व्यक्ति विशेष: मोहम्मद अली

नाम: मोहम्मद अली
जन्म: 17 जनवरी 1942
निधन: 4 जून 2016
कुल मुकाबले: 61
जीत:56, हार: 5
तीन बार वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियन

बहुत कम देखने को यह मिलता है कि किसी एक की मृत्यु पर दुनिया बिल्कुल ठहर सी जायें। दुनिया के हर कोने से मोहम्मद अली के लिये संदेश भेजे जा रहे हैं। कुछ ही घंटो में लाखो ट्वीट (1 घंटे में 15 लाख ट्वीट) और फेसबुक संदेशो में अली को बड़ी सिद्दत से याद किया जा रहा है।दुनिया में मौत हर एक को आई है। कोई भी मौत से बच न सका। चाहे वह दुनिया का सबसे बुरा आदमी हो या फिर महान इंसान मौत से कोई नहीं बच सकता, 'महानतम' इंसान को भी जाना पड़ता है। कैसियस मार्केल्स क्ले जूनियर जो मोहम्मद अली के नाम मशहूर हैं, ज़िंदगी की अपनी जंग हार गये। मुक्केबाजी के युगपुरुष और तीन बार के विश्व चैंपियन मोहम्मद अली का शनिवार को 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 17 जनवरी 1942 को अमेरिका के केंचुकी के अश्वेत परिवार में जन्में अली के बचपन का नाम कैशियस क्ले था। वर्ष1964 में लिस्टन को हराकर हेवीवेट खिताब जीतने के बाद उन्होंने यह घोषणा करके मुक्केबाजी जगत को हैरानी में डाल दिया कि वह धार्मिक संगठन 'नेशन ऑफ इस्लाम' के सदस्य हैं और उन्होंने बाद में अपना नाम बदल दिया, क्योंकि उनका मानना था कि वह 'गुलामों का नाम' है। 1965 में उन्होंने इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बाद खुद को अश्वेत मुस्लिम घोषित कर दिया तथा नाम बदलकर मोहम्मद अली रख लिया। बाद में दुनिया उन्हें मोहम्मद अली के नाम से ही जानती रही।साल 1967 में हुए मुक़ाबले के दौरान एर्नी ट्रेल ने उन्हें मोहम्मद अली कहने से इंकार कर दिया। इस पर मोहम्मद अली ने कहा, "मेरा नाम क्या है, मूर्ख? मेरा नाम क्या है? "
अली ने 12 वर्ष की उम्र में ही मु्क्केबाजी की ट्रेनिंग शुरू की। इसके पीछे दिलचस्प कहानी यह है कि 12 साल के कैसियस क्ले अपनी साइकिल से मुफ्त में खाना मिलने वाले एक कार्यक्रम में गए थे। जब बाहर आए तो साइकिल चोरी हो चुकी थी। उन्होंने पुलिसकर्मी जोए मार्टिन से इसकी शिकायत की और साथ ही गुस्से में उन्होंने चोर का मुंह तोड़ने की धमकी भी दी। मार्टिन ने अली के गुस्से को सही जगह लगाने के लिए उन्हें स्थानीय बॉक्सिंग सीखने को प्रेरित किया। जिसका नतीजा यह रहा कि उन्होंने रोम में 1960 में हुए ओलंपिक खेलों में लाइट हैवीवेट वर्ग का स्वर्ण पदक जीता। इस जीत की कहानी भी बड़ी मजेदार है हुआ यु़ की मोहम्मद अली को हवाई जहाज में बैठने से डर लगता था। इतना ज्यादा कि, उन्होंने 1960 के रोम ओलंपिक में नहीं जाने का मन बना लिया था। हालांकि बाद में वह अमरीकी सेना का पैराशूट साथ में लेकर ओलम्पिक जाने के लिए विमान में सवार हुए, ताकि दुर्घटना होने पर जान बचाई जा सके। इस ओलंपिक में अली ने स्वर्ण पदक जीता। अली का सफ़र 5 सितंबर 1960 से शुरू होता है, इस फ़ाइनल मुक़ाबले में पोलैंड के बीगन्यू ज़ीग्गी पैत्रिज्वोस्की को मात दी थी।अगर वे हवाई जहाज़ में उड़ने के डर से रोम नहीं गए होते तो दुनिया उनके जलवे से महरूम रह जाती। तीन बार विश्व चैंपियन रह चुके हैं। पहली बार उन्होंने 1964 में फिर 1974 में और फिर 1978 में विश्व चैंपियनशिप का खिताब जीता था।
वे बॉक्सिंग के अलावा नस्लभेद के मामलों में सक्रिय रहे।वे देश से बड़ा इनसानियत को मानते थे।  मोहम्मद अली हमेशा जंग के खिलाफ रहे। यही कारण रहा था कि 1966 में उन्होंने वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सेना में शामिल होने से इनकार कर दिया। वियतनाम के खिलाफ युद्ध मे जाने से इंकार करने के लिए उन्होंने कुरआन का हवाला देकर कहा - कुरआन की शिक्षाए निर्दोषो के खिलाफ युद्ध का विरोध करती हैं। बाद में वियतनाम युद्ध के कारण अमेरिका को काफी फजीहत उठानी पड़ी। जिसके लिए बाद में उन्हें अरेस्ट भी कर लिया गया था। अरेस्ट होने के बाद भी उन्होंने यही कहा था कि मेरी वियतनाम के साथ कोई दुश्मनी नहीं है। अली ने दलील दी कि युद्ध इस्लाम और कुरान के खिलाफ है। इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। उनसे विश्व चैंपियनशिप का खिताब छीन लिया गया। मुक्केबाजी लाइसेंस रद्द कर दिया गया। लोगों ने उन्हें देशद्रोही कहा। 10 हजार डॉलर के जुर्माने के साथ-साथ 5 साल की सजा भी सुनाई गई। हालांकि ट्रायल के दौरान वह जेल नहीं गये और वर्ष 1971 में अदालत ने इस फैसले को पलट दिया। अमेरिकी सेना ने अली की उनकी समझदारी (आईक्यू) के लिए 78 अंक दिये थे जिसके बाद महान मुक्केबाज ने अपनी आत्मकथा में मजाकिया लहजे में कहा 'मैंने यह कहा था कि मैं दुनिया में महानतम हूं लेकिन सबसे होशियार नहीं'। अली केस जीत गयें ओर अली को मुक्केबाजी की अनुमति दी गई।ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बावजूद मोहम्मद अली को अमेरिका के श्वेत लोगों के एक रेस्टोरेंट में खाना ऑर्डर नहीं किया गया। बाद में उनकी झड़प अश्वेत गुंडों से भी हुई। अपनी आत्मकथा 'द ग्रेटेस्ट' में अली ने लिखा कि जब मोटरसाइकल पर सवार श्वेत लोगों के एक समूह ने उनके साथ झगड़ा किया तो उन्होंने अपना पदक ओहियो नदी में फेंक दिया था।  अली ने 1981 में मुक्केबाजी से हमेशा के लिए संन्यास ले लिया।1984 में यह उजागर हुआ कि अली पर्किन्सन बीमारी से जूझ रहे हैं। उन्हें यह बीमारी मुक्केबाजी के दौरान लगी चोट से हुई थी।

अली को राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 2005 में प्रेसीडेंशियल मैडल ऑफ फ्रीडम प्रदान किया। अली ने 2012 के लंदन ओलिंपिक के शुभारंभ समारोह में उपस्थिति दर्ज कराई थी।


'ऐसा इनसान, जिसने कभी अपने लोगों को नहीं बेचा। अगर यह मांग बहुत ज्यादा है तो सिर्फ एक अच्छे मुक्केबाज की तरह। अगर आप यह नहीं भी बताएंगे कि मैं कितना अच्छा था, तो भी मैं बुरा नहीं मानूंगा।’ -मोहम्मद अली (जब उनसे पूछा गया कि दुनिया से जाने के बाद आप कैसे याद किया जाना पसंद करेंगे।)

 बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ने  महान मुक्केबाज मोहम्मद अली को श्रृद्धांजलि देते हुए कहा कि वह महानतम थे और ऐसे चैम्पियन थे जो सही के लिये लड़े । 'मोहम्मद अली ने दुनिया हिला दी थी और इसे बेहतर बनाया। मिशेल और मैं उनके परिवार को सांत्वना देते हैं और दुआ करते हैं कि इस महानतम फाइटर की आत्मा को शांति मिले।' ओबामा ने कहा कि उन्होंने अपनी निजी स्टडी में अली के फोटो के नीचे उनके दस्तानों का जोड़ा रखा है जब 22 बरस की उम्र में उन्होंने सोनी लिस्टन को हराया था।ओबामा और मिशेल ने कहा, 'अली महानतम थे। ऐसा इंसान जो हमारे लिये लड़ा। वह किंग और मंडेला के साथ थे और कठिन हालात में उन्होंने आवाज बुलंद की। रिंग के बाहर की लड़ाई के कारण खिताब गंवाये। उनके कई दुश्मन बने जिन्होंने लगभग उन्हें जेल में भेज दिया था लेकिन वह अडिग रहे। उनकी जीत से हमें यह अमेरिका मिला जिसे हम आज जानते हैं।' उन्होंने बयान में कहा, 'वह परफेक्ट नहीं थे। रिंग में जादूगर लेकिन तोल मोल कर नहीं बोलते थे लेकिन अपने बेहतरीन जज्बे के दम पर उन्होंने प्रशंसक ज्यादा बनाये।'


मोहम्मद अली की आत्मा को शांति मिले। आप एक आदर्श खिलाड़ी और प्रेरणा के स्रोत रहे जिसने मानव की ऊर्जा और दृिढ़ता को प्रमाणित किया।-नरेन्द्र मोदी


वह एक महान मुक्केबाज थे। उन्होंने कई मुक्केबाजों को इस खेल में आने के लिए प्रोत्साहित किया।-एमसी मैरीकोम
मोहम्मद अली आप हमेशा एक लीजेंड रहेंगे। लीजेंड मरा नहीं करते। हम आपको हमेशा याद रखेंगे।-विजेन्दर सिंह


भविष्य में फिर कभी कोई मोहम्मद अली नहीं होगा। दुनिया भर के अश्वेत समुदाय के लोगों को उनकी जरुरत थी। वह हमारी आवाज थे। मैं आज जिस भी मुकाम पर हूं उसमें अली का बहुत योगदान है।-फ्लायड मेवेदर


हमने एक महान खिलाड़ी को खो दिया। मुक्केबाजी को अली की प्रतिभा से उतना फायदा नहीं हुआ जितना कि मानवजाति को उनकी इंसानियत से।-मैनी पैकियाओ


भगवान खुद अपने चैंपियन खिलाड़ी को लेने आए। अली अभी तक के महानतम खिलाड़ी हैं। उनकी आत्मा को शांति मिले।-माइबनाये।

'My top five quotes of Ali

1. “Even the greatest was once a beginner. Don’t be afraid to take that first step.”

2. “I am gonna show you,how great I am.”

3. “The man who has no imagination has no wings.”

4.“The only limitations one has are the ones they place on themselves.”

5.“He who is not courageous enough to take risks will accomplish nothing in life.”

पंचायत चुनाव: खबरो को तोड़ना कितना सही है ?

पंचायती राज :गांव की सरकार
भारत गांवो का देश है गांवो के विकास के बिना भारत का विकास नामुमकीन है । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश हैं। 1993 में संविधान में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता मिली। पंचायतो के अधिकारो को काफी विसतृत किया गाया आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और लागु करवाना पंचायतो के विवेक पर छोड़ दिये गये। प्रत्येक पंचायतो के अधिकार वहां के आर्थिक-सामाजिक-भगौलिक आधार पर तय होता हैं। वैसे ही बिहार में बिहार पंचायत राज अधिनियम,2006 की विभिन्न धाराओं से संचालित होते है। ग्राम पंचायत के सदस्यो का चुनाव ग्राम पंचायत के मतदाताओं द्वारा तय होता है।
जिंदगी में पहली बार इस चुनाव में हिस्सा लिया। बतौर वोटर वोट डालने का मौका भला कैसे छोड़ देता। मैने जिस चुनाव में अपना मत का प्रयोग किया उसके नतीजें अभी घोषित नही हुये है। जीत-हार के समीकरण में और कुछ शामे बाकि रह गई हैं। करीब करीब दोनो योद्धा एक दुसरे की जीत का भविष्यवाणी कर रहे हैं। कोई स्पष्ट नही है। किसी ने भी जीत के लड्डु के ऑडर नही दिये है। हर दिन बेचैनी,कयास और जोड़ घटाव में दिन बीत जा रहा है अब इंतजार फैसले के दिन का है। यह हाल मेरे गांव का है। लेकिन अभी जहां हूं इस प्रखंड के सभी ग्राम पंचायतो के चुनाव के नतीजे घोषित किये जा रहें है। इस प्रखंड के एक पंचायत के चुनाव परिणाम को किसी एक अखबार ने जिस ढ़ग से प्रसतुत किया वो पत्रकारिता के पैमाने पर कहीं से भी खरा नही उतरता और वह भी कल यानी पत्रकारिता दिवस के दिन। जिस घटना की मीस रिपोर्टींग हुई है उस घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखा हूं। तराजु के हर झुकाव को बेहद नजदिक से देख रहा था। 11 घंटे से ज्यादा तनाव के उस दौर को मैने महसुस किया है। जब चीजे बिल्कुल उल्ट थी तो फिर इस कदर तोड़-मरोड़ कर खबर क्यो बनाया गया ? तर्कसंगत ओर सबुत के साथ यह साबित कर सकता हूं कि पत्रकार महोदय आपने खबर को गलत तरीके से पेश किया है।
भारत में प्रेस की आजादी का बात करना वैसे भी बेईमानी है। यु ही नही 133 रैंक मिल जाते। आपने कई बार अखबारों-चैनलो में यह बात प्रमुखता से पढ़ी या सुनी होगी कि अमिताभ बच्चन या क्रिस गेल या फलाना सेलिब्रेटी ने अपने बर्ताव के लिए पत्रकारो से मांगी माफी। क्या आपने गलत रिपोर्टींग के लिये किसी अखबार वालो को माफीनामा छापे देखा है ? बहुत बड़े खबरो के लिये इक्का-दुक्का बार सुना होगा। मुझे तो फिलहाल दो खबर याद आता है एकबार ABP NEWS के पत्रकार ने गलत तथ्य बोल दिया था जिसके अगले दिन वेब संसकरण में खेद प्रकट किया गया था। दुसरा बीबीसी के पत्रकार ने ट्वीटर पर महारानी के निधन की गलत सूचना दे दी थी जिसके बाद में बीबीसी ने माफी मांगी थी।

लेकिन छोटी खबरो को मोनीटर करने वाला कोई नही होता। कस्बा लेवल पर पत्रकार जो मन में आये लिख भेजते है। संपादक सिर्फ भाषा में सुधार कर हु ब हु छाप देते है। उपर जिक्र की गई खबर का असर दैनिक दिनचार्या में हुआ होगा या नही शायद नही ही हुआ होगा लेकिन मेरे जानकारी में एेसे गलत प्रस्तुति कई के जिंदगी में कई साल तक टीस बनाये रखा। कस्बो और मध्यम शहरो के पत्रकारो को ट्रेनिग तो दी जाती है। लेकिन यह अंतराल काफी बड़ा होता है। उन्हे इतनी भी तनख्वाह नही मिलती की वे अपने जरूरतो को पुरा कर सके। जिंदगी को सुगम बनाने के लिये वह जोड़-तोड़ करने लगता है। फायदे का रिलेशनसीप बनाता है फायदा का खबर लिखता है। कभी एडीटर खबर को रोचक बनाने के लिये मुल खबर को ही इतना छेड़ देता है कि खबर वास्तविकता से कोसो दुर चली जाती है। यह इत्तेफाकन नही होता बल्की पाठको को इंटरेस्ट बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है। जब खबरो के साथ ऐसा बर्ताव हो़ रहा हो तो क्या आपको नही महसुस होता इसका असर सामाजिक स्तर पर पड़ रहा है ?
कई पत्रकारो के गलत रिपोर्टींग से बहुत कुछ घटना उनके साथ घटित हो जाता है। जिनके साथ ऐसी कोई घटना घटित हुई हो उनकी रिपोर्टींग की जांच होनी चाहिए कि आखिर किस तरह के खबरे वे लिखते और किस तरह की सुचना उनके पास संग्रहित है।
या फिर कोइ एेसी व्यवस्था हो जिसमें पत्रकार डरे नही साथ ही साथ मानसिकता सिर्फ खबर का हो न की खबरो के व्यापार का। इसके लिये अखबार मालिको का अपना मुनाफा थोड़ा कम करना पड़ेगा। पत्रकारिता साहस का नाम कब का खत्म हो चुका है। लेकिन अब बिजनेस हो गया है। मगर सारा मुनाफा उपर के लोग ही खा जाते है तो भला निचले स्तर पर सुधार कैसे संभव हो पायेगा ? ये लोग तो जुगाड़ करेंगे ही और खबरो में गुणवता कहां से आ पायेगा ?
मैं जहां रह रहा हूं उस प्रखंड के पंचायत चुनाव परिणाम को जब कुछ पत्रकारो ने असमान दृष्टी से देखा तो मैं हैरान रह गया..! आखिर सोचियें जब अंदरखाने में सब आपकी मदद कर रहे है तब भी कोई क्यो हार जाए ?
खैर, जिसको जो मिला उसको तो कबुलना पड़ेगा। हार-जीत सिक्के के दो पहलु है और इसमें भी इसी सिक्के ने अपनी भुमिका निभाई । हार कई मायनो में अपना होता है जो आत्मलोचन, रणनीति और कमी को सुधारने का भरपुर मौका देता है। सही तैयारी ही जश्न की आधारशील होती है। लेकिन जब कर्म अंतिम समय पर भाग्य पर अपना फैसला छोड़ देता है और भाग्य आपका साथ छोड़ दे तो यह आपके बस की बात नही है। चुनाव के लिये सब जरूरी है और कुछ भी संभव हो जाता है।

वर्तमान पत्रकारिता परिदृश्य पर कुछ महीनो पहले लिखा मेरा लेख-https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=1821058916320108681#editor/target=post;postID=7991749712142450092;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=40;src=postname

काना राजा,अंधा प्रजा ?




रघुराम राजन किसी परिचय के मोहताज नही है। राजन की अगुवाई में रिजर्व बैंक को भी इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उसने देश की वित्तीय प्रणाली को बाहरी झटकों से बचाने के लिए कई उचित कदम उठाए हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री राजन विश्व बैंक व आईएमएफ की सालाना बैठक के साथ साथ जी20 के वित्तमंत्रियों व केंद्रीय बैंक गवर्नरों की बैठक में भाग लेने अमेरिका गए थे।

डाउ जोंस एंड कंपनी द्वारा प्रकाशित पत्रिका मार्केटवाच को एक साक्षात्कार में राजन ने कहा, हमारा मानना है कि हम उस मोड़ की ओर बढ़ रहे हैं जहां हम अपनी मध्यावधि वृद्धि लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं क्योंकि हालात ठीक हो रहे हैं। निवेश में मजबूती आ रही है। हमारे यहां काफी कुछ व्यापक स्थिरता है। (अर्थव्यस्था) भले ही हर झटके से अछूती नहीं हो लेकिन बहुत से झटकों से बची है।
राजन से जब चमकते बिंदु वाले इस सिद्धांत पर उनकी राय जाननी चाही तो उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि हमें अब भी वह स्थान हासिल करना है जहां हम संतुष्ट हो सकें। वर्तमान परिवेश को देखते हुए यही लगता है कि "अंधों में काना राजा" और हम वैसे ही हैं।
उन्होंने कहा, निसंदेह रूप से, ढांचागत सुधार चल रहे हैं। सरकार नयी दिवाला संहिता लाने की प्रक्रिया में है। वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) आना है। लेकिन अनेक उत्साहजनक चीजें पहले ही घटित हो रही हैं।

 उन्होंने कहा, 'केंद्रीय बैंकर को व्यावहारिक होना होता है, और मैं इस उन्माद का शिकार नहीं हो सकता कि भारत सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज करने वाली विशाल अर्थव्यवस्था है।'

राष्ट्रीय बैंक प्रबंधन संस्थान (एनआईबीएम) के दीक्षांत समारोह में राजन ने कहा कि भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे ऐसे देश के तौर पर देखा जा रहा है, जिसने अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन किया है और उसे ढांचागत सुधार को 'कार्यान्वित, कार्यान्वित और कार्यान्वित' करना चाहिए।

हो सके आपको यह बात आपके स्वाद को बिगाड़ दे या मोदी के समर्थक होने के नाते बहुत बुरी लगे।
आखिर कोई भी मोदी सरकार के दो वर्षों का कार्यकाल का समीक्षा करेगा तो उसे समझ में आ जाएगा कि अगले 5 साल में यह सरकार की नीतियां हमें कितना आगे ले जा सकती हैं ? ब्रिक्स में शामिल सभी सदस्य देशों में सबसे कम प्रतिव्यक्ति आय हमारा ही है। 




अर्थव्यवस्था के दो सबसे अहम मापदंड होते हैं पहला कीमतों में गति तथा दूसरा उत्पादन सक्रियता।लेकिन इन दोनो में कोई बड़ी उछाल अब तक देखने को नही मिला हैं। मुद्रा स्फीति में हल्की सी सुधार जरूर मार्च में 5.3% से 4.8% देखने को मिला। लेकिन फिर भी कोई बड़ा तीर नही लग गया। यह संभव हो पाया क्योंकि अंतरास्ट्रीय स्तर पर वस्तु की कीमत गिरी। यहाँ तक की यूरोपीय देशों में कच्चे तेल की मांग घटी फिर भी अंतरास्ट्रीय बाजार को सही से इस्तेमाल नही कर सके। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ 'खेती' हैं, जो की पिछले दो वर्षों से मानसून की लुका-छिपी खेल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को थाम कर रख दिया। ऊपर से सचिन पायलट की बातों को भरोसा करें तो सरकार कृषि की रीढ ग्राम सेवा सहकारी समितियों के अस्तित्व को मिटाने का षडयंत्र रच रही है। सचिन ऐसा इसलिए कह रहें है क्योंकि इन समितियों को केन्द्रीय सहकारी बैंकों के एजेन्ट के रूप में काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

अर्थव्यस्था के सुधार में पब्लिक सेक्टर को तेजी से निजीकरण किया जा रहा हैं? क्या इससे दोहरी मार जनता नही झेलेगी ? 
यह कहने में बड़ा अजीब लगता हैं कि उदारीकरण में मानवीय संबंध भी एक उत्पाद बन गया हैं।
जी न्यूज़,इंडिया न्यूज़ और इंडिया टीवी पर रोज रात आप चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध तो जीत ही जाते हैं। लेकिन वास्तविकता क्या है ? इसका कभी आपने पड़ताल किया है? चीन के साथ मुकाबला करने पर हम पाते है कि 2014 में चीन में प्रति व्यक्ति 1,531 अमेरिकी डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ था, जबकि भारत में यह निवेश मात्र 183 अमेरिकी डॉलर था।
'वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन' के आंकड़ों के अनुसार हम पेटेंट कराने में इनसे बहुत पीछे हैं।
'मेजरिंग रेग्यूलर क्वालिटी ऐंड एफिशियंसी'। इनमें 11 क्षेत्रों, विषयों की गहराई से जांच की जाती है, जिसमें व्यवसाय की शुरुआत करने के नियम, कर-प्रणाली से लेकर उत्पादन, वितरण व अन्य सभी तरह की सुविधाओं के आकलन के बाद देश की 'रैंकिंग' की जाती है। विश्व बैंक इसके तहत 189 देशों का आकलन करता है। भारत 2016 में इसमें 130 वें पायदान पर था। 
बैंको के साथ हर दिन नई समस्या तो खड़ी हो जा रही हैं। कभी माल्या तो कभी अडानी, माल्या का 9 हजार करोड़ को एक तरफ रख दे तो पंजाब की बात कर लेते है। पंजाब में सीएजी की रिपोर्ट कहती है 2009 से 2013 के बीच 3319 ट्रकों का पता नही चल रहा है। इन ट्रकों से गेहूँ खरीदना था और इस लिए 12,000 करोड़ रुपया रिलीज किया गया था और अब इन 30 बैंकों के समूह को 12,000 करोड़ के स्टॉक का हिसाब नहीं मिल रहा है। यानी 12,000 करोड़ का घोटाला हो गया है। 2007 से ही यहाँ शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी की संयुक्त गठबंधन की सरकार है।
उधर सवाल उठ रहा है की सरकार जापान को बुलेट ट्रेन चलवाने के लिए लिया गया कर्ज किस तरह से चुकता करेगी? चूंकि हम तो बड़े देश है, विदेश से हमें दान(donate..as India giving huge amounts of money to other countries) मिलेगा नही।

केंद्र सरकार की अति महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना की व्यवहार्यता को लेकर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद ने सवालिया निशान लगाया है। आईआईएम की रिपोर्ट के मुताबिक बुलेट ट्रेन को मुंबई-अहमदाबाद के बीच हर रोज कम से कम 100 फेरे लगाने पड़ेंगे तभी यह मुनाफे की ट्रेन बन सकेगी।

'डेडिकेटेड हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क इन इंडिया
इशूज इन डेवलपमेंट' शीर्षक से प्रकाशित हुई है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे को कर्ज और ब्याज समय पर चुकाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। चूंकि हमने जापान से 97,636 करोड़ रुपये का ऋण और इसका ब्याज तय समय पर चुकाने का वादा किया है। इसके लिए ट्रेन संचालन शुरू होने के 15 साल बाद तक रेलवे को 300 किलोमीटर के लिए किराया 1500 रुपये रखना होगा।
शोध से दो निष्कर्ष निकल कर आएं हैं।
1. एक यात्री औसतन 300 किलोमीटर का सफर करे और 1500 रुपये लिया जाये। राशि ब्याज सहित लौटने के लिए रोजाना 88,000-118,000 यात्रियों की जरूरत होगी।
2. अमूमन एक ट्रेन में 800 यात्री सफर करते हैं, तो 88000 यात्रियों को ढोने के लिए 100 फेरों की जरूरत होगी।
लेकिन आमतौर पर बुलेट ट्रेनों में अधिकतम 500-600 यात्री तक ही सफर करते हैं। और गति पर विश्वास किया जाये तो मान लीजिये 534 किमी के लिए 2 घंटे का समय लेगी। इस लिहाज से अधिकतम 24 घन्टा में 24 जोड़ी ट्रेन ही दौड़ पायेगी।
जो जादुई आंकड़ा पूरा करना है उससे तो हम कोसो दूर है।
खैर,इस चिंता को छोड़ ही दीजिये। क्योंकि हमलोग हिन्दू-मुस्लिम टॉपिक में ज्यादा अच्छे लगते हैं।