बिहार दिवस:22 मार्च
कहानी नब्बे के दशक की
बिहार :
सीमा प्रारंभ
सड़क समाप्त
बिहार :
जहां हत्या,लूट,अपरहण होता आम बात
बिहार:
जहां बिजली की कोई गारेंटी नही
बिहार की छवि बिगड़ गई थी ।
बिहार में तब लोग भगवान की मर्जी मानकर बेतरतीब ढंग से जीवन गुजर बसर कर लेते थे ।
वो बिहार जिसने विश्व को शून्य दिया, महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की भूमि जिसने पूरे संसार को दिशा दी ।
वो बिहार जिसने चाणक्य को जन्म दिया जिसकी कुटनीति से सारा संसार प्रभावित हुआ ।
वो बिहार जिसने अशोक जैसा शासक दिया ।
गौतम बुद्ध की ज्ञान की धरती,महावीर को जन्म दिया।
वो बिहार जहां पूरे विश्व के लोगों ने नालंदा विश्वविद्यालय को अपना ज्ञान का केंद्र बनाया।
वो बिहार जिसने पूरे विश्व को पहली बार 'वैशाली' जैसा लोकतंत्र दिया।
वो बिहार जो राजनीतिक केंद्र के तौर पर आजादी के बाद और पहले भी पूरे देश में क्रांति का जनक रहा,चंपारण में गांधी जी की कर्म भूमि बनी तो,आरा में वीर कुँवर सिंह ने आजादी का बिगुल फूंका,फिर आजादी के बाद जय प्रकाश नारायण ने देश को दिशा दी।
फिर अचानक बिहार रिवर्स गेयर में क्यों चला गया तो इसकी नीतिगत और सामाजिक आधार तो वजह रही ही होगी। 2005 में जब नीतीश सत्ता में आएं तो इस क़दर लोगो ने सोंचा नही था कि एक दिन इतना बड़ा साइलेंट सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक परिवर्तन हो जायेगा।
आज बिहार दिवस हैं।
2005 की बात हैं। जब बिहार के सपने बिखर चुके थे। शोकग्रस्त राज्य,आहत बिहार के लोग बड़ी उम्मीद से नीतीश को देख रहे थे। एक नाउम्मीद राज्य,उम्मीद लगाते हुए अपना जनादेश नीतीश को सौंप दिए।
बिहार दिवस को सम्भवतः सर्वप्रथम किसी ने मनाया तो वह नीतीश कुमार हैं। इसलिए आज नीतीश की बात करते हैं।
'बिहारी' कहलाना किसी के कार्यकाल में गर्व हुआ तो वह नीतीश का कार्यकाल हैं।
बिहार को किसी ने रहने लायक बनाया तो वह नीतीश थे।
आज से 11 साल पहले जब लोग कहते थे बिहार में परिवर्तन नहीं आ सकता, लेकिन परिवर्तन आया और बिहार आज विकास की ओर अग्रसर है। न्याय के साथ विकास करना अहम उपलब्धि हैं। नीतीश सुशासन के लिए प्रतिबद्ध हैं,तभी तो निचले स्तर पर भ्रष्टाचार दूर करने के लिए 'लोक सेवा अधिकार कानून' बनाया गया और लोक शिकायत निवारण अधिनियम भी राज्य में लागू किया गया।
जब नीतीश ने सत्ता संभाला था तो मैं झारखंड में था। 2006 में बिहार आया,यहां की बदलाव की बयार पहली बार महसूस हुई। असुरक्षा तब के समय में भयावह थी। लेकिन धीरे-धीरे सामान्य जन-जीवन होने लगा।
बिजली की उपलब्धता से जनजीवन में असर पड़ा। जहां कभी 2 घंटे बिजली नही रहती थी वहां अब 20 से 23 घंटे बिजली रहती हैं। सड़को का जाल बुनने से दूरीयाँ में घंटो की कमी आई। अब सड़क और भी बेहतर हो गए। बड़ी संख्या में बच्चे शिक्षा के दायरा में आए।
इसके अलावा जो सबसे बड़ी खुशी मेरे लिए इस महीने साबित हुई वह बेतिया-गोपालगंज का पुल बनना। 13 मार्च (रविवार) को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव ने इस पुल का उद्घाटन किया। 110 किमी की दूरी मात्र 35 किमी (ऊपर के दृश्य में गोपालगंज-बेतिया के पुल पर खड़ा मैं) तक में सिमट गई । गोपालगंज जहाँ मैंने अपने बचपन के स्वर्णिम काल गुजारे। जहां मैंने जिंदगी भर के लिए दोस्त बनाये। जहां मैंने खुद को व्यक्त करना सीखा । कल को जरूर पापा का यहाँ से ट्रांसफर हो जाये। जब वक़्त की पुकार होगी,जब समय का फासला बड़ जायेगा तब इस जगह की यादें दिलो दिमाग में बेचैन होकर घूम रही होगी। तब शायद यही पुल होगा जिसके जरिये मैं अपनी प्यास जल्द से जल्द बुझा दूंगा। मेरा जन्मभूमि बेतिया से गोपालगंज की भूमि बरौली को इस पुल ने और करीब ला दिया। मेरे जैसे न जाने कितनों की कहानी इस विकास की बयार से बह रही हैं।
आज यानी 22 मार्च को पूरा बिहार, बिहार दिवस के जश्न में चूर है। 104वां स्थापना की बधाई।
आप लोगो को बिहार दिवस की बधाई।
एक बिहार
समृद्ध बिहार
विकसित देश
Bihar diwas ki shubhkamnaye.
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