रोहित ने आत्महत्या नही की बल्कि उसे मार दिया गया।
रोहित वेगुला कौन था? रोहित को किसने मारा? रोहित जैसा आकांक्षी युवा को मरने पर कौन सा सिस्टम मजबूर कर रहा हैं? रोहित ने सुसाइड नोट में मौत का जिम्मेदार किसी को नही बताया। लेकिन उसके खून के छींटे हम पर क्यों पड़ गए। दसवीं सताब्दी के सामंतवादी व्यवस्था आज भी क्यों चल रहें हैं? एक नवजवान लड़का,महत्वाकांक्षी लड़का, भारत को सामंतवादी व्यवस्था से लड़कर आजाद कराने के लिए प्रतिबद्ध था। ऐसा नही हैं कोई पहली बार व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हुए इस खालीपन से भर जाते हैं। पूरा तंत्र ही सक्रिय हो गया,ABVP से आगाज कर केंद्रीय मंत्री बंडारु तब फिर स्मृति ईरानी सब के सब इन छात्रों को रास्ता से हटाने के लिये सभी हथकंडे अपनाने लगे।
मगर हार गया क्योंकि इस जातिवादी को सहने की उसकी आदत नही थी। सहन नही हो सका,उबर नही पाया। हार गया,उम्मीदें अब बची ही न थी तो फिर जीने की क्या वजह ढूंढता। मासूम एंकर कभी मौत की वजह ख़ोज नही पाएगी।
अक्सर विश्वविद्यालयों में राजनीतिक गतिविधि होती रहती है, कभी कोई फिल्म दिखाई जाती है तो उसके लिये मारपीट हो जाती हैं तो कभी किसी का सेमिनार के विरोध में मारपीट। फिर किस तर्क से कमेटी राजनीतिक ओत-प्रोत में आकर छात्रों को होस्टल से, लाइब्रेरी से, कैंपस से और फिर विश्वविद्यालय से कई महीनों के लिए निकाल देता हैं। ये दबाव समूह काफी तेजी से सक्रिय हो जाता हैं। उम्र के मामूली उफ़ान को समझने में भूल हो जाती नतीजा हिंसक कृत्य। प्रगतिशील ताकत पता नही कहाँ छुप जाते हैं।
प्रधानमंत्री जी का ट्वीट किसी गायिका के बेटा-बेटी के जन्मदिन में तुरंत आ जाता हैं किंतु इन मामलों में चुप्पी क्यों हो जाती हैं? अगर बड़े स्तर पर हितैषी का प्रदर्शन किया जाता तो खुद ब खुद निचले स्तर पर व्यवहार सकारत्मक होती।
हैदराबाद सेंट्रल विश्वविद्यालय में अंबेडकर छात्र संघ से जुड़े दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय का लिखा एक पत्र यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि छात्रों का मनोबल सब मिलजुल कर तोड़ रहें थे।
अगस्त, 2015 में दत्तात्रेय ने जो पत्र लिखा था, उसी के बाद से विश्वविद्यालय ने उन्हें छात्रावास से निष्कासित कर दिया। जिससे रात खुले आसमान के नीचे बिताना पड़ रहा था। छात्रों का कहना है कि इन राजनीतिक दबावों के कारण मारपीट और चोट के सबूत न होने के बाद भी छात्रों को दोषी ठहराया गया और उन्हें निलंबित किया गया। दस दिनों से यह छात्र हास्टल के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे और अपना निलंबन वापस लिए जाने की मांग कर रहे थे। फेलोशिप रोक दी गई साथ-साथ हॉस्टल से भी निकल जाने का आदेश जारी कर दिया गया।
बंडारु ने अगस्त, 2015 में मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी को पत्र लिखा था।
विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन कर रहे अंबेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन के सदस्यों ने भाजपा से जुड़ी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के अध्यक्ष सुशील कुमार के साथ झड़प हुई थी।
बंडारु दत्तात्रेय ने लिखा था, "विश्वविद्यालय कैंपस जातिवादी, अतिवादी और राष्ट्र विरोधी राजनीति का अड्डा बनता जा रहा है। जब याकूब मेमन को फांसी दी गई थी तो अंबेडकर छात्र संघ के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया था।"
दत्तात्रेय के पत्र के बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने विश्वविद्यालय को एक पैनल बनाने का आदेश दिया था जिसने निलंबन का फ़ैसला लिया था।
किसी को सामाजिक बहिस्कार कर देना। साथ बैठने से मना कर देना। जातिवादी को जारी रखना। हॉस्टल, लाइब्रेरी से निकाल बाहर करना। यह 21वीं सदी में भी जारी हैं। ये वही लोग जो असमानता और शोषण को ही जीवन मूल्य मानने लगे हैं। इन्हें बदलाव किसी भी कीमत पर मंजूर नही।
लोग कह रहें हैं वह कायर था लेकिन जिन्होंने तब के प्रणाली से तंग आकर यह कदम को चुना तो क्यों वे शहीद हो गये,चंद्रशेखर तो याद होगा ना?
जो छात्र उच्च शिक्षा के सपने देखते हैं, जो पढ़ना चाहते आगे बढ़ना चाहते है। लेकिन वह राजनीतिक चाल को समझ रहें हैं। सत्ता के विपक्ष में खड़ा होना सिख रहें हैं। इन परंपरावादी व्यवस्थाओं के खिलाफ लिख रहें हैं,बोल रहें हैं,पढ़ रहें हैं। ये लोग इनका भला होता कैसे देख सकते हैं। यह समाजवाद का चेहरा बेहद डरावना हैं। अगर आपकों लग रहा हैं की यह गलत हैं तो हमारें हौंसले पस्त नही होने दीजिये। सच बोलिये,साथ में सुर मिलाइये ताकि स्वस्थ भारत निर्माण हो।
रोहित वेमुला जरूर मर गए लेकिन अपनी बात बहरों को सुना कर मर गये। देश की आत्मा को जगाकर मर गये।
लोग धर्म, जाति, भाषा, प्रांत, लिंग से ऊपर उठ कर सुर बुलंद कर रहे हैं। नाखुशी जाहिर कर रहें। शायद आपका मौत वक़्त को बदल रहा हैं। एकता दिख रहा हैं। रोहित ने आत्महत्या नही की हमारी व्यवस्थाओं ने मार डाला।
गुड मॉर्निंग
जब आप यह खत पढ़ रहे होंगे, तब मैं आपके पास नहीं होऊंगा। मुझसे नाराज मत होइएगा। मैं जानता हूं, आप में से कई लोग मुझे दिल से चाहते हैं, प्यार करते हैं और मेरा ख्याल रखते रहे हैं। मुझे किसी से शिकायत नहीं है। मुझे हमेशा खुद से समस्याएं रही हैं। मैं अपनी आत्मा और अपने शरीर के बीच के फासले को बढ़ता हुआ महसूस कर रहा हूं। मैं एक राक्षस बन गया हूं। मैं हमेशा से एक लेखक बनना चाहता था। कार्ल सेगन जैसा विज्ञान का लेखक। हालांकि अंत में, मैं सिर्फ यह खत ही लिख पा रहा हूं।
मैंने विज्ञान से, सितारों से और प्रकृति से प्यार किया, लेकिन यह जाने बगैर कि लोग कब का प्रकृति का साथ छोड़ चुके हैं। हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हैं। हमारा प्यार बनावटी है। हमारी मान्यताएं झूठी हैं। हमारी मौलिकताएं कृत्रिम हैं। वास्तव में अब यह असंभव हो गया कि बिना दुख पहुंचाए किसी को प्यार किया जा सके।
एक इंसान की कीमत उसकी पहचान एक वोट… एक संख्या… एक वस्तु तक सिमट कर रह गई है। कोई भी क्षेत्र हो, अध्ययन में, राजनीति में, मरने में, जीने में, कभी भी एक व्यक्ति को उसकी बुद्धिमत्ता से नहीं आंका गया।
इस तरह का खत मैं पहली दफा लिख रहा हूं। आखिरी खत लिखने का यह मेरा पहला अनुभव है। अगर यह कदम सार्थक न हो पाए तो मुझे माफ कीजिएगा।
हो सकता है इस दुनिया, प्यार, दर्द, जिंदगी और मौत को समझ पाने में, मैं गलत था। कोई जल्दी नहीं थी, लेकिन मैं हमेशा जल्दबाजी में रहता था। एक जिंदगी शुरू करने की हड़बड़ी में था। इसी क्षण में, कुछ लोगों के लिए जिंदगी अभिशाप है। मेरा जन्म मेरे लिए एक घातक हादसा है। अपने बचपन के अकेलेपन से मैं कभी उबर नहीं सका। अतीत का एक क्षुद्र बच्चा।
इस वक्त मैं आहत नहीं हूं… दुखी नहीं हूं, मैं बस खाली हो गया हूं। अपने लिए भी बेपरवाह। यह दुखद है और इसी वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं। लोग मुझे कायर कह सकते हैं और जब मैं चला जाऊंगा तो स्वार्थी, या मूर्ख भी समझ सकते हैं। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे क्या कहा जा रहा है। मैं मौत के बाद की कहानियों… भूतों या आत्माओं पर विश्वास नहीं करता। अगर किसी बात पर मैं विश्वास करता हूं तो वह यह है कि मैं अब सितारों तक का सफर कर सकता हूं। और दूसरी दुनिया के बारे में जान सकता हूं।
जो भी इस खत का पढ़ रहे हैं, अगर आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं, तो मुझे सात महीने की फेलोशिप मिलनी बाकी है जो एक लाख और 75 हजार रुपये है, कृपया ये कोशिश करें कि वह मेरे परिवार को मिल जाए। मुझे 40 हजार रुपये के करीब रामजी को देना है। उसने कभी इन पैसों को मुझसे नहीं मांगा, मगर कृपा करके ये पैसे उसे दे दिए जाएं।
मेरी अंतिम यात्रा को शांतिपूर्ण और सहज रहने दें। ऐसा व्यवहार करें कि लगे जैसे मैं आया और चला गया। मेरे लिए आंसू न बहाएं। यह समझ लें कि जिंदा रहने की बजाय मैं मरने से खुश हूं।
‘परछाइयों से सितारों तक’
उमा अन्ना, मुझे माफ कीजिएगा कि ऐसा करने के लिए मैंने आपके कमरे का इस्तेमाल कर रहा हूं।
एएसए (आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोशिएशन) परिवार के लिए, माफ करना मैं आप सबको निराश कर रहा हूं। आपने मुझे बेहद प्यार किया। मैं उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं दे रहा हूं।
आखिर बार के लिए
जयभीम
मैं औपचारिकताएं पूरी करना भूल गया। मेरी खुदकुशी के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है।
किसी ने ऐसा करने के लिए मुझे उकसाया नहीं किया, न तो अपने शब्दों से और न ही अपने काम से।
यह मेरा फैसला है और मैं अकेला व्यक्ति हूं, जो इस सबके लिए जिम्मेदार है।
कृपया मेरे जाने के बाद, इसके लिए मेरे मित्रों और शत्रुओं को परेशान न किया जाए ।
पत्र पढ़ने के बाद भी आपका गला नही रुंध रहा हो,आँखो में आंसू न आ रहा हो,सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा न फुट रहा हो तो आप या तो इस व्यवहार के आदी हो चुके हैं या फिर इस व्यवस्था को चलाने में आप मदद कर रहें हैं। क्या पता किसी दिन मेरा लिखना भी राष्ट्रविरोधी बन जाएं।
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