व्यक्ति विशेष: मोहम्मद अली
जन्म: 17 जनवरी 1942
निधन: 4 जून 2016
कुल मुकाबले: 61
जीत:56, हार: 5
तीन बार वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियन
रघुराम राजन किसी परिचय के मोहताज नही है। राजन की अगुवाई में रिजर्व बैंक को भी इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उसने देश की वित्तीय प्रणाली को बाहरी झटकों से बचाने के लिए कई उचित कदम उठाए हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री राजन विश्व बैंक व आईएमएफ की सालाना बैठक के साथ साथ जी20 के वित्तमंत्रियों व केंद्रीय बैंक गवर्नरों की बैठक में भाग लेने अमेरिका गए थे।
डाउ जोंस एंड कंपनी द्वारा प्रकाशित पत्रिका मार्केटवाच को एक साक्षात्कार में राजन ने कहा, हमारा मानना है कि हम उस मोड़ की ओर बढ़ रहे हैं जहां हम अपनी मध्यावधि वृद्धि लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं क्योंकि हालात ठीक हो रहे हैं। निवेश में मजबूती आ रही है। हमारे यहां काफी कुछ व्यापक स्थिरता है। (अर्थव्यस्था) भले ही हर झटके से अछूती नहीं हो लेकिन बहुत से झटकों से बची है।
राजन से जब चमकते बिंदु वाले इस सिद्धांत पर उनकी राय जाननी चाही तो उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि हमें अब भी वह स्थान हासिल करना है जहां हम संतुष्ट हो सकें। वर्तमान परिवेश को देखते हुए यही लगता है कि "अंधों में काना राजा" और हम वैसे ही हैं।
उन्होंने कहा, निसंदेह रूप से, ढांचागत सुधार चल रहे हैं। सरकार नयी दिवाला संहिता लाने की प्रक्रिया में है। वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) आना है। लेकिन अनेक उत्साहजनक चीजें पहले ही घटित हो रही हैं।
उन्होंने कहा, 'केंद्रीय बैंकर को व्यावहारिक होना होता है, और मैं इस उन्माद का शिकार नहीं हो सकता कि भारत सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज करने वाली विशाल अर्थव्यवस्था है।'
राष्ट्रीय बैंक प्रबंधन संस्थान (एनआईबीएम) के दीक्षांत समारोह में राजन ने कहा कि भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे ऐसे देश के तौर पर देखा जा रहा है, जिसने अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन किया है और उसे ढांचागत सुधार को 'कार्यान्वित, कार्यान्वित और कार्यान्वित' करना चाहिए।
हो सके आपको यह बात आपके स्वाद को बिगाड़ दे या मोदी के समर्थक होने के नाते बहुत बुरी लगे।
आखिर कोई भी मोदी सरकार के दो वर्षों का कार्यकाल का समीक्षा करेगा तो उसे समझ में आ जाएगा कि अगले 5 साल में यह सरकार की नीतियां हमें कितना आगे ले जा सकती हैं ? ब्रिक्स में शामिल सभी सदस्य देशों में सबसे कम प्रतिव्यक्ति आय हमारा ही है।
अर्थव्यवस्था के दो सबसे अहम मापदंड होते हैं पहला कीमतों में गति तथा दूसरा उत्पादन सक्रियता।लेकिन इन दोनो में कोई बड़ी उछाल अब तक देखने को नही मिला हैं। मुद्रा स्फीति में हल्की सी सुधार जरूर मार्च में 5.3% से 4.8% देखने को मिला। लेकिन फिर भी कोई बड़ा तीर नही लग गया। यह संभव हो पाया क्योंकि अंतरास्ट्रीय स्तर पर वस्तु की कीमत गिरी। यहाँ तक की यूरोपीय देशों में कच्चे तेल की मांग घटी फिर भी अंतरास्ट्रीय बाजार को सही से इस्तेमाल नही कर सके। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ 'खेती' हैं, जो की पिछले दो वर्षों से मानसून की लुका-छिपी खेल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को थाम कर रख दिया। ऊपर से सचिन पायलट की बातों को भरोसा करें तो सरकार कृषि की रीढ ग्राम सेवा सहकारी समितियों के अस्तित्व को मिटाने का षडयंत्र रच रही है। सचिन ऐसा इसलिए कह रहें है क्योंकि इन समितियों को केन्द्रीय सहकारी बैंकों के एजेन्ट के रूप में काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
अर्थव्यस्था के सुधार में पब्लिक सेक्टर को तेजी से निजीकरण किया जा रहा हैं? क्या इससे दोहरी मार जनता नही झेलेगी ?
यह कहने में बड़ा अजीब लगता हैं कि उदारीकरण में मानवीय संबंध भी एक उत्पाद बन गया हैं।
जी न्यूज़,इंडिया न्यूज़ और इंडिया टीवी पर रोज रात आप चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध तो जीत ही जाते हैं। लेकिन वास्तविकता क्या है ? इसका कभी आपने पड़ताल किया है? चीन के साथ मुकाबला करने पर हम पाते है कि 2014 में चीन में प्रति व्यक्ति 1,531 अमेरिकी डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ था, जबकि भारत में यह निवेश मात्र 183 अमेरिकी डॉलर था।
'वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन' के आंकड़ों के अनुसार हम पेटेंट कराने में इनसे बहुत पीछे हैं।
'मेजरिंग रेग्यूलर क्वालिटी ऐंड एफिशियंसी'। इनमें 11 क्षेत्रों, विषयों की गहराई से जांच की जाती है, जिसमें व्यवसाय की शुरुआत करने के नियम, कर-प्रणाली से लेकर उत्पादन, वितरण व अन्य सभी तरह की सुविधाओं के आकलन के बाद देश की 'रैंकिंग' की जाती है। विश्व बैंक इसके तहत 189 देशों का आकलन करता है। भारत 2016 में इसमें 130 वें पायदान पर था।
बैंको के साथ हर दिन नई समस्या तो खड़ी हो जा रही हैं। कभी माल्या तो कभी अडानी, माल्या का 9 हजार करोड़ को एक तरफ रख दे तो पंजाब की बात कर लेते है। पंजाब में सीएजी की रिपोर्ट कहती है 2009 से 2013 के बीच 3319 ट्रकों का पता नही चल रहा है। इन ट्रकों से गेहूँ खरीदना था और इस लिए 12,000 करोड़ रुपया रिलीज किया गया था और अब इन 30 बैंकों के समूह को 12,000 करोड़ के स्टॉक का हिसाब नहीं मिल रहा है। यानी 12,000 करोड़ का घोटाला हो गया है। 2007 से ही यहाँ शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी की संयुक्त गठबंधन की सरकार है।
उधर सवाल उठ रहा है की सरकार जापान को बुलेट ट्रेन चलवाने के लिए लिया गया कर्ज किस तरह से चुकता करेगी? चूंकि हम तो बड़े देश है, विदेश से हमें दान(donate..as India giving huge amounts of money to other countries) मिलेगा नही।
केंद्र सरकार की अति महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना की व्यवहार्यता को लेकर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद ने सवालिया निशान लगाया है। आईआईएम की रिपोर्ट के मुताबिक बुलेट ट्रेन को मुंबई-अहमदाबाद के बीच हर रोज कम से कम 100 फेरे लगाने पड़ेंगे तभी यह मुनाफे की ट्रेन बन सकेगी।
'डेडिकेटेड हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क इन इंडिया
इशूज इन डेवलपमेंट' शीर्षक से प्रकाशित हुई है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे को कर्ज और ब्याज समय पर चुकाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। चूंकि हमने जापान से 97,636 करोड़ रुपये का ऋण और इसका ब्याज तय समय पर चुकाने का वादा किया है। इसके लिए ट्रेन संचालन शुरू होने के 15 साल बाद तक रेलवे को 300 किलोमीटर के लिए किराया 1500 रुपये रखना होगा।
शोध से दो निष्कर्ष निकल कर आएं हैं।
1. एक यात्री औसतन 300 किलोमीटर का सफर करे और 1500 रुपये लिया जाये। राशि ब्याज सहित लौटने के लिए रोजाना 88,000-118,000 यात्रियों की जरूरत होगी।
2. अमूमन एक ट्रेन में 800 यात्री सफर करते हैं, तो 88000 यात्रियों को ढोने के लिए 100 फेरों की जरूरत होगी।
लेकिन आमतौर पर बुलेट ट्रेनों में अधिकतम 500-600 यात्री तक ही सफर करते हैं। और गति पर विश्वास किया जाये तो मान लीजिये 534 किमी के लिए 2 घंटे का समय लेगी। इस लिहाज से अधिकतम 24 घन्टा में 24 जोड़ी ट्रेन ही दौड़ पायेगी।
जो जादुई आंकड़ा पूरा करना है उससे तो हम कोसो दूर है।
खैर,इस चिंता को छोड़ ही दीजिये। क्योंकि हमलोग हिन्दू-मुस्लिम टॉपिक में ज्यादा अच्छे लगते हैं।