Showing posts with label समाज. Show all posts

कम्प्युटर के पिता एलेन ट्यूरिंग की दिलचस्प कहानी


पुरा नाम: एलेन मैथिसन ट्यूरिंग
जन्म: 23 जून 1912
मृत्यु: 7 जून 1954 (उम्र-41 वर्ष)
अवार्ड:  स्मीथ पराईज
            ओ बी ई
            एफ आर एस
थेसीस:   Systems of Logic Based on Ordinals
जाने जाते हैं:  Cryptanalysis of the Enigma
                   Turing machine
                   Turing test
                   LU decomposition
शिक्षा: किंगस कॉलेज,कैम्ब्रीज
         प्रिंसटन युनिवर्सिटी

एलेन ट्युरिंग के बारे में रिसेंट जानकारी सर्वप्रथम मेरे मामा जी के पुत्र ने पिछले वर्ष दिल्ली भ्रमण के दोरान दी थी। तब अचानक ही चोथी कक्षा में पढ़ी कंप्युटर बुक में एलेन के बारे में वो जानकारी याद आ गई। एलेन के बारे में जानकारी तब के समय में न होना मेरे लिये हतप्रभ और हैरान कर देने वाली बात थी। एसे करिशमाई पुरूष समाज को अपने सोंच और क्रांतिकारी परिणाम के बदौलत सदियों आगे ले चले जाते हैं।
एलेन ट्युरिंग एक महान गणितज्ञ और कम्प्युटर वैज्ञानिक थे। वह डिजिटल कम्प्यूटरों पर काम करने वाले सर्वप्रथम लोगों में से थे। वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कम्प्यूटर के बहुप्रयोग की बात सोची। उन्होंने लोगों को बताया की कम्प्यूटर अलग-अलग प्रोग्रामों को चला सकता है। ट्युरिंग ने 1936 में ट्युरिंग यंत्र का विचार प्रस्तुत किया। यह एक काल्पनिक यंत्र था जो अनुदेशों के समूह पर काम करता था। ट्यूरिंग को व्यापक रूप से सैद्धांतिक कंप्यूटर विज्ञान और कृत्रिम बुद्धि के पिता माना जाता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ट्यूरिंग सरकार के लिये गवर्नमेंट कोड & सायफर स्कुल में काम करते थे । जो ब्रिटेन के codebreaking केंद्र के तौर पर काम करता था। जर्मनी प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बुरी तरह हार गया था। बदला लेने को जर्मनी बेकरार था वह द्वितिय विश्व युद्ध का खांचा खीचने लगा। युद्ध के तैयारी के दौरान नए-नए हथियार बनाने लगा। जर्मनी ने एक ऐसी मशीन बनाई जिसे एनिग्मा मशीन कहा जाता था। यह मशीन गुप्त सन्देशों के कूटलेखन या कूटलेखों के पठन के लिये प्रयुक्त होती थी। युद्ध में इसका प्रयोग सरकार और सेना के बीच भेजे गये संदेशो के लिये किया जा रहा था। एलेन ने बॉम्ब मेथड में सुधार ला कर तथा एल्कट्रो मेकेनिकल मशीन बनाकर एनिग्मा मशीन का कोड तोड़ दिया। इसके आने से ब्रिटेन को काफी लाभ मिला और विश्व युद्ध को कम से कम 4 साल छोटा कर दिया।

युद्ध के बाद वे National Physical Laboratory से जुड़े जहां उन्होने एसीई (एटोमेटीक कंप्युटिंग इंजीन) का डिजाईन किया। जो की स्टोर्ड प्रोग्राम कंप्युटर का डिजाईन करने वाले पहले व्यक्तियों में से एक थे।

एलेन के पिता इंडियन सिविल सर्विस में अफसर थे और छतरपुर में कार्यरत थे। जो कि बिहार और उड़ीसा प्रांत में आता था। इनके नाना मद्रास रेलवे में इंजिनियर थे। ऐलन का जन्म स्थान उनके माता-पिता ने लंदन में चुना। यहां से उन्होने अवकाश लिया ओर लंदन पहुंच गये। जहां ऐलन पैदा हुए।

एलेन ट्यूरिंग समलैंगिक थे। 1952 में उन्होंने ये माना की उन्होंने एक पुरुष से यौन संबंध बनाए थे। उस समय इंग्लैड में समलैंगिकता अपराध था। एक ब्रिटिश न्यायालय में उनके उपर मुकदमा चलाया गया और इस अपराध का दोषी पाया गया और उनसे एक चुनाव करने के लिए कहा गया। उन्हें कारागृह में जाने या "रासायनिक बधियापन" (अपनी यौन उश्रृखंलता को कम करने के लिए एस्ट्रोजन जैसे महिला अंतःस्रावों का सेवन) में से किसी एक को चुनने को कहा गया। उन्होंने अंतःस्रावों को चुना। पर इस कारण वे नपुंसक (यौनक्रिया करने में असमर्थ) हो गए और इस से उनके स्तन उग आए। ऐलन यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाए किसी तरह दो वर्ष झेलने के बाद उन्होने एक सेब में साइनाइड लगा कर खा लिया। इस तरह महज 41 साल में ही अपने जन्मदिन से मात्र 16 दिन पहले आज के दिन (7 जून) एलेन ने अपनी जान ले ली।

अगस्त 2009 में, जॉन ग्राहम-कमिंग ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक सिग्नेचर कैंपेन आरंभ किया जिसमें की उन्होनो मांग की एक समलैंगिक के रूप में ट्यूरिंग के खिलाफ चला मुकदमा गलत था और ब्रिटिश सरकार माफी मांगे।

10 सितंबर 2009 को ब्रिटिश सरकार से जारी बयान में कहा गया की ऐलन को दी गई सजा गलत थी। प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने माफ़ी मांगी। लेकिन तबतक दुनिया का एक जीनियस जा चुका था।


गोपालगंज में हिंसा ! दोष किसपर मढ़े?









आज क्या लिखने जा रहा था? लेकिन आज कुछ और लिखूंगा। परिस्थितियां बदलती रहती हैं; इंसान जीना सीख लेता हैं। परिस्थितिया से जिसने तालमेल बैठाया न हो वह अपना वजूद खो देता। लेकिन  जिसने खुद को ही  बचाने की कोशिस नही किया हो क्या वह अपना पहचान,वजूद के साथ-साथ खो नही देता ?
दो रस्सी को जोड़ने के लिए गांठ की जरूरत पड़ती हैं। यदि गांठ कमजोर हो तो ,रस्सी का जुड़ना कहावत बन जाता हैं। आखिर होली-ईद साथ मनाने वालों का गांठ इतना  कमजोर क्यों होता हैं कि एक ही बार के हवा के झटके में टूट जाएं ? धर्म और मानवता की लड़ाई में हमेशा हार मानवता की हुई।

आज बात कर रहें हैं उस महान भूमि के लोग के
बारे में जिसने अपने महानता - उदारता से अपने मेहमानो को पलकों पर बिठा लिया हैं। मैं यहाँ के लिए प्रवासी हूँ। करीब 10 साल होने को आएं यहां रहते। इन वर्षो में जो प्यार और सम्मान मिला इसकी गाथा कई वर्षो तक मेरे कान में गूँजती रहेगी। आज गोपालगंज और सीवान जिलों की बात कर रहा हैं। गोपालगंज जिले के एक छोर पर मैं(बरौली) रहता हूँ और दूसरे छोर पर वह शहर(मीरगंज) हैं जो आज सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा हैं।
हाय! आखिर किसकी नज़र मेरे जिलों को लग गई।
इस घटना के सूत्रधार कौन हैं? घटना का प्लॉट कहाँ बना? पुलिस इन सब मामलों में अनुसंधान कर रही हैं।

पहले उस घटना का जिक्र करते हैं जिसका प्रत्यक्ष रूप से मेरे परिवार के लोग शिकार बने।
दिन: शुक्रवार
तारीख: 15/04/2016
स्थान: दरबार मस्जिद,सीवान
मम्मी पापा बहन के घर सीवान गए हुए थे। बहन को पास के प्राइवेट डॉक्टर के प्रसव केंद्र पर ले जाया गया था। दोपहर साढ़े 12 बज रहे थे  पिताजी जुम्मा पढ़ने के लिए पास के मस्ज़िद दरबार में चले गए। जब नेमाज पढ़ने के लिए सब लोग खड़े होने लगे। उसी समय के 10 मिनट पहले से ही अलग-अलग ट्रॉली पर तकरीबन 15-20 डीजे बिल्कुल मस्जिद के गेट पर आकर बजने लगे। इसकी सूचना फौरन पुलिस को मिली। पुलिस भारी बल संख्या में तुरंत पहुँची। पुलिसवालें एक हाथ से दुसरे हाथ से जोड़ते हुए शृंखलाबद्ध में खड़े हो गए। सभी नेमाज पढ़ने वालों को एक-एक कर के वहां से स्कोर्ट कर के जुलूस के विपरीत गली से भेजा गया।
मैं घर पर अभी नही हूँ,यह सारी बात बहन का हाल जानने के क्रम में पिताजी से पता चला। पिताजी ने बताया आज यहां दो गुटों में झगड़ा होते-होते बचा। बिना किसी अनहोनी आशंका के 2 घन्टे बाद सीवान शहर को छोड़ बरौली पहुँच गए थे। यहाँ आने पर पता चला वहां रोड़ेबाजी हो रही हैं और पुलिस स्थिति को नियंत्रण करने के लिए हवाई फायरिंग और लाठी चार्ज का सहारा ले रही हैं।
ठीक इसीतरह की घटना मीरगंज में होने लगी। पहले डीजे बजाने को लेकर थाना रोड में दोनो गुटों के लोगो में विवाद शुरू हुआ। धीरे-धीरे यहां स्थिति और बेकाबू हो गई। भीड़ को जब मीरगंज में नियंत्रण लेने की कोशिस की जा रही थी तब अचानक भीड़ हिंसक रूप ले ली। मस्जिद के पास पड़े 2 मोटरसाइकिल को आग के हवाले कर दिया गया। फिर मस्ज़िद को आग के हवाले कर दिया गया। ये जो बात आपकों बता रहा हूँ यह बात मुझे आफताब भाई ने बताई जो मेरे जानने वाले हैं।उनका मस्जिद के बगल में कपड़े की दुकान हैं और उन्ही की दुकान के बगल में धार्मिक किताबों की दुकान हैं और इसे भी आग के हवाले कर दिया गया जिससे हिंसा और भड़क गई।

आइये अब मीरगंज के जुलूस की बात करते हैं। अमन,जो की मेरा बहुत ही अच्छा दोस्त हैं वह भी इसी जुलूस में शामिल था। फोन पर बात करते हुए अमन बोल रहा था मुझे समझ नही आ रहा था कि मेरे सामने क्या चल रहा हैं? मेरी मम्मी आमतौर पर शाम को घर से बाहर निकलने नही देती हैं और जब उन्हें पता चला तो बहुत घबड़ा गई थी। भीड़ में भगदड़ मच गई थी और हम लुकते-छुपते घर पहुंचे।

रामनवमी के दूसरे दिन और तीसरे दिन भी झड़प हुआ और दोनो गुटों के तरफ से पथराव हुआ। 15-20 मोटरसाइकिल समेत एक जीप को आग के हवाले कर दिया गया। सौभाग्य हो ऐसे डीएम का जिन्होंने प्रशासन को तुरंत अलर्ट कर दिया जिससे स्थिति को ज्यादा बिगड़ने नही दिया और इसे नियंत्रण में ले लिया गया।

कल 17 अप्रैल को जब कुछ घन्टो के लिया छूट दिया गया तो अचानक मना करने के बाद भी मरछिया देवी चौक के पास सैकड़ो लोग जुलूस लेकर चल दिए। वही दूसरे पक्ष को मना करने के बावजूद कि जुलूस के तरफ ना जाये लेकिन वे चल दिए और फिर आपस में दोनो पक्ष लड़ने-मारने और पत्थरबाजी करने लगे। जिसके कारण मजबूरन दोनो पक्षो के 104 लोगों पर प्राथमिकी दर्ज हुई। जिसमें एक पक्ष के 48 लोग तथा दूसरे पक्ष के 56 लोगों पर मामला दर्ज हुआ।
बाद में शांति मार्च माले पार्टी के बैनर तले निकाला गया जिसमें दोनो समुदाय के लोग शामिल हुए। वही सीवान में भी 18 लोग को हिरासत में लिया गया।

यह घटना अचानक से तो नही घटी। पहले इसका रूपरेखा तो बनाया गया होगा। जुलूस में शामिल अमन को यह बात पता नही थी कि आगे क्या होने जा रहा हैं। बस तलवार लेके जुलूस में शामिल हो गया। लेकिन जिस विश्व....सेना के बैनर तले जा रहा था जो इस जुलूस को नेतृत्व कर रहें थे उन्हें तो पता ही था कि दो धर्मो के बीच आग किस तरह से लगाया जाता हैं। क्या यह सिर्फ इत्तेफाक हैं दोनो जगह घटना घटी उसमें शामिल लोग इसी बैनर के थे? क्या अमन दुबारा से कभी शामिल होना चाहेगा ?
फेसबुक पर सुधीर चौधरी का फैन क्लब का पेज बना हैं । इस पेज से उन हिन्दू धर्मो के जातियों के लोगों को गालियां दी जा रही थी जिन्होंने अपना वोट नीतीश को दिए हैं और कहा जा रहा था और चुनो 'नीतीश की सरकार-मुल्लों की सरकार' को जो हिंदुओं की मदद नही कर रही हैं। उन्हें इसकी गलती बताकर एहसास दिलाया जा रहा था।
इसी विश्व...सेना के लोग फेसबुक पर सवाल पूछ रहें हैं,क्या हिन्दू अपना त्योहार नही मनाये? जबकि उन्हीं के द्वारा यह घटना प्रायोजित की गई थी। दर्जनों पोस्ट 'शांति कौम' के ऊपर लिखी गई और शेयर की जा रही हैं। यह घटना कुछ लोगों ने जानबूझ कर की। न इधर से धीरज दिखाया गया और न ही उधर से। दोनो आपस में लड़ने लगे और बहुत आसानी से उपद्रवियों के जाल में फस गए। हम आपके यहाँ दिवाली की खुशियाँ में हिस्सा लेते आये हैं वही आप मेरे यहाँ ईद में आके चार चाँद लगा देते हैं। हमारी आपकी साझी संस्कृति विरासत में मिली हैं। हमारे दुःख में आप रोते हैं,आपके सुख में हम हँसते हैं। साथ-साथ बिजनेस भी करते हैं और साथ-साथ लंबी उड़ान के ख़्वाब भी देखते हैं। अब जब ऐसा लग रहा हैं कि यह टूट रहा हैं यही वक़्त हैं इसे बचाने का। बचपन से साथ पढ़ते-लिखते-खेलते हुए कई लम्हों का हिस्सा बने। क्या उसे बस याद भर ही रख देना चाहेंगे। हम-आप मिलके समझाते हैं अपने क़ौम को क्योंकि हमने मजबूत नीव बनाई हैं। इस इमारत को अंतिम सांस तक गिरने नही देंगे। पूरी दम-खम हिम्मत लगा देंगे। आपमें ही कोई मुझे समझाया था कि कोशिस करने वालों की कभी हार नही होती हैं। आपका साथी कोई फेसबुक या वाट्सऐप से नफरत भरी पोस्ट लिख रहा हो या शेयर कर रहा हो तो उसे रोकिये समझाइये कि वह क्या गलत कर रहा हैं।
अगर फिर भी नही माने तो स्क्रीन शॉट लेकर मुझे दीजिये ताकि मैं उसके विरुद्ध FIR कर सकूँ ताकि समाज खुशहाल और स्वस्थ रह सकें।
हम कभी इंसान थे लेकिन यह पहचान अब हम खो रहें हैं। ऐसा ही चलता रहा तो एकदिन इसका वजूद भी ख़त्म हो जायेगा।
आख़िर दोष किसपर मढ़े सब तो अपने ही हैं।
विशेष रूप से आपलोग बहकावे में न आए।
हमारी "शांति" ही इन लड़ाने वालों की हार हैं।


बूंद-बूंद पानी को तरसे लोग



भारतीयों का मूल स्वभाव हैं,हम सब विषय पर बात कर लेंगे। गाय-भैंस हिन्दू मुस्लिम मंदिर मस्जिद हिन्दुस्तान पाकिस्तान धर्म रक्षा देशद्रोही भारत माता की जय ये सभी अहम मुद्दों पर सोशल साइट पर कई दिन तक चर्चा होती रहेगी। फ़र्जी राष्ट्रवादी एंकर वीडियो एडिट करने में कोई कसर नही छोड़ेगा।
और यहाँ देश की हालात बिगड़ती जा रही हैं। 5 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सूखे की हालात बेहद गंभीर हैं। आंकलन से पता चलता हैं स्थिति नियंत्रण से बाहर हैं। सिंचाई की बात करना अभी हास्यपद होगा। मसला अभी पीने के पानी पर ही अटका हैं। मात्र 5 लीटर पानी के सहारे एक-एक महीना बिताना पड़ रहा हैं। यह नज़ारा हैं बीड़ के हेलम गांव का जहाँ 1 घड़ा पानी भरने में 5-6 घण्टा टाइम लग जा रहा हैं। लोग पहले तो गांव से निकलकर 2 किलोमीटर दूर एक लगभग सूखा हुआ कुआं तक जाते हैं। फिर वहां अपनी बारी का इंतजार करते हैं। और अंत में 60 फिट गहरे कुआं में उतरते हैं और 2 से 3 घण्टा पानी भरने में बहुत संयम और धीरज की आवश्यकता पड़ती हैं। पानी चट्टानों से रिसते हुए धीरे-धीरे बाहर आता हैं। ये वो पानी होते हैं जो जान बचाने के लिए उपयोग होता हैं,जो शुद्धता के पैमाना को पहले ही ध्वस्त कर चुका होता हैं। कही-कही तो 250 फिट तक जमीन के अंदर पानी नही मिल रहा हैं। मोहल्ले मे टैंकरों को देखते ही लोग दौड़ पड़ते हैं। पानी को लेकर झगड़े होने लगे हैं। सोंचिये जरा आपको ऑफिस जाना हो तो कितने दिन बिना नहाये परफ्यूम के भरोसे चले जाएंगे? अंदाजन 20-30 दिन। हालात बिल्कुल ऐसा ही हैं।

केंद्रीय जल आयोग बता रहा था कि 91 प्रमुख जलाशयों में केवल 29 फीसदी पानी बचा है। यह भयावह की स्थिति हैं । यह इस दशक में पानी का सबसे निचला स्तर है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में हजारों गांव पानी के लिए पूरी तरह सरकारी टैंकरों पर निर्भर हैं। लातूर में हर सप्ताह केवल तीन दिन पानी बांटा जाता है। रविवार को जब पानी एक्सप्रेस राजस्थान के कोटा वर्कशॉप से पुणे के मिरज पहुंची तो स्थानीय नेताओं ने फूल माला चढ़ाकर स्वागत किया। फिर मिराज से पानी लेकर रवाना हुई । इस ट्रेन में पांच लाख 40 हज़ार लीटर पानी है। मंगलवार सुबह साढ़े पांच बजे जब यह रेलवे स्टेशन पहुंची तो उसका स्वागत करने के लिए वहां क़रीब डेढ़ सौ लोग मौजूद थे।
ट्रेन के पहुंचने के बाद लोग अपने अपने मोबाइल फ़ोन से तस्वीरें खींचने लगे। लोगों ने गाड़ी के ड्राइवर, गार्ड और रेलवे पुलिस के कर्मियों का स्वागत किया ।

आखिर इसे संकट बनाने में हमारा तो योगदान खूब रहा ही हैं। जरूर 2-3 कमजोर मॉनसून इसकी प्रमुख वजह रही। इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? इन क्षेत्रों में जायजा लेने से साफ पता चलता हैं कि बारिश बुलाने वाले पेड़ अब रहें ही नही। तेज शहरीकरण ने पेड़ो की अंधाधुन कटाई को बर्दाश्त कर लिया। सरकार की नीति तब भी और अब भी अभूतपूर्व हैं। सूखे से निपटने के लिए कोई ठोस कदम बनाने की जरूरत नही हैं। किस-किस संख्या के बारे में बात करूँ वह जो तलाब-नहरों के लिए आवंटित करोड़ो रुपये के बारे में या फिर उस पाइपलाइन के बारे जिसका राह देखते-देखते कंठ सूख  गए। हम पहले से ही हिन्दू-मुस्लिम देशभक्त-देशद्रोही में खुश हैं। क्या आपने कभी नेताओं से रोटी-पानी-रोजगार के मुद्दे पर घेरने की कोशिश की हैं?क्या आपने मूल-भुत सुविधाएं पर नेताओं से सवाल पूछते जनता को देखा हैं ? अनाज तो पैदा होने से रहा। इंसान के साथ-साथ जानवर भी बीमार पड़ रहे हैं। हम-आप ही इन नेताओं को इतनी छूट दे रखे हैं की इन सब सवालों का सामना उन्हें नही करना पड़ता हैं। इस सरकार की कमी ही रही हैं कि कोई काम की बात नही करता। कोई कहता हैं सिर काट देंगे। कोई कहता हैं जबान खींच लेंगे। तो कोई देश से बाहर भेजने की बात करता हैं। हर समस्या को साथ-मिलकर समाधान निकाल लिया जाता। लेकिन राष्ट्र को ही इन मुद्दों से भटका दिया जाता हैं। क्या इस तरह हम श्रेष्ट राष्ट्र के तौर पर उभर पाएंगे? जब एकता ही न हो।
कहिये भारत माता की जय।
सब समस्या का समाधान हो जायेगा।