फिल्म रिव्यू सह पोस्ट मोर्टम : उड़ता पंजाब
सितारे : शाहिद कपूर, करीना कपूर, आलिया भट्ट, दिलजीत दोसांझ, सतीश कौशिक
निर्देशक : अभिषेक चौबे
निर्माता : अनुराग कश्यप, एकता कपूर, समीर नायर, शोभा कपूर, विकास बहल
कहानी-पटकथा-संवाद : अभिषेक चौबे, सुदीप शर्मा
गीत : शीली, शिव कुमार बटालवी, वरुण ग्रोवर
संगीत : अमित त्रिवेदी
तू लेया दे मेनू गोल्डन झुमके
मैं कन्ना विच पावां चुम चुम के
मन जा वे मैनु शॉपिंग करा दे
मन जा वे रोमांटिक पिक्चर दिखा दे
रिक्विस्टाँ पाईआं वे
चिट्टिया कलाइयां वे
ओह बेबी मेरी चिट्टिया कलाइयां वे
चिट्टिया कलाइयां वे
चिट्टा वे,चिट्टा वे
जिसने वी एहनु लिट्टा वे
कुण्डी नशे वाली खोल के देख
यह दो गीत दो अलग-अलग फ़िल्म से हैं।
एक में जहां चिट्टा का प्रयोग फिल्म की नायिका रोमांस के लिए कर रही हैं।
वही दूसरी गीत में चिट्टा का प्रयोग ड्रग्स के लिए की जा रही हैं।
पंजाबी में चिट्टा का मतलब सफेद होता हैं। हीरोइन(नशा वाला) का रंग सफेद होता हैं। पंजाब में हीरोइन के बदले चिट्टा को इस्तेमाल में लाते हैं।
पहली ऊपरी तौर पर कुछ बात करते है।
निर्देशक ने एक अच्छी कहानी का स्वाद बिगाड़ दिया। फिल्म देखते हुए लगता है आप कुछ मिस कर रहें हैं। फिल्म ड्रग्स समस्या के पास तो पहुंचती है लेकिन सही अंजाम तक पहुंचाने की कोशिस नही दिखती। फिल्म बनाने वाले कहते है कि वे पंजाब में नशे के प्रति गंभीर है। लेकिन फिल्म पंजाब में नशे के प्रति गंभीरता के नाम पर महज खानापूर्ति करती दिखती है। पंजाब में एनजीओ चलाने वाले और पंजाब रियासत के पूर्व डीजीपी कहते है उन्होंने बकायदा लिखित और ठोस सबूत के साथ एनडीए के मुख्यमंत्री को सबूत सौंपे थे। जिसमें पुलिस वाले से लेकर कई बड़े नेता ड्रग्स के गिरोह में शामिल थे। लेकिन मुख्यमंत्री ने वह रिपोर्ट ही दबा दी ।
फिल्म में नेताओं (इक्का-दुक्का) के कर्म तो छोड़िये उनका जिक्र भी मुनासिब नही समझा है।
फिल्म को संस्कृति के बारे में बात करनी चाहिए।
पंजाब में आजकल विदेशों का धमक ज्यादा सुनाई देता है। पंजाब अपनी पंजाबियत कब का पीछे छोड़ चुका है।
फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष यही बनकर उभर है कि फिल्म बताने में कामयाब रहती है ड्रग्स क्या कर सकते हैं ? ड्रग्स किसी इंसान को किस हद तक गिरा सकता है। ड्रग्स किसी को भी बर्बाद कर सकते हैं। ड्रग्स लेने वाला खुद का जान दे सकता है और सामने वाले का जान ले भी सकता है। ड्रग्स सिर्फ समस्या पैदा कर सकता है। समस्या का हल नही कर सकता है।
इस टीम को इस बात के लिए शाबासी दी जा सकती है बहुत बड़ी पहलू को नजरंदाज करने के बावजूद संवेदनशील मुद्दे पर सावधानी से काम हुआ जो लोगों का ध्यानाकर्षण करता है।
जब आलिया ड्रग्स माफियाओं से किसी तरह लड़ते गिरते उठते उनकी चुंगल से निकल भाग रही होती है तब आप भी उसके साथ आधी रात में सूनसान सड़कों पर भाग रहें होते है। और निर्देशक की यही बड़ी जीत है हम भी फिल्म में घुस जाते है।
आलिया के किरदार का नाम 'बेनाम' है। आलिया हर वह जगह की कहानी कहती है जहां के हवा में नशा घुल गया हो। चाहें वह मैक्सिको हो या फिर पंजाब कोई भी शहर।
करीना कपूर का किरदार अहम है। इसे लिखा भी अच्छे ढंग से गया है। फिल्म में दोनो महिला किरदारों को काफी मजबूत से पेश की गया है।
कहानी : पंजाब पुलिस में एएसआई सरताज सिंह (दिलजीत दोसांझ) अपने अफसरों के साथ मिलकर सीमापार से पंजाब में ट्रक से आने वाले ड्रग्सो को मिलीभगत से जाने देता है। ये ट्रक लोकल एमएलए पहलवान के हैं। अचानक एक दिन सरताज को पता लगता है उसका छोटा भाई बल्ली भी ड्रग्स के लगातार सेवन से बीमार हो गया है। सरताज अपने भाई को डॉक्टर प्रीति साहनी (करीना) के अस्पताल में इलाज के लिए लाता है। अपने भाई की हालत देखकर सरताज टी करता है वह नशे के विरुद्ध काम करेगा। और इस लड़ाई में डॉक्टर प्रीति के एनजीओ क मुहिम का हिस्सा बन जाता है।
पंजाब का पॉप स्टार 'गबरू' हमेशा नशे में ही रहता है। आजके जमाने का हीरो गबरू अपने गीत के बोलो में सिर्फ नशा की बात करता है। नशे में धुत्त गबरू कुछ उल्टा-पुल्टा कर देता है जिससे की पुलिस उस गिरफ्तार कर जेल भेज देती है। सात दिन जेल में रहने वाला गबरू को हकीकत काटने दौड़ती है। जेल में उसे एक ऐसे लड़के से सामना होता है जो नशे की हालात में गबरू का गाना सुनते हुए अपनी मां का हत्या किया हुआ होता है।
वही आलिया पिता के मौत के बाद असहाय हो जाती है। अपने कैरियर बनाने की बजाय खेतों में मजबूरन काम करना पड़ता है। काम करते हुए एक दिन उसे ड्रग्स का एक पैकेट मिलता है। यह पैकेट उसकी जिंदगी में तूफान ला देता है।
एक्टिंग: आलिया ने किरदार के मर्म को परखा है। और वह दर्शकों में दर्द और सहानुभूति पैदा करने में कामयाब रही है।
दिलजीत पंजाब के बड़े स्टार हैं और वे बॉलीवुड में धमाकेदार तरीके से एंट्री मारी है। स्क्रीन पर करीना कपूर के साथ काफी फ़बे है। ये दोनो प्राकृतिक लगने की वजह से केमेस्ट्री खूब रंग जमाई है।
शाहिद कपूर ने अपने अभिनय में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखे है। वे किरदार की तह तक जाते दिखाई दिए और उन्होंने अपने रोल को जीवंत करने का भरपूर प्रयास किया है।
निर्देशन : अभिषेक चौबे ने शुरू से अंत तक बांधे रखा है। शुरुआत में जरूर फिल्म धीमी रहती है। वह सिर्फ इस लिए की किरदारों का परिचय कराया जाय। फिल्म को खास मुद्दे पर केंद्रित करके रखा है। कुछेक सिन पंजाब में सूट होने से लोकल टच है।
संगीत: संगीत मिलाजुला के ठीक है।
इस फिल्म को कोई स्टार नही, आशा जितनी थी उतना बेहतर स्क्रिप्ट नही लिखा गया है।
निर्देशक : अभिषेक चौबे
निर्माता : अनुराग कश्यप, एकता कपूर, समीर नायर, शोभा कपूर, विकास बहल
कहानी-पटकथा-संवाद : अभिषेक चौबे, सुदीप शर्मा
गीत : शीली, शिव कुमार बटालवी, वरुण ग्रोवर
संगीत : अमित त्रिवेदी
तू लेया दे मेनू गोल्डन झुमके
मैं कन्ना विच पावां चुम चुम के
मन जा वे मैनु शॉपिंग करा दे
मन जा वे रोमांटिक पिक्चर दिखा दे
रिक्विस्टाँ पाईआं वे
चिट्टिया कलाइयां वे
ओह बेबी मेरी चिट्टिया कलाइयां वे
चिट्टिया कलाइयां वे
चिट्टा वे,चिट्टा वे
जिसने वी एहनु लिट्टा वे
कुण्डी नशे वाली खोल के देख
यह दो गीत दो अलग-अलग फ़िल्म से हैं।
एक में जहां चिट्टा का प्रयोग फिल्म की नायिका रोमांस के लिए कर रही हैं।
वही दूसरी गीत में चिट्टा का प्रयोग ड्रग्स के लिए की जा रही हैं।
पंजाबी में चिट्टा का मतलब सफेद होता हैं। हीरोइन(नशा वाला) का रंग सफेद होता हैं। पंजाब में हीरोइन के बदले चिट्टा को इस्तेमाल में लाते हैं।
पहली ऊपरी तौर पर कुछ बात करते है।
निर्देशक ने एक अच्छी कहानी का स्वाद बिगाड़ दिया। फिल्म देखते हुए लगता है आप कुछ मिस कर रहें हैं। फिल्म ड्रग्स समस्या के पास तो पहुंचती है लेकिन सही अंजाम तक पहुंचाने की कोशिस नही दिखती। फिल्म बनाने वाले कहते है कि वे पंजाब में नशे के प्रति गंभीर है। लेकिन फिल्म पंजाब में नशे के प्रति गंभीरता के नाम पर महज खानापूर्ति करती दिखती है। पंजाब में एनजीओ चलाने वाले और पंजाब रियासत के पूर्व डीजीपी कहते है उन्होंने बकायदा लिखित और ठोस सबूत के साथ एनडीए के मुख्यमंत्री को सबूत सौंपे थे। जिसमें पुलिस वाले से लेकर कई बड़े नेता ड्रग्स के गिरोह में शामिल थे। लेकिन मुख्यमंत्री ने वह रिपोर्ट ही दबा दी ।
फिल्म में नेताओं (इक्का-दुक्का) के कर्म तो छोड़िये उनका जिक्र भी मुनासिब नही समझा है।
फिल्म को संस्कृति के बारे में बात करनी चाहिए।
पंजाब में आजकल विदेशों का धमक ज्यादा सुनाई देता है। पंजाब अपनी पंजाबियत कब का पीछे छोड़ चुका है।
फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष यही बनकर उभर है कि फिल्म बताने में कामयाब रहती है ड्रग्स क्या कर सकते हैं ? ड्रग्स किसी इंसान को किस हद तक गिरा सकता है। ड्रग्स किसी को भी बर्बाद कर सकते हैं। ड्रग्स लेने वाला खुद का जान दे सकता है और सामने वाले का जान ले भी सकता है। ड्रग्स सिर्फ समस्या पैदा कर सकता है। समस्या का हल नही कर सकता है।
इस टीम को इस बात के लिए शाबासी दी जा सकती है बहुत बड़ी पहलू को नजरंदाज करने के बावजूद संवेदनशील मुद्दे पर सावधानी से काम हुआ जो लोगों का ध्यानाकर्षण करता है।
जब आलिया ड्रग्स माफियाओं से किसी तरह लड़ते गिरते उठते उनकी चुंगल से निकल भाग रही होती है तब आप भी उसके साथ आधी रात में सूनसान सड़कों पर भाग रहें होते है। और निर्देशक की यही बड़ी जीत है हम भी फिल्म में घुस जाते है।
आलिया के किरदार का नाम 'बेनाम' है। आलिया हर वह जगह की कहानी कहती है जहां के हवा में नशा घुल गया हो। चाहें वह मैक्सिको हो या फिर पंजाब कोई भी शहर।
करीना कपूर का किरदार अहम है। इसे लिखा भी अच्छे ढंग से गया है। फिल्म में दोनो महिला किरदारों को काफी मजबूत से पेश की गया है।
कहानी : पंजाब पुलिस में एएसआई सरताज सिंह (दिलजीत दोसांझ) अपने अफसरों के साथ मिलकर सीमापार से पंजाब में ट्रक से आने वाले ड्रग्सो को मिलीभगत से जाने देता है। ये ट्रक लोकल एमएलए पहलवान के हैं। अचानक एक दिन सरताज को पता लगता है उसका छोटा भाई बल्ली भी ड्रग्स के लगातार सेवन से बीमार हो गया है। सरताज अपने भाई को डॉक्टर प्रीति साहनी (करीना) के अस्पताल में इलाज के लिए लाता है। अपने भाई की हालत देखकर सरताज टी करता है वह नशे के विरुद्ध काम करेगा। और इस लड़ाई में डॉक्टर प्रीति के एनजीओ क मुहिम का हिस्सा बन जाता है।
पंजाब का पॉप स्टार 'गबरू' हमेशा नशे में ही रहता है। आजके जमाने का हीरो गबरू अपने गीत के बोलो में सिर्फ नशा की बात करता है। नशे में धुत्त गबरू कुछ उल्टा-पुल्टा कर देता है जिससे की पुलिस उस गिरफ्तार कर जेल भेज देती है। सात दिन जेल में रहने वाला गबरू को हकीकत काटने दौड़ती है। जेल में उसे एक ऐसे लड़के से सामना होता है जो नशे की हालात में गबरू का गाना सुनते हुए अपनी मां का हत्या किया हुआ होता है।
वही आलिया पिता के मौत के बाद असहाय हो जाती है। अपने कैरियर बनाने की बजाय खेतों में मजबूरन काम करना पड़ता है। काम करते हुए एक दिन उसे ड्रग्स का एक पैकेट मिलता है। यह पैकेट उसकी जिंदगी में तूफान ला देता है।
एक्टिंग: आलिया ने किरदार के मर्म को परखा है। और वह दर्शकों में दर्द और सहानुभूति पैदा करने में कामयाब रही है।
दिलजीत पंजाब के बड़े स्टार हैं और वे बॉलीवुड में धमाकेदार तरीके से एंट्री मारी है। स्क्रीन पर करीना कपूर के साथ काफी फ़बे है। ये दोनो प्राकृतिक लगने की वजह से केमेस्ट्री खूब रंग जमाई है।
शाहिद कपूर ने अपने अभिनय में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखे है। वे किरदार की तह तक जाते दिखाई दिए और उन्होंने अपने रोल को जीवंत करने का भरपूर प्रयास किया है।
निर्देशन : अभिषेक चौबे ने शुरू से अंत तक बांधे रखा है। शुरुआत में जरूर फिल्म धीमी रहती है। वह सिर्फ इस लिए की किरदारों का परिचय कराया जाय। फिल्म को खास मुद्दे पर केंद्रित करके रखा है। कुछेक सिन पंजाब में सूट होने से लोकल टच है।
संगीत: संगीत मिलाजुला के ठीक है।
इस फिल्म को कोई स्टार नही, आशा जितनी थी उतना बेहतर स्क्रिप्ट नही लिखा गया है।
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