क्या पूरा विश्व एक परिवार नही बन सकता
द्वितीय विश्व युद्ध, 6 अगस्त और 9 अगस्त 1945
स्थान: ,जापान
परिणाम: परमाणु बम की आग में अब तक जापान झुलस रहा हैं
अल्फ्रेड ने जब डायनामाइट बनाया होगा तब जरूर इसके हर पहलु पर विचार किया होगा। वह घड़ी निश्चित ही ऐतिहासिक क्षण वाला होगा। बम बनाने से पहले भी राजा अपनी सीमा के विस्तार के लिए हजारों लोगो का प्राण ले लेते थे। अब वर्चस्व की लड़ाई में पूरी दुनिया इसके जद में हैं। हर देश मिशाइल बनाने की होड़ में लगा हैं। हर देश परमाणु संपन्न होना चाहता हैं। सभी चाहते हैं की सबसे ज्यादा उन्नत तकनीकी की युद्ध सामग्री उनके पास हों। जो देश बीच में हैं वे पिस रहें हैं। वीटो पॉवर वाले देश कूटनीति रास्ता अख़्तियार करते हैं। जो भी देश परमाणु बनाता हैं कहता हैं उस देश की सुरक्षा के लिए हैं। शायद अगले 10 सालों में ऐसा वक़्त ना आये की परमाणु युद्ध हों। लेकिन जरा सोंचिये 1918 के बाद किसने सोंचा था महज 18 साल बाद फिर एक बार मानवता ताक पर रख दी जायेगी। लाखों लोग 1914-1918 की तरह 1939-1945 में भी मारे गए। जो उपलब्धता जिस समय होती हैं उसी से युद्ध लड़े जाते हैं। जैसे-जैसे आधुनिक हथियार का विकास होता रहा वैसे-वैसे युद्ध में मारे गए लोगों का भी इजाफ़ा हुआ। कभी तलवार तो फिर तोफ फिर बन्दूक मिसाइल परमाणु तक। जब तलवार थी तो सैनिक तलवार से लड़ते थे। अगली बार जब विश्व युद्ध होगा तो ज्यादतर देश परमाणु और हाइड्रोजन बम से लड़ेंगे। आप नुकसान का अंदाजा लगा लीजिये। आखिर इन मामलों पर विश्व समुदाय कड़ा प्रतिबंध सिर्फ कुछ सालों के लिए ही क्यों लगता हैं। या फिर सब का सहयोग बराबर क्यों नही मिलता।
उत्तर कोरिया का हाइड्रोजन बम धमाका बेहद डरावना था। जैसा की ज्ञात हैं हाइड्रोजन बम परमाणु बम से ज्यादा खतरनाक और शक्तिशाली होता हैं। आखिर क्यों उत्तर कोरिया इतनी बड़ी मात्रा में संहारक क्षमता हासिल कर रहा हैं तो उसका जवाब हैं दक्षिण कोरिया के लिए। मुश्किल परिस्थिति यह हैं विश्व के ज्यादातर देशों में जहां तानाशाह वाली सरकार हैं उनका रवैया कभी भी अंतरास्ट्रीय मामलों में जिम्मेदार नही रहा हैं। ये तो मामला ऐसी तानाशाह सरकार का हैं जहां की व्यवस्था इतनी पिछड़ी हैं की अब भी गरीबी,भुखमरी और मूल-भुत सुविधाओं से अब भी लोग जूझ रहें हैं।
जैसे हम पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के विभाजन के लिए पूरे दौर पूर्वी पाकिस्तान के लिए खड़े रहें वैसे ही कोरिया विभाजन के लिए अमेरीका पूरी तरह से दक्षिण कोरिया के साथ खड़ा रहा। फलतः उत्तर कोरिया अपना दुश्मन अमेरिका को भी घोषित कर दिया। उसका ध्यान इस ओर उन्नत तकनीकी हासिल करने में लगा रहा और ऐसी मिसाइल प्रणाली विकसित की कि अमेरिका तक मार कर सके। अंदेशा यह हैं कई आतंकवादी संघठन अमेरिका के विरुद्ध लगातार कार्य कर रहें हैं। अगर ये संघठन उत्तर कोरिया को विश्वास में लेकर मिसाइल और हाइड्रोजन हासिल कर लेता हैं तो आप इसके परिणाम का अंदाजा लगा लीजियेगा।
अच्छी बात हैं अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके साथ-साथ उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग की निजी संपत्ति और उत्तर कोरिया की आमदनी के स्रोतों को खत्म करने का मन बना लिया है। इसी को लेकर अमेरिका की संसद में एक विधेयक पेश किया गया है। इस विधेयक के लागू होने से उत्तर कोरिया में कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लग जायेगा।
मुख्यतः उत्तर कोरिया की आमदनी के दो प्रमुख स्रोत हैं। पहला, प्रवासियों का वापस अपने देश में विदेशों से कमाकर भेजा जाने वाला पैसा और दूसरा, पर्यटन के केंद्र के तौर दुनियाभर के सैलानी का आकर्षण केंद्र बिंदु। ख़बर हैं की
अमेरिका इन दोनों पर पाबंदी लगाने जा रहा है। साथ ही किम जोंग के विदेशों में कई जगह खाता हैं इन सभी विदेशी बैंकों में जमा संपत्ति को भी जब्त की जायेगी । बताया जाता है कि किम के 200 से ज्यादा विदेशी खातों में करीब पांच अरब डॉलर की संपत्ति जमा है।
लेकिन सबसे ढुलमुल रवैया चीन का रहा, चीन की टालमटोल के बाद इस आर्थिक पाबंदी के कामयाब होने पर संशय के बादल छाने लगे हैं। चीन का कहना है कि वह हाइड्रोजन बम परीक्षण को लेकर उत्तर कोरिया पर कार्रवाई तो करना चाहता है, लेकिन वह उसको दी जाने वाली तेल सप्लाई नहीं काटेगा, क्योंकि ऐसा करने से उत्तर कोरिया तबाह हो जाएगा । चीन चाहे तो अकेले सूरत में उत्तर कोरिया को तबाह कर सकता हैं। इस समय उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा मददगार चीन है,उत्तर कोरिया को हर साल 10 लाख टन कच्चा तेल बेचता है।
लेकिन सवाल उभरती हैं क्या हमारी नीति सिर्फ छोटे और कमजोर देशों को डराने भर के लिए हैं।अमेरिका,रूस चीन से कब सवाल पूछे जायेंगे। आखिर क्यों वे इतनी बड़ी मात्रा में बम मिसाइल और अन्य उपकरण का विकास कर रहें हैं। ज्यादा युद्ध सामग्री बनाने में मची होड़ से हाल में चीन ने ज्यादा ताकत वाली नई ‘रॉकेट फोर्स’ बनायी हैं।
चीन ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए एक नई स्वतंत्र फ़ोर्स का गठन किया है। इसे उसने रॉकेट फ़ोर्स का नाम दिया है। यह फ़ोर्स परमाणु पनडुब्बियों, बमवर्षक विमानों और मिसाइलों से लैस होगी। दुनिया में अपनी तरह की इकलौती मानी जा रही यह फ़ोर्स धरती, समंदर और आसमान तीनों में एक साथ मार करने में सक्षम है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ से प्राप्त जानकारी के मुताबिक सरकार ने यह कदम नए साल पर सेना में किये जा रहे बड़े बदलाव के तहत उठाया है। उसके अनुसार यह रॉकेट फ़ोर्स अमेरिका, रूस , ब्रिटेन और फ्रांस की स्पेशल फ़ोर्स के मुकाबले ज्यादा ताकतवर और एकीकृत होगी। जाहिर है चीन से प्रतिद्वन्दी वाले देश भी इसी तरह का प्रयास करेगी।
मुझे नही लगता यह होड़ कभी थमेगा यद्दपि विश्व समुदाय ईमानदार प्रयास करे तो। हजारों बार परमाणु निरस्त्रीकरण की बात कही जाती हैं। परंतु गंभीर प्रयास कभी नही हुआ। हमेशा से परमाणु हथियारों पर खास देशों का एकाधिकार रहा हैं। जरूरत हैं इस नीति को बदलने का। सभी देश परमाणु निरस्त्रीकरण के बारे सोचना शुरू कर दे। लोग जागरूक भूमिका निभाये। संघटनात्मक रूप हासिल कर पूरी दुनिया में इसका विस्तार किया जाये। पूरा विश्व हमारा परिवार हैं ( वसुधैव कुटुम्बकम् ) इस सोंच को आगे लेकर जाया जा सकता हैं। सबसे जरूरी बिना किसी आर्थिक दबाव और बिना राजनीतिक पूर्वाग्रह के सही अर्थो में लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रसार कर इस और कदम बढ़ाया जाय। वरना इन्ही पूर्वावग्रह का नतीजा रहा जिससे आतंकवाद की पैर जमी। दुनिया में विशालकाय मौते हो रही हैं। ईमानदार प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं। सारे परमाणु हथियार जब नष्ट हो जाये,सरहद का खतरा न हो। वास्तविक मूल्यों की पहचान जब संभव हो जाये। निश्चित ही तब हमारी असली सफलता होगी। और मानवता की एक बड़ी कामयाबी दर्ज होगी जिसके बाद इतिहास सिर्फ नेक कामों को दर्ज करेगा।
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