फिल्म रिव्यू : जय गंगाजल

18:14:00 Manjar 0 Comments




निर्देशक-लेखक-पटकथा : प्रकाश झा
निर्माता : प्रकाश झा, मिलिंद दबके
संगीत : सलीम-सुलेमान
गीत : मनोज मुंतशिर, प्रकाश झा
रेटिंग : ****

जय गंगाजल को देखने की एक मात्र वजह प्रकाश झा थे । हमारे पड़ोसी होने के नाते हमेशा उत्सुकता बनी ही रहती हैं । फिर मामला इस बार डेब्यू वाला था तो देखने का एक और वजह था ही ।
ख़ास बात थी की मैं उनके गृह नगर (बेतिया) में देख रहा था। पब्लिक का प्रतिक्रिया प्रियंका चोपड़ा से अधिक झा को मिल रहा था। जब तक  झा स्क्रीन पर रहते बेतिया की पब्लिक हर अदा पर दिल खोल के तालिया और सिटी बजाती ।
प्रियंका चोपड़ा अक्सर महिला केंद्रित फिल्में करती रही हैं और वह सफल भी हुई हैं ।
फूहड़ता के नाम पर परोसी जाने वाली मनोंरजक फिल्मों के जमाने में 80-90 दशक टाइप के फिल्मों को दौड़ना मुश्किल होता हैं ।  प्रकाश झा को बाजार को और बेहतर से समझने की जरूरत हैं ।

यह कहानी हैं  पुलिस व्‍यवस्‍था की राजनीतिक दबाव से लड़ने की। यह कहानी हैं क़र्ज़ में डूबे किसानों की ख़ुदकुशी और इनपर होती राजनीति की।

फिल्म में सबसे अहम किरदार प्रियंका चोपड़ा का नही बल्कि प्रकाश झा का हैं । झा का कहना 'मैडम सर' होठो पर मुस्कान ला देता हैं ।
डंडा चलाते या मुक्का मारते एक्सन सीन झा पर सुट करते हैं। प्रियंका चोपड़ा में कई जगह निरंतरता नही दिखती। मगर उन्होंने बखूबी से इस रोल को निभा दिया हैं । काले रंग के पठानी सूट में आकर्षक लगी हैं।

कहानी शुरू होती है एसपी आभा माथुर (प्रियंका चोपड़ा) के बांकीपुर (मध्य प्रदेश का एक जिला) आगमन से। इनके पहले के एसपी काफी सख्त होते हैं । सारे अपराधी की नकेल कसे हुए होते हैं । बांकेपुर के दंबग विधायक बबलू पांडे (मानव कौल) का अपने इलाके में जबर्दस्त दबदबा है। बबलू पांडे को हर गैरकानूनी काम को करने के लिए मुख्यमंत्री का समर्थन प्राप्त है।  स्थानीय विधायक बबलू पांडे (मानव कौल) के चहेते डीएसपी भोलेनाथ सिंह उर्फ सर्कल बाबू (प्रकाश झा) से छुब्द होकर प्रशासनिक जिम्मेदारी सौंपने के बारे में सोचा ही कि उनका तबादला करवा दिया जाता हैं। नए एसपी साहिबा जो यहाँ आती हैं उनको विशेष तौर पर मुख्यमंत्री अपने फायदे के लिए तैनाती करते हैं। सर्कल बाबू दबंग विधायक के हर गलत काम पर पर्दा डालते हैं। इनके लोग इलाके में खूब मनमानी भी करते हैं । ड्यूटी ज्वाइन करते ही आभा(प्रियंका) का खौफ इलाके के गुंडों में बैठने लगता है। आभा को सर्कल बाबू के गलत कारनामों का पता रहता हैं । एक बिजली कंपनी को अपने इलाके में 1600 मेगावॉट बिजली प्रॉजेक्ट लगाने के लिए जमीन उपलब्ध कराने की डील करता है। इलाके में डब्लू पांडे का खौफ रहता हैं । ऐसे में डब्लू पांडे इलाके के अधिकांश गरीबों-किसानों की जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम करवा लेता है, लेकिन जमीन के एक छोटे से टुकड़े के न मिल पाने की वजह से पावर कंपनी के साथ डब्लू पांडे की डील फाइनल नहीं हो पा रही है और इस डील में पांडे का करोड़ों रूपया अटक जाता है। डब्लू पांडे गांव वह जमीन का छोटा टुकड़ा को हथियाने के लिए लड़की सुनिता से उलझ जाता है।  डब्लू उसका अपहरण कर उसे मार देता है। उधर, सर्कल बाबू डब्लू को ऐसा करने में नाकाम रहता है तो वह उसे सबक सिखाने की ठान लेता है। दिन प्रतिदिन खाकी वर्दी के प्रति बढ़ती बदतमीजी से सिंह बदल जाता है और ठान लेता है कि इन दोनों को एसपी के हवाले करके रहेगा । क्या वह ऐसा कर पता हैं । आगे क्या होता हैं,ज्यादा जानने के लिए देख आइये।
जय गंगाजल आपको बोर नही करेगी। एक और स्टार प्रकाश झा के लिए।

कहानी जरूर कुछ और थी लेकिन इस कहानी के समानांतर मेरे दिमाग में कई कहानी चल रहा था। किसानों से उनकी जमीन हड़पने के लिए सभी हथकंडे का उपयोग किया जाता हैं । पहले किसी चीज़ को हासिल करने के लिए सर्वप्रथम नम्रता पूर्वक आग्रह किया जाता था जिसमें लालच भी शामिल हैं। अगर वह चीज़ ना मिले तो जोर जबरदस्ती और हिंसा द्वारा । लेकिन अब तीसरा तरीका जोड़ दिया गया हैं वह हैं, राष्ट्र के नाम पर,देशभक्ति सिद्ध करने के नाम पर जैसे किसानों को कहा जाता हैं कि वे अपना जमीन छोड़ दे ताकि इससे देश को फायदा हो सके । विकल्पविहीन किसान आखिर क्या करेगा ?
रोज बढ़ती किसानों की आत्महत्या की वजह तो सबको पता ही हैं । क्या किसानों का शहादत,जवानों के शहादत के समरूप होगा ?

डीएसपी भोलानाथ सिंह जो शुरू में अपराधियों से साठ-गांठ होता हैं । लेकिन परिस्थितियां उसकी जमीर जगा देती हैं । फिर कानून को अपने हाथ में लेकर उन अपराधियों को बीच चौराहें पर पेड़ से लटका देता हैं । यह सब होता हैं पब्लिक की मदद से ।
मुझे यहाँ दो चीजें नजर आती हैं । पहला किसी को भी आप निशाना बनाना चाहते हैं तो उसके खिलाफ पब्लिक राय बनाइये । यह राय खुद से तैयार कीजिए या फिर मीडिया के द्वारा राय बनवाइये । इसके बाद पब्लिक खुद ही उसका फ़ैसला तय करने की कोशिश करेगी। दूसरा कोई गुंडा इस काम में पब्लिक की मदद करेगा तो वह हीरो बन जायेगा। ठीक उसी समय डीएसपी साहब एसपी साहिबा के सामने अपना जुर्म कबूलने लगता हैं । लेकिन उसको सिर्फ ऑफ ड्यूटी किया जाता हैं । सोंचिये जरा अगर एसपी साहिबा उसका जुर्म को स्वीकार कर लेती तो उसे जेल भेज दिया जाता। जेल से निकले के बाद वह पब्लिक की नजर में हीरो बन जाता जैसा की पूरी भीड़ ने मिलकर उन अपराधियों की हत्या की हैं मगर आरोप सिर्फ डीएसपी अपने पर ले लेते हैं । पब्लिक का इमोशन डीएसपी के साथ रहता और वह हीरो बन जाता ।

हम किस ओर दौड़ रहें जहां अदालते फैसला लेने से पहले पब्लिक फैसला लेना चाहती हो । सोचिये कभी सामूहिक राय बन गई की वह बुरा आदमी हैं और भीड़ उसको मार डालती हैं । लेकिन बाद में निष्कर्ष आती हैं कि उसकी हत्या गैरजरूरी थी। वह शरीफ आदमी था,उसको फंसाया गया। तो तब आप क्या कीजियेगा ?

फिल्म में एक बेटी अपनी जमीन बचाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष करती हैं । मानसिक पीड़ा से लेकर शारीरिक पीड़ा तक गुजरती हैं । क्या सभ्य समाज इस बात को नोट करेगा?


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