखा
वैसे @sudhirchaudhary कामुक जैसी गोपनीय जानकारी तुम्हारे परिवार की किस सदस्य ने दी है तिहाड़ी ?
सुधीर फिर लिखते है- Sudhir Chaudhary @sudhirchaudhary
मुझे ख़ुशी है तुम्हारे संस्कार और घटिया सोच दुनिया के सामने ला पाया। तम्हारी भाषा ही तुम्हारा चेहरा है।  https://twitter.com/drkumarvishwas/status/607136407245582337 …
जवाब-
Dr Kumar Vishvas @DrKumarVishwas
हे @sudhirchaudhary तिहाडी.मै शास्त्र और शस्त्र दोनों जानता हूँ."शठे शाठ्यम समाचरेत"

अब आते है रजत शर्मा पद्म भूषण वाले की पत्रकारिता पर । सरकार भी इनकी पत्रकारिता पर तरस खाकर 'शिक्षा' पर सम्मान दिया। इनकी शिक्षा पर पहल तो बच्चा-बच्चा बता देगा।
इनकी पत्रकारिता का मानक तय करना हो तो एक बार इनके द्वारा लगाये गये हेडलाइन्स देख ले।

टीवी पत्रकारों को जोकर बना के रख दिया।
आखिर किन की लीडरशिप में हिंदी TV न्यूज चैनलों ने मसखरा-युग में प्रवेश किया?
न्यूज बुलेटिन में नागिन ने नाग की हत्या का बदला लिया, स्वर्ग को सीढ़ी तन गई,क्या सचिन के दिमाग में वाकई एक शैतान है ?, अमिताभ बच्चन को ठंड लगी,क्या 'एलियन' गाय का दूध पीते हैं?घने जंगल के बीच है स्वर्ग का शॉर्टकट,कलयुग का अंत,सबसे महंगी वैश्या की ऑन स्क्रीन खोज हुआ, बिना ड्राइवर के कार चली।
ये नाम हैं - उदय शंकर, क़मर वहीद नकवी,दीपक चौरसिया, आशुतोष, विनोद,सुधीर चौधरी,रोहित, कापड़ी और इन सबके बाप रजत शर्मा। जी पहचान ले मंजर गलत नही बोल रहा। यही वह है जिनकी बदौलत आज की तारीख में हिंदी के टीवी पत्रकारों और चैनलों के नाम पर पान दुकानों और हेयर कटिंग सलून में चुटकुले चलते हैं। मसखरी होती है। ठहाके गूंजते है। पत्रकारों का नाम आते ही बच्चे हंसने लगते हैं।
एस पी सिंह ने गणेश को दूध पिलाने की खबर का मजाक उड़ाकर और जूता रिपेयर करने वाले तिपाए को दूध पिलाकर भारतीय टीवी न्यूज इतिहास के सबसे यादगार क्षण बनाया।
सिखाया कि अंधविश्वास के खंडन की भी TRP हो सकती है।
न्यूज चेनलों ने जब "नागिन का बदला युग" या "महंगी वेश्या की खोज युग" में प्रवेश किया
बल्कि TRP पाने के लिए बनी उनकी इस सोच को लेकर है कि हिंदी चैनलों का दर्शक मूर्ख और अंधविश्वासी होता है.
इसे मनोरंजन उद्योग की भाषा में "Lowest common denominator" कहते हैं. इसकी परिभाषा यह है- the large number of people in society who will accept low-quality products and entertainment या appealing to as many people at once as possible.
यही कारण है कि इनका भांगड़ा नाच और मदारीपन देखकर एक बच्चा भी हँसता हैं।
ख़बर की गुणवत्ता ख़राब हो गई। पत्रकार, पत्रकारिता से रसूख और नेताओं तक पहुंचने का साधन हो गया।
लेकिन हम जैसे लोग इनको छोड़ने वाले नही है। ख़बर प्रस्तुत कीजिये किसी पार्टी का विचार नही। आज भले ही हम गिणती की संख्या में आपकी इस पेशे को इस तरीके से दूषित करने के ख़िलाफ़ लिख बोल रहें है। लेकिन वह दिन दूर नही जब आपके ख़बर को बहिष्कार किया जायेगा। लोग क्वालिटी और सही तथ्य देखने की मांग करेंगे। नये पत्रकारों से कहना है कि अब ऐसे खबरों की भविष्य नही है। इसलिये आप जो भी चैनल में जाएंगे तो वहां देख ले कहीं ऐसा ही भेड़चाल तो नही ना हो रही है। सेल्फ़ी या  पत्रकारिता दोनो एक साथ नही चल सकती।
माफ़ कीजिए आप गलत पेशे में है। कृपया कर इसे दूषित ना करें। मोदी सरकार से अनुरोध है कृपया आप न्यूज़ चैनल वालों को पैसा देना बंद करें। निष्पक्ष काम करने दे। आपकी मीडिया मैनेजमेंट पॉलिसी से पूरे विश्व में इस सप्ताह किरकिरी हो गई। हमें विदेशी मीडिया नसीहत दे कर चला गया। कितनी शर्मनाक...
एननि गोवन,वाशिंगटन पोस्ट के लिये लिखने वाली महिला पत्रकार पूछती है।
Annie Gowen
@anniegowen
Nov 27
We have been contacted twice in recent weeks by private PR companies representing Indian govt. officials. Good use of govt funds? @PMOIndia
क्या हमारा पैसा का ऐसा दुरपयोग कीजियेगा।
आपसे अनुरोध है कि मीडिया को स्वतंत्र कीजिए उसका खरीद-फ़रोख्त नही कीजिए, माननीय।


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